रश्मि जालों को बिछा...
- प्रिये ! आई शरद लो वर!
रश्मि जालों को बिछा
- आल्हाद भरता जो हृदय हर
नयन उत्सव, हिम फुही झर
- इंदु भी है अब कठिनतर
पति-विरह विष-सिक्त शर-क्षत
- नारियों का ताप दुखकर
- प्रिये ! आई शरद लो वर!
रश्मि जालों को बिछा
नयन उत्सव, हिम फुही झर
पति-विरह विष-सिक्त शर-क्षत