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गर्भावस्था की योजना

परिचय-

          जब भी कोई भी स्त्री गर्भधारण करने का विचार करती है तो सबसे पहले उसे डॉक्टर से अपने स्वास्थ्य की जांच करवा लेनी चाहिए और यह मालूम करना चाहिए की क्या वह पूरी तरह स्वस्थ है और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है।

डॉक्टर का चयन-

        स्त्री को गर्भावस्था के समय के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर एक ऐसे डॉक्टर को चुनना चाहिए जो गर्भावस्था से बच्चे के जन्म के बाद तक उसकी सही तरह से देख-भाल कर सके। अधिकांश स्त्रियां गर्भावस्था के समय इधर-उधर दाइयों को दिखाती रहती हैं परन्तु बच्चे के जन्म के समय जब कोई समस्या आ जाती है तो उन्हें अस्पतालों या डॉक्टरों के क्लीनिकों में भागदौड़ करनी पड़ती है। ऐसी स्थिति मां और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक हो सकती है।

गर्भावस्था से बच्चे के जन्म तक देखभाल के लिए डॉक्टर के चुनाव सम्बंधी प्रमुख बातें-

    डॉक्टर का स्त्री रोग विशेषज्ञ होना जरूरी है। इसके अलावा उसे अपने कार्यों के बारे मे कितना एक्सपीरियंस है इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए।  
    प्रसूति गृह नजदीक होना चाहिए ताकि बच्चे के जन्म के समय तुरन्त वहां पहुंचा जा सके।
    डॉक्टर का प्रसूति गृह में 24 घंटों मिलना जरूरी होता है उनकी अनुपस्थिति पर डॉक्टरों की पूरी व्यवस्था होनी चाहिए।
    प्रसूति गृह का माहौल पारिवारिक होना चाहिए।
    अगर स्त्री को कोई अन्य रोग जैसे- सांस लेने में अवरोध या अन्य कठिनाई हो तो उसे गर्भावस्था के समय या पहले उस रोग से विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।
    डॉक्टर के बोल-चाल की भाषा आपके अनुकूल होनी चाहिए।
    डॉक्टर के यहां अल्ट्रासाउन्ड, रक्त, मूत्र आदि की जांच की पूरी तैयारी होनी चाहिए। इसके साथ दर्द रहित बच्चे का जन्म, आपरेशन की व्यवस्था और प्रसूति के बाद बच्चे की देख-रेख के लिए नर्सरी और बालरोग विशेषज्ञ की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
    डॉक्टर की फीस और प्रसव के दौरान होने वाले खर्च आदि के बारे में जानकारी होनी चाहिए।
    आपातकाल की स्थिति में सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए।
    प्रसव के समय अधिक रक्तस्राव होने से स्त्री को ब्लड की आवश्यकता पड़ सकती है। इसलिए ब्लड बैंक कहां और कितनी दूर है इस बारे में प्रसूता महिला के पति या अन्य सगे-संबन्धियों को मालूम होना चाहिए।
    प्रसूति गृह का स्वास्थ्य केन्द्र से मान्यता प्राप्त होना अनिवार्य होता है।  
    जरूरत पड़ने पर दवाइयों की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

गर्भावस्था के लिए शरीर की तैयारी-

यदि आप गर्भधारण का विचार कर रहे हैं तो कुछ महीने पहले से ही शरीर की तैयारी कर लेनी चाहिए-

