गर्भावस्था में व्यायाम
परिचय-
स्त्री को गर्भावस्था के दौरान किसी प्रसूति विशेषज्ञ तथा प्रसूति चिकित्सक की देख-रेख में प्रतिदिन हल्का व्यायाम करना चाहिए। ऐसा न करने से गर्भवती स्त्री को कष्ट हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान व्यायाम करते समय श्वासोच्छवास और आराम की स्थिति में आने की सही जानकारी अपने प्रसूति चिकित्सक से अवश्य प्राप्त करनी चाहिए।
गर्भावस्था के व्यायाम के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां-
गर्भावस्था के दौरान स्त्री को सुबह के समय व्यायाम करना चाहिए क्योंकि सुबह के समय वातावरण में धूल-मिट्टी आदि नहीं होती और वातावरण काफी साफ होता है।
जमीन पर दरी, मोटा कालीन या फिर कपड़ा बिछाकर व्यायाम करना चाहिए।
व्यायाम करते समय ढीले कपडे़ पहनने चाहिए।
सुबह और शाम खाली पेट व्यायाम करना चाहिए।
व्यायाम उसी अवस्था में करना चाहिए जब आपका मन प्रसन्न हो।
ऐसी स्त्रियां जिन्हें गर्भावस्था के प्रारम्भ में रक्त गया हो या फिर पहले गर्भपात हो चुका हो या फिर गर्भधारण के लिए बच्चेदानी के मुंह पर टांके लगाये गये हों, उन्हे वही व्यायाम करने चाहिए जिन्हे वह सरलतापूर्वक कर सके। गर्भवती स्त्रियों को अधिक मेहनत करने वाले व्यायाम नहीं करने चाहिए क्योंकि यह उनके लिए हानिकारक हो सकता है।
ऐसे व्यायाम जिन्हें गर्भवती स्त्रियों को प्रतिदिन करना चाहिए-
गर्भवती स्त्री को पीछे की तरफ झुककर खड़े होने से बचना चाहिए क्योंकि आमतौर पर शरीर के वजन को सन्तुलित करने के लिए स्त्री की पीछे की ओर झुकने की प्रवृत्ति होती है।
गर्भवती स्त्री के खड़े होने की सबसे सही स्थिति बिल्कुल सीधे खड़ा होना है। खडे़ होने के समय दोनों पैरों को एक-दूसरे के साथ रखना चाहिए।
कुर्सी पर बैठने की सही स्थिति कुर्सी के पीछे की तरफ पीठ को टिकाकर बैठना होता है।
गर्भवती स्त्री को लेटते समय दायीं या बायीं करवट लेटना चाहिए। लेटते समय तकिये को पैरों के नीचे रखने से अधिक आराम मिलता है।
गर्भवती स्त्री को किसी वस्तु को उठाते समय आगे की ओर नहीं झुकना चाहिए। वस्तु को उठाने के लिए कमर को सीधा रखते हुए दोनों घुटनों को मोड़कर उठाना चाहिए।
स्त्री को फर्श पर इस मुद्रा में लेटना चाहिए।
निम्न मुद्रा में व्यायाम करने से गर्भवती स्त्री की भुजाओं, योनि और मूत्रमार्ग के आस-पास की मांसपेशियों को आराम मिलता है।
इस मुद्रा में पीछे की तरफ सहारा लेकर बैठने से जननेन्द्रियां और जांघ की मांसपेशियों को लाभ मिलता है।
प्रसव के दौरान पीठ की इस तरह से मालिश करना अच्छा होता है तथा कमर दर्द और संकुचन होने से राहत मिलती है।
यह मुद्रा खड़े होते समय टांगे फैलाकर खडे़ होने से लेकर एड़ियों के बल बैठने तक, कमर दर्द और कब्ज से छुटकारा दिलाती है।
गर्भवती स्त्री को सीधा बैठकर पैर के तलवों को हाथों की सहायता से मिलाना चाहिए।
इसके बाद कोहनियों को धीरे-धीरे ऊपर की ओर ले जाकर वापस नीचे की ओर लाना चाहिए।
