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बच्चे को बोतल से दूध पिलाना

परिचय-

          बोतल को अच्छी तरह साफ करके बच्चे को दूध पिलाने से कोई हानि नहीं होती है लेकिन अगर बोतल को बिना साफ किए बच्चे को दूध पिलाते हैं तो इससे बच्चों को विभिन्न प्रकार के रोग जैसे- दस्त, हैजा, उल्टी, बुखार आदि हो सकते हैं। बोतल को साफ करने के लिए बोतल में गर्म पानी भरकर कुछ देर के लिए रख देते हैं जिससे बोतल में जमा हुआ दूध भी छूट जाता है। इसके बाद बोतल को ब्रश और साबुन की सहायता से अच्छी प्रकार से साफ करना चाहिए। बोतल के कोनों की ध्यानपूर्वक सफाई करनी चाहिए। साफ बोतलों को उबालने के लिए एक पतीले पानी में भरकर रख देते हैं। ऐसे में बच्चे के लिए तीन या चार बोतलें होना जरूरी होता है क्योंकि प्रत्येक बोतल को उबालना बार-बार मुश्किल हो जाता है। बोतल के ढक्कन को साफ करने के लिए उसे नमक और पानी से धोना चाहिए तथा कुछ देर तक उसे पानी में ही डुबोकर रखना चाहिए। इसके बाद ढक्कन को निकालकर सूखने के लिए धूप में रख दें। बोतल के निप्पल को हल्के गर्म पानी से साफ करना चाहिए। इसके बाद सभी बोतलों को धोकर बाहर निकाल लें।

    बोतलों में दूध भरने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से पानी और साबुन से धोना चाहिए। जब बच्चा बोतल के दूध को पीकर बोतल को खाली कर दे तो बोतल में उबला हुआ पानी भरकर रख देना चाहिए। इससे बोतल को धोते समय काफी आसानी रहती है तथा बोतल जल्द ही साफ हो जाती है।
    यदि किसी स्त्री को काम करने के लिए बाहर जाना पड़ता हो तथा उसके जाने के बाद कोई सही प्रकार से दूध बनाने वाला न हो तो ऐसी स्थिति में उसे तीन या चार बोतलों को दूध से भरकर फ्रिज में रख देना चाहिए। जब भी बच्चे को भूख लगे तो फ्रिज से दूध की बोतल को निकालकर बच्चे को कोई भी दूध पिला सकता है। बोतल से बच्चे को दूध पिलाने से यह भी पता चल सकता है कि मां के न रहने पर बच्चे ने कितना दूध पिया। फ्रिज में रखा हुआ ठण्डा दूध भी बच्चे के लिए किसी भी प्रकार से हानिकारक नहीं होता है।
    महिलाओं को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि बोतल के निप्पल का छेद बच्चे की आयु के अनुसार होना चाहिए। वैसे तो निप्पल से दूध पीते-पीते स्वयं ही निप्पल के छेद का आकार बढ़ जाता है। परन्तु फिर भी बोतल में दूध डालने के बाद बोतल को उल्टा करके निप्पल से दूध को गिरते हुए देखना चाहिए। यदि बोतल से दूध एक सेकेण्ड में 4-5 बून्दे गिरे तो ठीक है नहीं तो सुई को गरम करके इससे निप्पल के छेद को बड़ा करना चाहिए। बच्चे को बोतल का दूध पिलाने से पहले देख लेना चाहिए कि दूध कहीं अधिक गर्म तो नहीं है क्योंकि गर्म दूध को पीने से बच्चे का मुंह जल सकता है।
    नौकरी या काम पर जाने से पहले स्त्रियों को अपने बच्चे को शरीर के साथ लगा लेना चाहिए। इससे बच्चे के अन्दर मां के प्रति ममता, स्नेह और विश्वास का भाव उत्पन्न होता है। दूध पिलाने के लिए मां द्वारा बच्चे को अपनी छाती से अवश्य लगाना चाहिए।
    स्त्रियां चाहे तो बोतल के दूध में चीनी मिलाकर भी बच्चे को पिला सकती है। दूध में मलाई आ जाने के कारण कभी-कभी बोतल के निप्पल से दूध का निकलना बन्द हो जाता है। इस कारण दूध को बोतल में डालने से पहले छान लेना चाहिए जिससे दूध की मलाई छनकर बाहर निकल जाए। इससे बच्चा निप्पल से दूध आसानी से पी सकेगा।
    दूध की बोतल के निप्पल को गन्दे हाथों तथा गन्दे कपड़ों से नहीं ढकना चाहिए तथा निप्पल पर मक्खियों को भी नहीं बैठने देना चाहिए अन्यथा दूध पीने से बच्चे का स्वास्थ्य खराब हो सकता है।
    बच्चे को बोतल से दूध पिलाते समय ध्यान रखना चाहिए कि बोतल का निप्पल हमेशा दूध से भरा हो। इसके लिए बोतल को टेढ़ा करके बच्चे को दूध पिलाना चाहिए। यदि निप्पल खाली होता है और बच्चा निप्पल को चूसता है तो बच्चे के पेट में हवा भर जाती है। पेट में हवा जाने के कारण बच्चा ठीक प्रकार से दूध नहीं पी पाता है। कभी-कभी बोतल में बिल्कुल भी जगह न होने के कारण दूध नहीं निकल पाता है। ऐसी स्थिति में बोतल को सीधा करना पड़ता है। जिससे बच्चा दूध आसानी से पी सके।
    यदि स्त्री अपने बच्चे को स्तन के दूध से बोतल के दूध पर लाना चाहती हैं तो पहले बच्चे को स्तन का दूध पिलाएं। बीच-बीच में बच्चे को बोतल का दूध भी देना शुरू करना चाहिए या सुबह-शाम बच्चे को स्तन का दूध दे तथा दोपहर के समय बच्चे को बोतल का दूध पिलाएं। ऐसा दो महीने तक करने के बाद स्त्री बच्चे को नियमित रूप से बोतल का दूध पिलाना शुरू कर सकती हैं।
    इसी प्रकार से यदि बच्चे को बोतल के दूध से मां के दूध पर लाना चाहे तो बच्चे को स्तन के पास लाकर चम्मच से दूध पिलाना चाहिए। बीच-बीच में बच्चा मां के स्तनों के निप्पल को मुंह में भर सकता है। जिससे मां के मस्तिष्क में संवेदना होने के कारण प्रोलैक्टीन हार्मोन्स उत्पन्न हो जाता है। इस हार्मोन्स से मां के स्तनों में धीरे-धीरे दूध बनने लगता है। इस प्रकार मां अपने बच्चे को बोतल के दूध से स्तनों के दूध पर ला सकती हैं।
    जन्म के लगभग 45 दिनों बाद बच्चे को गाय या भैंस का दूध पिलाया जा सकता है। कुछ स्त्रियों के अनुसार गाय के दूध में पहले और दूसरे महीने हल्का पानी मिलाना चाहिए क्योंकि इस दूध में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है। आमतौर पर बच्चे को 24 घंटे में 150 ग्राम दूध बच्चे के प्रति किलो वजन के अनुसार देना चाहिए।

स्वस्थ भारतीय बच्चे का वजन और लम्बाई-

  

गर्भावस्था गाईड

Vātsyāyana
Chapters
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