Get it on Google Play
Download on the App Store

ऋतुसंहार‍ (Hindi)


कालिदास
ऋतुसंहार महाकवि कालिदास की प्रथम काव्यरचना मानी जाती है, जिसके छह सर्गो में ग्रीष्म से आरंभ कर वसंत तक की छह ऋतुओं का सुंदर प्रकृतिचित्रण प्रस्तुत किया गया है। इस खण्डकाव्य में कवि ने अपनी प्रिया को सबोधित कर छह ऋतुओं का छह सर्गों में सांगोपांग वर्णन किया है।
READ ON NEW WEBSITE

Chapters

प्रिये आया ग्रीष्म खरतर...

सुधुर-मधुर विचित्र है...

प्रिया सुख उच्छ्वास कपिल सुप्त मदन...

मेखला से बंध दुकूल सजे...

क्वणित नूपुर गूँज, लाक्षा रागरंजित...

स्वेद से आतुर, चपल कर...

शीत चंदन सुरभिमय जलसिक्त...

निशा मे सित हर्म्य में सुख नींद...

लूओं पर चढ़ घुमर घिरती...

तीव्र आतप तप्त व्याकुल...

सविभ्रम सस्मित नयन बंकिम...

तीव्र जलती है तृषा अब...

किरण दग्ध, विशुष्क अपने कण्ठ से...

क्लांत तन-मन रे कलापी...

दग्ध भोगी तृषित बैठे...

रवि प्रभा से लुप्त...

प्यास से आकुल फुलाए...

लिप्त कालीयक तनों पर...

सुरत श्रम से पाण्डु कृश मुख हो चले...

दन्त क्षत से अधर व्याकुल...

नव प्रवालोद्गम कुसुम प्रिय...

बाहुयुग्मों पर विलासिनि...

शोभनीय सुडोल स्तन का...

व्याप्त प्रचुर सुशालि धान्यों...

चिर सुरत कर केलि श्रमश्लथ...

पके प्रचुर सुधान्य से...

मधुर विकसित पद्म वदनी...

कास कुसुमों से मही औ"...

चटुल शफरी सुभग काञ्ची सी...

रिक्त जल अब रजत शंख...

प्रभिन्नाञ्जन दीप्ति से...

मदिर मंथर चल मलय से...

सुभग ताराभरण पहने...

घर्षिता है वीचिमाला...

रश्मि जालों को बिछा...

मत्त हंस मिथुन विचरते...

प्रिये मधु आया सुकोमल

द्रुम कुसुमय, सलिल सरसिजमय

मृदु तुहिन से शीतकृत हैं

धवल चंदन लेप पर सित हार

लो प्रिये! मुक श्री मनोरम

मधु सुरभिमुख कमल सुन्दर