सांस लेने का व्यायाम-
सांस लेने के व्यायाम में सांस लेने की सभी मांसपेशियों का व्यायाम होता है। बच्चे के जन्म के समय मां को लम्बी सांस का लेना, सांस को रोकना और जोर लगाना पड़ता है। इस कारण सांस लेने का व्यायाम अपने आपमें विशेष महत्व रखता है। इस व्यायाम में अधिक से अधिक ऑक्सीजन फेफड़ों के द्वारा रक्त में जाती है और शरीर तक पहुंचती है।
सांस लेने के व्यायाम के लिए सबसे पहले गर्भवती महिला को पालथी मारकर दरी या कालीन पर बैठ जाना चाहिए। इस दौरान शरीर सीधा, कमर और कंधे सीधे तथा सिर और गर्दन भी सीधी रखनी चाहिए। सबसे पहले सांस लेकर छोड़नी चाहिए। इस क्रिया को 3 बार करना चाहिए। फिर लम्बी सांस लेकर काफी समय तक रोकने की कोशिश करनी चाहिए। इस अभ्यास को भी 5 बार प्रतिदिन करना चाहिए। ऐसा करने से स्वयं ही सांस रोकने की क्षमता बढ़ जाती है। सांस को लेने और छोड़ने की क्रिया बहुत ही सावधानी और सरलतापूर्वक करनी चाहिए।
गर्दन का व्यायाम-
गर्दन की मांसपेशियां मजबूत होने से प्रतिदिन के कार्यों में गर्भवती स्त्री को आसानी होती है।
गर्दन का व्यायाम करने के लिए किसी चटाई आदि पर पालथी मारकर बैठ जाएं। अपना शरीर खिंचा हुआ, कंधे ऊपर, कमर सीधी तथा सिर और गर्दन एक ही दिशा में होने चाहिए। गर्भवती स्त्री को सबसे पहले सिर को नीचे और आगे की इस प्रकार झुकाना चाहिए कि ठोड़ी जाकर छाती से मिल जाए। फिर धीरे से सिर को उठाना चाहिए तथा मुंह को खोल देना चाहिए। इस क्रिया को कुछ देर तक करते रहना चाहिए। फिर कुछ समय के बाद धीरे-धीरे अपनी गर्दन को नीचे लाकर मुंह को बन्द करना चाहिए। इस क्रिया के द्वारा गर्दन की सभी मांसपेशियों का व्यायाम पूरा हो जाता है। इस व्यायाम को रोजाना धीरे-धीरे 5 बार करना चाहिए।
गर्दन के दूसरे व्यायाम में इसी स्थिति में गर्दन को दाहिनी ओर मोड़कर अपनी ठोड़ी को पहले दाहिनी ओर कंधे के ऊपर लाना चाहिए। ऐसी स्थिति में कुछ समय समय तक रुके रहें। इसके बाद धीरे-धीरे बीच में लाएं तथा फिर बाएं कंधे की ओर जाना चाहिए। इस क्रिया से गर्दन के दोनों ओर की मांसपेशियों का व्यायाम हो जाता है। गर्दन के एक दूसरे व्यायाम में गर्दन को ऊपर की ओर उठाकर छत की ऊपर देखना चाहिए। ऐसी स्थिति में कम से कम 10 सेकेण्ड तक रहना चाहिए। फिर गर्दन को सामने की ओर लाकर 5 सेकेण्ड तक रोके रहते हैं। इसके बाद गर्दन को नीचे की ओर करते हैं ताकि ठोड़ी, छाती से छू जाए। इस क्रिया को 10 सेकेण्ड तक बारी-बारी से 5 बार करना चाहिए। अगले व्यायाम में गर्दन को दाहिनी ओर घुमाते हैं ताकि कान कंधों से छूने लगे। इस स्थिति में 10 सेकेण्ड तक रहना चाहिए। इसके बाद गर्दन को बीच में लाते हैं। इसी प्रकार अब गर्दन को बाईं तरफ ले जाएं और 10 सेकेण्ड तक गिनती करनी चाहिए। इसे प्रतिदिन 5 बार करना चाहिए।
कंधों का व्यायाम-
