प्यास से आकुल फुलाए...
प्यास से आकुल फुलाये वक्त्र नथुने उठा कर मुख
रक्त जिह्व सफेन चंचल गिरि-गुहा से निकल उन्मुख
ढ़ूंढने जल चल पड़ा महिषी-समूह अधिर होकर
धूलि उड़ती है खुरों के घात से रूँद ऊष्ण सत्वर
प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!
प्यास से आकुल फुलाये वक्त्र नथुने उठा कर मुख
रक्त जिह्व सफेन चंचल गिरि-गुहा से निकल उन्मुख
ढ़ूंढने जल चल पड़ा महिषी-समूह अधिर होकर
धूलि उड़ती है खुरों के घात से रूँद ऊष्ण सत्वर
प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!