प्रसंग १
( वेळ रात्रीची , मोहन कामावरून घरी येतो. त्याची बायको त्याचीच वाट पाहत असते .)
चमेली : आ गए आप | कैसा था आजका धंदा ? लीजिए पानी.
मोहन : अब क्या बताऊ में तेरेकू? अभी आपन यहा नये है ना इसलिए, ऐसा मंदी में है धंदा.
चमेली: क्या? हाय मेरी फूटी किस्मत! किसमत आजमाने के वास्ते इधर आये पर इधर भी वहीच हाल है.
मोहन : इत्ती चिंता नक्को करू, थोडा वख्त जाने दे मेरे वड़ापाव की टेस्ट पता तो चलने दे, फिर देखना कितनी भीड़ होगी अपने ठेले पे.
(आपल्या नवऱ्याचा आत्मविश्वास बघून चमेली खुश होवून त्याच्यावरून बोट मोडते.)
चमेली : हाये, क्या दिमाग पाया है मेरे मरद ने!
मोहन : हा और एक तू है , जो खाने के नाम पर बस पानी पिलाकेच सुलायेगी क्या अब ?
चमेली : अरे नही जी , आप हाथ मुह धो लीजिए में खाना लगवाती हु ना.
( मोहन बाहेर जावून हात-पाय धुत असताना खुप वेळ लावतो ,चमेली कंटाळून त्याला आवाज देते.)
चमेली : अरे खाना थंडा होने के बाद खावोगे क्या अब ?
मोहन : आतू गे ठेर न जरा ,वैसे अपनी बिटीयारानी दिखाई नही दे रही ही , है कहा ?
चमेली : वो खाना खाके सो गयी कब की.
मोहन: काहे ?
चमेली : सोऐगी नही तो क्या करेगी बिचारी यहा है कोन उसका दोस्त ? किसके साथ खेलेगी वो और किसके साथ बात केरेगी ना बिलकूल चूपसी रहेती है.
मोहन : अभी यह मोहल्ला उसको नया हे ना इसलिये और थोडी देर रुक फिर, बघ कशी बडबड करते, ते पुरा मोहल्ला सर पे नही उठा लिया तो बोलना मेरेकू.
चमेली : वो भी है हीच पर फिर भी मेरे को उसकी काळजी रहतीच है ना, मा हूँ ना उसकी.
मोहन : चल अब सो जाते है. कल जल्द जाना है.
चमेली:- हाँ चलो. (लाईट बंद करून झोपी जातात.)
( पहिला प्रसंग इथेच संपतो.)