इस व्यायाम से गर्भवती स्त्री के दोनों कंधों, गर्दन तथा गर्दन के सामने और गर्दन के पीछे की मांसपेशियों का व्यायाम हो जाता है। वैसे तो यह व्यायाम बहुत ही सरल और साधारण है परन्तु इसका महत्व बहुत अधिक है।
कंधों का व्यायाम करने के लिए सबसे पहले दरी या कालीन पर बैठ जाएं। लम्बी सांस लेने के बाद दोनों कंधों को आगे से पीछे उठाते हुए घुमाना चाहिए तथा फिर पीछे से आगे की ओर घुमाना चाहिए। इस व्यायाम को लगभग 10-15 बार करना चाहिए। इस व्यायाम को करते समय कोशिश करनी चाहिए कि कंधे कानों से टकराते रहें।
व्यायाम करते समय अपने स्थान पर पालथी मारकर बिल्कुल सीधे बैठे रहें। आपके कंधे खिंचे हुए, गर्दन सामने, चेहरा सामने तथा नजरें दूर होनी चाहिए। एक लम्बी सांस लेने के बाद दाहिने हाथ को उठाकर पीठ के पीछे दूर तक ले जाना चाहिए। अपनी हथेलियां खुली और अंगुलियां नीचे की ओर करके अधिक समय तक रखना चाहिए। इसके बाद हाथ को सामने की ओर लाना चाहिए। लम्बी सांस लेने के बाद फिर बाएं हाथ को पीछे की ओर ले जाए तथा इसी प्रकार हाथ को पीठ के पीछे देर तक रखना चाहिए। कुछ समय के फिर दुबारा हाथ को धीरे से सामने लाएं। इस क्रिया को 6-7 बार करना चाहिए।
इस व्यायाम को करने से स्त्री के कंधों तथा स्तनों का व्यायाम हो जाता है। इससे स्तनों की मांसेपशियां ऊपर की ओर उठती है तथा भारी होने पर भी स्तन नीचे की ओर लटकते नहीं है।
कंधों का व्यायाम जब तक करना चाहिए जब तक कि स्त्री अपने बच्चे को दूध पिलाती है। ऐसा करने से स्तनों का आकार ठीक बना रहता है।
गर्भावस्था के दौरान कूल्हों और पैरानियम (मूलाधार) का व्यायाम-
कूल्हे और पैरानियम का व्यायाम अपने आपमें काफी खास होता है क्योंकि गर्भधारण के बाद पेट, कूल्हों, कमर और पैरानियम की मांसपेशियां शिथिल हो जाती है तथा मांसपेशियां और शरीर लटकने लगता है। कुछ स्त्रियों को हार्निया हो जाता है। नियमित रूप से इस प्रकार का व्यायाम करने से स्त्री चुस्त और उसकी मांसपेशियां पहले की तरह खिंची रहती है। इससे शरीर सुडौल बना रहता है। यही मांसपेशियां गर्भावस्था में भी बच्चे के वजन को साधे रहती हैं।
इन्हीं मांसपेशियों के द्वारा बच्चे के जन्म के समय स्त्री को ताकत लगानी पड़ती हैं। इस व्यायाम को बैठकर, लेटकर या फिर खडे़-खडे़ भी किया जा सकता है। इस व्यायाम में स्त्री को बाह्य रूप में कुछ भी नहीं करना पड़ता है बल्कि स्वयं को महसूस करना होता है।
इस व्यायाम को करते समय स्त्री को अपने कूल्हे की मांसपेशियों को इस तरह ढीला छोड़ देना चाहिए, जिस तरह पेशाब के समय शरीर ढीला हो जाता है। इसके बाद बीच में कूल्हे और पैरानियम की मांसपेशियों को कुछ इस तरह दबाना चाहिए जैसे आप बीच-बीच में पेशाब को रोक रही हों। इस क्रिया को 7-8 बार करना चाहिए। दूसरी बार दुबारा शरीर को ढीला छोड़े और अपने शरीर के कूल्हे और पैरानियम मांसपेशियों को इस प्रकार दबाएं जिस तरह कि आप पेशाब को काफी देर तक रोकें रहते हैं। इससे आपको मल, योनि, मूत्रद्वार और उसके ऊपर के भाग तथा पेट की नाभि तक एक खिंचाव महसूस होगा। इस क्रिया को 10 बार करना चाहिए। हर बार मांसपेशियों को इकट्ठा करके लम्बे समय तक रोके रहने और फिर शरीर को फिर ढीला करने से स्त्री को लाभ होता है।
