मदिर मंथर चल मलय से...
- प्रिये ! आई शरद लो वर!
मदिर मंथर चल मलय से
- अग्रशाख विकंप आकुल
प्रचुर पुष्पोद्गम मनोहर
- चारुतर ले नर्म कोंपल
मत्त भ्रमरों ने पिया
- मद प्रस्रवण हो विकल जिस पर
मधुर चमरिक वृक्ष चित्त
- विदीर्ण किसको दें नहीं कर
- प्रिये ! आई शरद लो वर!