प्रसंग ३
(मुन्नी पायरीवर बसून सोनूच खेळण बघते असते.)
सोनू:- (हाथ में गुडीया का खिलौना लिए उसे देख.) अय्या किती सुंदर दिख रही है मेरी गुडिया.
(सोनू तिच्या बाहुलीची नजर उतरवत असते, तोच तिची नजर शेजारच्या मुन्नीवर पडते.)
सोनू:- इधर रहेती है क्या तू ?
मुन्नी:- (गोंधळून) हाँ ...हा कुछ ही दिन पहेले आये हम लोक यहा रहने.
सोनू : अस्स ... वैसे तेरा नाम क्या है ?
मुन्नी:- मुन्नी.
सोनू:- मस्तयं ... आणि मी सोनू, मतलब मेरा नाम सोनू है.
(मुन्नी हलकेच हसते. ती अजूनही गोंधळलेलीच असते. काय बोलू आणि काय नको यात?)
सोनू : तू अकेली इधर क्या करेली? तेरे को बोर नही होता.
मुन्नी : हाँ होता तोह है पर क्या करू ना, मै यहाँ किसी को नही जानती ना, कोई दोस्त भी नही है.
सोनू:- अरे तोह क्या हुआ ? मेरे साथ खेल लेना यहाँ साथ में खेलेंगे ?
मुन्नी : हाँ चलेगा बिलकुल .
सोनू : चल मग, खेलू आपण सोबत. अपनी परी सेभी मिलवाती हूँ तुझे चल.
मुन्नी: परी ...कौन परी?
सोनू: अरे चल तोह मेरे साथ , तेको बताती मै देखके खुश हो जाएगी तू अब चल.
मुन्नी : हाँ चलो.
(दोघीजनी सोनूच्या भातुकलीकड़े जातात.)
सोनू:- ये देखो, ही आहे माझी परी और परी है ये है मुन्नी. कैसे लगी मुन्नी तुम्हे मेरी परी ?
मुन्नी:- अरे वाह बहुत सुंदर है यह तोह और इसका नाम भ , मै भी अपने दोस्तों के साथ खूब खेलती थी. मेरे भी पास भी है , कल लेके आउंगी. फिर हम खूब खेलेंगे और मजे भी करेंगे |
सोनू : अरे वा भारीच ना |
( इतक्यात सोनूची आई तिला आवाज देऊन बोलावते.)
मुन्नी : तुम कितनी अच्छी मराठी बोलती हो, मुझे भी सिखाओगी क्या ?
सोनू:- अरे क्यों नही में सिखायेगी ना, पर अभी नही आई बुला रही है, चल जाते मी , कल मिलते है .
मुन्नी : हाँ ठीक है |
( हा प्रसंग इथेच संपतो.)