बच्चे के जन्म के बाद मांसपेशियों के ढीला होने के कारण बच्चेदानी और मलद्वार की रक्तनलिकाएं बाहर निकलने लगती है। यही बवासीर होती है। लगातार कूल्हों और पैरानियम का व्यायाम करने से यह रोग भी ठीक किया जा सकता है। इस व्यायाम को करते समय स्त्रियों को विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए कि इस क्रिया को करते समय उन्हे अपनी सांस रोकनी और छोड़नी है।
टखनों का व्यायाम-
टखनों का मजबूत होना भी बहुत जरूरी होता है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान स्त्री के पूरे शरीर का भार टखनों पर होता है। इसलिए प्रतिदिन इनका व्यायाम करना चाहिए।
टखनों का व्यायाम करने के लिए स्त्री को दरी या कालीन पर बैठकर दोनों टांगों को लम्बा कर देना चाहिए। फिर एक टांग को उठाकर इस प्रकार मोडे़ कि दूसरे पैर के घुटनों के ऊपर आ जाएं। अब अपने एक हाथ से उसी पैर के टखनों को ऊपर से पकडे़ तथा दूसरे हाथ से उसको पहले एक तरफ मोड़ें। ऐसा करने के कुछ देर बाद फिर उसको दूसरी तरफ मोड़े। इस क्रिया को भी कई बार करना चाहिए।
घुटने और कमर का व्यायाम-
गर्भावस्था में जैसे-जैसे समय बढ़ता जाता है, उसी के साथ-साथ गर्भ में बच्चे, गर्भाशय तथा अन्य चीजों का भार बढ़ने के कारण कमर दर्द, घुटनों और टांगों में दर्द होने लगता है। दिनभर कार्य करने के कारण कमर और टांगों की मांसपेशियों पर खिंचाव पड़ने लगता है। इस कारण घुटने और कमर का व्यायाम इस अवस्था में स्त्री के लिए विशेष लाभकारी होता है।
घुटनों और कमर का व्यायाम करते समय सबसे पहले अपने घुटनों को मोडे़। इसके बाद आगे की ओर झुकें तथा हाथों की हथेलियों के सहारे अपने शरीर को साधे। ऐसी अवस्था में कमर सीधी होनी चाहिए। इस प्रकार दोनों घुटनों और दोनों हथेलियों के सहारे शरीर को साधे रहना चाहिए। कूल्हें और घुटने की सीध एक सी होनी चाहिए। कंधों और हाथों की सीध भी एक समान होना बहुत जरूरी है। इसके बाद अपने सिर को नीचे की ओर झुकाना चाहिए।
अपने हाथों को इस प्रकार मोड़ना चाहिए कि स्त्री का वजन कोहनियों पर हो तथा हाथ एक-दूसरे के सामने और दायीं हथेली बायें हाथ और बायीं हथेली दाएं हाथ को पकड़े हो। इस स्थिति में काफी समय तक रहना चाहिए। इसके बाद धीरे-धीरे घुटनों को लम्बा करना चाहिए और फिर हथेली पर वजन दें। अंत में आराम की मुद्रा में आ जाएं।
बत्तख की चाल वाला व्यायाम-
बत्तख की चाल वाला व्यायाम करने से कूल्हें की हडि्डयां, उस पर सभी मांसपेशियों, कूल्हों की हडि्डयों के ऊपर का गोला तथा नीचे का गोला आदि सभी का व्यायाम हो जाता है। इस व्यायाम को बत्तख के समान आकार वाला व्यायाम भी कहते हैं। इसका आकार इस प्रकार होता है जैसे कि लोग शौचक्रिया के समय बैठते हैं।