    सिगरेट, शराब आदि के प्रयोग से गर्भ में बच्चे पर बुरा असर पड़ता है जिससे बच्चे का बढ़ना कम हो जाता है। शराब से बच्चे का शरीर और मस्तिष्क क्षीण हो जाता है। गर्भधारण के बाद पहले या छह सप्ताह का समय बच्चे की शारीरिक रचना के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए इस प्रकार के पदार्थों का सेवन करने से बच्चे पर कुप्रभाव पड़ता है।
    गर्भधारण करने से पहले स्त्री को अपने रक्त की जांच करवा लेनी चाहिए ताकि अगर उसके शरीर में रक्त की कमी हो तो पहले ही पता चल जाए।
    गर्भधारण करने से पहले स्त्री के लिए सन्तुलित भोजन लेना और अपने शरीर के वजन को सदैव बनाये रखना अनिवार्य होता है। इसके लिए भोजन में अधिक मात्रा में हरी सब्जियों का प्रयोग, सलाद तथा सभी प्रकार की दालें, दूध, पनीर, और फलों को प्रयोग करना लाभदायक होता है। मांसाहारी स्त्रियां अण्डे और मांस आदि का प्रयोग भी कर सकती हैं।
    स्त्री को अपने शरीर को स्वस्थ, सुडौल और चुस्त बनाये रखने के लिए सुबह हल्का व्यायाम करना चाहिए और कुछ दूरी तक टहलना चाहिए। सुबह के समय टहलने से दिनभर के कार्य में थकान का अनुभव नहीं होता है।  
    यदि स्त्री का रक्त आर.एच. निगेटिव है तो उसको एन्टी-डी का इंजेक्शन बच्चा होने के बाद जरूर लगवाना चाहिए ताकि अगले बच्चे को कोई हानि न हो। यदि स्त्री का इससे पहले भी गर्भपात हो चुका हो तो यह इंजेक्शन जरूरी होता है। अन्यथा दूसरी बार भी उसका गर्भपात हो सकता है। ऐसी अवस्था में गर्भधारण करने पर उसके शरीर का पूरा रक्त भी बदलना पड़ सकता है।
    गर्भधारण से पहले स्त्री को अपने ब्लडप्रेशर, शरीर पर सूजन, भोजन और अपने वजन का हमेशा ध्यान रखना चाहिए।
    गर्भधारण से पहले पति के रक्त की जांच करवाना भी जरूरी होता है।  
    गर्भधारण से पहले सिगरेट, शराब, कोला, काफी तथा नशे की गोलियों आदि का सेवन बंद कर देना चाहिए।
    गर्भधारण करने की इच्छुक महिलाओं को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए तथा परिवार नियोजन की दवाइयों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
    गर्भधारण के बाद प्रत्येक सप्ताह डॉक्टर से जांच करवाते रहना चाहिए।
    गर्भधारण से पहले स्त्री को मानसिक शान्ति के लिए भगवान का ध्यान और पूजा-अर्चना आदि करनी चाहिए।
    स्त्री को अपने पारिवारिक वातावरण को सुखशान्ति पूर्वक बनाये रखना चाहिए।
    स्त्री को 21 वर्ष से 29 वर्ष की उम्र में ही गर्भधारण करना चाहिए। इससे पहले या बाद में गर्भधारण करना मां और बच्चे दोनों के जीवन के लिए हानिकारक हो सकता है।
    गर्भाशय में बच्चे का निर्माण माहवारी के 12-13 दिन के बाद से सम्भव होता है। इसलिए स्त्री के शरीर की पूरी जांच समय से पहले हो जानी चाहिए।

जननिक परामर्श-

    यदि किसी के परिवार में ऐसे बच्चे का जन्म हुआ हो जिसकी शारीरिक बनावट में त्रुटि, खून में कमी, आनुवंशिक बीमारी या जन्म से ही कोई कमी हो तो ऐसी अवस्था में जननिक परामर्श अवश्य ही लेना चाहिए। इससे स्त्री और पुरुष दोनों को लाभ होता है तथा आने वाले बच्चे को रोग से मुक्त किया जा सकता है।
    गभधारण के लिए स्त्री की आयु 35 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए।
    यदि स्त्री को दो या दो बार से अधिक बार गर्भपात हो चुका हो तो उसे गर्भधारण से पहले जननिक परामर्श अवश्य ले लेना चाहिए।  
    गर्भधारण से पूर्व यदि स्त्री का स्वास्थ्य ठीक न हो तो आने वाले बच्चे को हानि हो सकती है जैसे- शराब, तम्बाकू, नशीले पदार्थ कोई रोग या एक्स-रे की किरणों से हानि हो सकती है। माहवारी होने के बाद 10 दिन बाद एक्स-रे या किसी हानिकारक औषधि का प्रयोग बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। यह तभी प्रयोग करना चाहिए जब कोई अनिवार्य कारण हो।
    यदि प्रथम बार मे किसी जांच में कोई त्रुटि आ गई हो तो फिर जननिक परामर्श अवश्य लेकर अन्य दूसरी जांच समय पर करवा लेनी चाहिए।
    यदि जननिक परामर्श द्वारा रोग अधिक और हानिकारक है तो बच्चे को जन्म न देना ही ठीक होगा।
    जननिक परामर्श लेने से यह मालूम चल जाता है कि होने वाले बच्चे में क्या कमियां हैं। जानकारी होने पर उसकी उचित चिकित्सा की जा सकती है।
    हमारे देश में विभिन्न क्षेत्रों में महिलाएं भिन्न-भिन्न रोगों से ग्रस्त रहती हैं। ऐसी दशा में जननिक परामर्श आवश्यक होता है।

गर्भावस्था गाईड

Vātsyāyana
Chapters
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