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बच्चे के जन्म के बाद स्त्री के शरीर की समस्याएं

परिचय-

       बच्चे को जन्म देने के बाद स्त्री शारीरिक रूप से बहुत अधिक थक चुकी होती हैं। इसलिए प्रसव के बाद जहां तक हो सके उसे अधिक से अधिक आराम करना चाहिए।     

        स्त्री जब पहली बार अपने बच्चे को देखती है तो उसे बच्चे में सूजन, आंखें कुछ अन्दर की तरफ, शरीर पर बाल, सिर पर कैपुट का होना, कुछ वजन का कम होना आदि शारीरिक कमियां दिखाई पड़ती हैं। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ बच्चा अपने सही रंग, रूप और आकार में आ जाता है। इसलिए बच्चे को लेकर इस प्रकार की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। प्रसव के बाद स्त्री को पूर्ण विश्राम, पूरी नींद, खुलकर मलत्याग करना तथा हल्का भोजन करना चाहिए। यदि प्रसव के समय टांके लगे हो तो टांके लगे हुए स्थान की साफ-सफाई अच्छी तरह रखनी चाहिए। अगर टांके के स्थान की साफ-सफाई ठीक से नहीं हुई तो टांके खराब हो जाने से मांस खुल जाता है। टांके कैटगट से लगाये जाते हैं जो घाव के भरने पर स्वयं घुले जाते हैं। कैटगट के लगाये टांकों के किनारे चुभते हैं परन्तु सिल्क के कांटे चुभते नहीं हैं लेकिन उन्हें काटना पड़ता है।

        दिन में लगभग 2 बार एक लीटर गुनगुने पानी में एन्सीसैप्टिक दवा डालकर सभी टांकों को रूई की सहायता से साफ करके डॉक्टर द्वारा बताई गई दवा का प्रयोग करना चाहिए।

        आमतौर पर जब स्त्री अपने मलद्वार को साफ करती हैं तो कभी-कभी उसका हाथ टांकों पर लग जाता है जिससे टांकों के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए स्त्रियों को मलद्वार की सफाई करते समय विशेष सावधानी रखनी चाहिए।

        बच्चे को जन्म देने के बाद स्त्री के शरीर में कई परिवर्तन आ जाते हैं जैसे- स्तनों का बड़ा हो जाना, स्तनों में दूध का बढ़ जाना, स्तनों में दर्द का अहसास होना, सोते समय दबाव पड़ने के कारण स्तनों से दूध का निकलना, पेट का हल्कापन तथा शरीर में मानसिक और शारीरिक थकान का होना आदि।

        स्त्री जब पहली बार अपने बच्चे को दूध पिलाने के लिए स्तनों से लगाती हैं तो उसके शरीर में एक प्रकार की संवेदना सी प्रतीत होती है। इससे स्त्री के स्तनों में कुछ कड़ापन और दर्द होता है। बच्चे के दूध पीते ही शरीर में संवेदना के साथ हार्मोन्स निकलते हैं जिससे स्त्री के स्तन और बच्चेदानी दोनों सिकुड़ने लगते हैं। इस प्रकार बच्चे को दूध मिलता है। यदि स्तनों में अधिक दूध उतर आए और आपको दर्द हो तो स्तनों को दबाकर दूध निकाल देना चाहिए। इसके बाद स्तनों की हल्के गर्म पानी से सिंकाई भी करनी चाहिए। इससे स्तनों का दर्द समाप्त हो जाता है।

        स्त्री का शरीर प्रसव के समय टांके लगने से ढीला और कमजोर हो जाता है जिस कारण बैठते समय अधिक दर्द होता है। इसलिए बैठने के लिए स्त्री को आरामदायक गद्दों का प्रयोग करना चाहिए।

        बच्चे के जन्म के बाद स्त्री के शरीर की मांसपेशियों को पहले जैसा होने में लगभग 40 दिनों का समय लग जाता है। इसलिए उसे प्रसव के बाद 40 दिनों तक अधिक से अधिक आराम करना चाहिए।