इस व्यायाम को करने के लिए जमीन पर पैरों के बल बैठ जाना चाहिए। इसके बाद अपना बायां पैर बाहर की ओर निकालें और एक कदम आगे बढ़ाये। अब दाएं पैर को बाहर निकालकर एक कदम आगे की ओर बढ़ाएं। इसी प्रकार कमरे में धीरे-धीरे बैठकर चलते रहना चाहिए। फिर थोड़ा आराम करके इस क्रिया को 4-5 बार करना चाहिए।
पीठ को कमान की स्थिति में लाने वाला व्यायाम-
इस व्यायाम को करने से गर्भवती स्त्री की कमर की मांसपेशियो, कूल्हे की मांसपेशियों तथा हडि्डयों का सम्पूर्ण व्यायाम हो जाता है। गर्भावस्था में अगर स्त्री को कमर दर्द हो तो इस व्यायाम को करने से उसे लाभ होता है।
कूल्हों को उठाने वाला व्यायाम-
इस व्यायाम को करने से कूल्हे और पीठ की हडि्डयों तथा मांसपेशियों का व्यायाम होता है। इससे गर्भावस्था में स्थायी मजबूती मिलती है और कूल्हे भी बडे़ नहीं होते हैं।
इस व्यायाम को करने के लिए सबसे पहले दरी या कालीन बिछाकर लेट जाएं। अब दोनों घुटनों को मोडे़ तथा अपने पैरों को जमीन पर साधे रहें। हाथ शरीर के दोनों तरफ हो तथा हथेलियां जमीन की तरफ टिकी हो। इसके बाद अपना वजन पैरों पर दें। हाथ पर भी जोर देकर कूल्हों को ऊपर उठाने की कोशिश करें। ऐसी स्थिति में 10 सेकेण्ड तक बने रहना चाहिए। अंत में धीरे-धीरे कूल्हों को जमीन पर टेक दें।
गर्भवती स्त्री को अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही व्यायाम करना चाहिए।
पीठ को गोलाकार स्थिति में लाने वाला व्यायाम-
इस व्यायाम को करने से पीठ और कमर की मांसपेशियों को आराम मिलता है तथा कमर दर्द में भी लाभ मिलता है।
अब सबसे पहले नीचे झुककर, हाथों को जमीन पर टिका दें। हाथों को कंधे की सीध में तथा घुटनों को कूल्हों की सीध में रखें। दोनों घुटनों के बीच में कुछ स्थान रखें ताकि व्यायाम करते समय दोनों घुटने आपस में न टकरायें। इसके बाद पीठ को सीधा रखें और ऊपर की ओर देखें। अब पीठ को ऊपर उठाकर ऊपर की ओर देखें। अंत में शुरुआती स्थिति में आ जाएं। इस व्यायाम को दिन में 2-3 बार करना चाहिए।
गर्भावस्था में इस व्यायाम को करते समय स्त्री का पेट उसकी रीढ़ की हड्डी से कुछ देर हो जाएगा। इससे उसे थोड़ा सा अजीब महसूस हो सकता है। दूसरा, व्यायाम करते समय जब स्त्री अपना चेहरा नीचे की ओर ले जाती है तो अधिक रक्त उसके चेहरे की तरफ आने पर उसे अपना चेहरा लाल और कुछ गर्म सा महसूस होने लगेगा। जिन स्त्रियों का ब्लडप्रेशर अधिक हो या जिन्हे र्भावस्था के शुरू में रक्तस्राव हुआ हो, उन्हें इस व्यायाम को नहीं करना चाहिए।
पांव की ऐंठन के लिए व्यायाम-
नमक की कमी, रक्त संचार में कमी, कैल्शियम और विटामिन बी की कमी के कारण स्त्रियों के पैरों तथा पिण्डलियों में रात या दिन में ऐंठन सी होने लगती है। इसको रोकने के लिए निम्नलिखित व्यायाम करने चाहिए-
सबसे पहले अपने पंजों पर 5 कदम चलना चाहिए। फिर एड़ी के सहारे 5 कदम पीछे आएं। फिर पंजे और एड़ी के बीच की जगह, बाहरी किनारे के सहारे 5 कदम चलें। इस व्यायाम को रोजाना 3-4 बार करना चाहिए। भोजन में विटामिन बी और कैल्शियम का अधिक प्रयोग करना चाहिए।