        बहुत सी स्त्रियां इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं देती हैं। इस कारण प्रसव के बाद उनके शरीर में दर्द, विशेषकर कमर और कमर के नीचे के भाग में दर्द और पैरानियम में दर्द होता रहता है। ऐसी स्थिति में पीड़ित स्त्री की सहायता करने के लिए किसी व्यक्ति का होना जरूरी होता है जो बच्चे की देख-रेख, कपडे़ बदलना, बच्चे को नहलाना, कपडे़ धोना तथा अन्य कार्यों में आपकी मदद कर सके।

प्रसव के बारे में कुछ जरूरी बातें निम्नलिखित हैं जिन्हें प्रसव के बाद अवश्य अपनाना चाहिए-

    स्त्रियों को अपने शरीर की स्वच्छता के बारे में विशेष ध्यान रखना चाहिए।
    प्रसव के पश्चात स्त्रियों को हल्का तथा जल्द पचने वाला भोजन करना चाहिए।
    पैरानियम की अधिक सफाई रखनी चाहिए। मलद्वार को प्रतिदिन साबुन और हल्के गर्म पानी से साफ करना चाहिए।
    प्रसव के समय लगे हुए टांकों को साफ रखना चाहिए और एन्टीबायोटिक ट्यूब (दवाई) का प्रयोग करना चाहिए।
    प्रसव के बाद के शारीरिक दर्द के लिए दवाइयों का कम से कम मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
    नींद की दवा का प्रयोग कम मात्रा में करना चाहिए।
    चारपाई से उठते समय दोनों टांगों को एक साथ नहीं उठाना चाहिए।
    प्रसव के पश्चात स्त्रियों के शरीर में कमजोरी आ जाती है। इस कारण से उन्हे अधिक देर तक खडे़ नहीं रहना चाहिए।
    प्रतिदिन सुबह के समय थोड़ी देर टहलना चाहिए।
    अपने घुटने को सीधा रखना चाहिए परन्तु बीच-बीच में पैरों के घुटनों को मोड़ते रहना चाहिए जिससे कूल्हे और घुटने कुछ चलते रहे।
    प्रसव के बाद स्त्री को अपने टखनों को हिलाते रहना चाहिए। टखनों को दाईं, बाईं तरफ तथा आगे और पीछे की ओर हिलाना चाहिए।
    प्रसव के बाद कुछ दिनों तक स्त्री को भारी वजन नहीं उठाना चाहिए क्योंकि भारी वजन उठाकर चलने से हानि हो सकती है।
    यदि स्त्री को इस समय खांसी या कब्ज हो तो उसे इसका शीघ्र इलाज कराना चाहिए। नहीं तो यह बीमारी स्त्री और उसके बच्चे के लिए हानिकारक हो सकती है।
    स्त्रियों को इस अवस्था में झुककर कोई कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि झुककर कार्य करने से पेट नीचे की ओर लटक सकता है।
    कोहनियों और कंधों को ढीला रखना चाहिए।
    यदि किसी कारणवश स्त्री को झुककर कोई वस्तु उठानी पड़ जाए तो घुटनों को मोड़कर वस्तु को उठाएं परन्तु वस्तु अधिक भारी नहीं होनी चाहिए तथा अपनी कमर को सीधी रखना चाहिए।
    स्त्री को अपने शरीर की प्रतिदिन अच्छे तेल से मालिश करवानी चाहिए जिससे शरीर चुस्त और शरीर के निशान धीरे-धीरे कम होते चले जाएंगे।
    स्त्री को सन्तुलित भोजन करना चाहिए जो कम मसालों वाला और कम चिकनाईयुक्त होना चाहिए।
    शरीर को फिट रखने के लिए स्त्रियों को व्यायाम करते रहना चाहिए। पैरानियम भाग का व्यायाम बहुत अधिक जरूरी होता है। अन्यथा स्त्रियां मूत्र करने पर अपना नियन्त्रण खो सकती है।
    यदि प्रसव के बाद स्त्री का वजन बढ़ गया हो तो उसे अपना वजन कम करने का प्रयास करना चाहिए। पेट और कूल्हों को ठीक बनाये रखने के लिए वाईबैटर का प्रयोग करना चाहिए।
    प्रसव के बाद स्त्री को थोड़ा-थोड़ा व्यायाम करना चाहिए। अचानक अधिक व्यायाम करने से उसके शरीर को हानि हो सकती है।

गर्भावस्था गाईड

Vātsyāyana
Chapters
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