कमर और पेट का व्यायाम-
यह व्यायाम कमर दर्द तथा रीढ़ की निचली हडि्डयों के दर्द के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस व्यायाम की सहायता से स्त्रियां अपने पेट की मांसपेशियों को ढीला होने से भी रोक सकती हैं। यह व्यायाम प्रसव के बाद भी किया जा सकता है। गर्भावस्था में बच्चेदानी और बच्चे का वजन कमर की मांसपेशियों पर पड़ने के कारण हमेशा के लिए कमर में दर्द हो सकता है। इसलिए स्त्रियों को इस व्यायाम को नियमित रूप से करना चाहिए।
कमर और पेट के व्यायाम के लिए कालीन या दरी पर खडे़ होकर एक लम्बी सांस लें। घुटनों को आगे की ओर झुकाएं तथा पेट को अन्दर पीठ की ओर ले जाएं। इस अवस्था को बनाए रखना चाहिए। इसके बाद सांस को छोड़ दें तथा घुटने सीधे कर दें।
कमर के अन्य व्यायाम-
कमर के अन्य व्यायाम को करने के लिए सबसे पहले खड़े होकर अपने एक पैर को एक तरफ धीरे-धीरे ले जाएं। पैर को कुछ समय के उसी स्थिति में रखें। इसके बाद पैरों को धीरे-धीरे पास में लाएं। इसी तरह का व्यायाम दूसरे पैर से भी करना चाहिए।
इस प्रकार का व्यायाम आप अपने पैर को आगे की तरफ लाकर भी कर सकती हैं-
सबसे पहले खडे़ होकर अपने दोनों हाथों को कमर रखें और कमर के ऊपर के भाग को पहले दाहिनी तरफ मोड़े, कुछ समय रुकें और फिर सीधी हो जाएं। अब लंबी लेकर बाईं ओर मुडें। इस व्यायाम को दिन में 5-6 बार करना चाहिए।
टांगों का व्यायाम-
टांगों की मांसपेशियों का व्यायाम करने से रक्तसंचार तथा पैरों के ऐंठन आदि में लाभ मिलता है।
इस व्यायाम को करते समय सबसे पहले दरी या कालीन पर एक करवट लेट जाएं। इसके बाद अपने एक हाथ को ऊपर करके उस पर सिर रखें तथा दूसरे हाथ को अपने पेट के सामने रखें। इसके बाद टांग को कूल्हों से उठाकर 10 सेकेण्ड तक रोके रहे तथा धीरे-धीरे फिर टांग को नीचे की ओर लाएं। इसी प्रकार इस क्रिया को दूसरी ओर भी करवट लेकर करना चाहिए।
टांगों के अन्य व्यायाम में सबसे पहले दरी या कालीन पर बैठ जाएं। इसके बाद पैरों को फैलाएं। पैरों को इसी अवस्था में 10 सेकेण्ड तक रोकें रहें। इसके बाद दोनों पैरों को पास लाएं। टांगों के अन्य व्यायाम में दरी पर घुटनों के सहारे बैठकर पैर को पीछे की तरफ इस प्रकार रखें कि एक पैर दूसरे पैर के ऊपर हो।
अब धीरे-धीरे घुटनों पर जोर देकर अपने शरीर का वजन घुटनों पर दें। 10 तक गिनती गिनते हुए दुबारा पहली वाली स्थिति में लौट आएं। इस क्रिया को 5-6 बार करना चाहिए।
व्यायाम करने के बाद आराम-
व्यायाम करने के बाद स्त्री को पूरा आराम करना चाहिए। आंखें बन्द करके उस अवस्था में लेट जाएं जिस अवस्था में अधिक आराम मिलता हो। इस दौरान अपने शरीर की मांसपेशियों को ढीला छोड़ दें। अपने दिमाग से हर तरह की परेशानियों और चिंताओं को निकालकर लगभग 10-15 मिनट तक आराम से लेटे रहें।