प्रसव के बाद स्त्रियों के शरीर में हमेशा के लिए बदलाव
परिचय-
प्रसव अर्थात बच्चे के जन्म के बाद के बाद स्त्रियों के शरीर में कुछ बदलाव आना स्वाभाविक है। इन बदलावों के लिए अगर स्त्री अपने शरीर की शुरु से ही देखभाल करें तो यह बदलाव इतन कम होते हैं कि कोई स्त्री को देखकर यह बता ही नहीं सकता कि वह पहले कभी गर्भवती रह चुकी है। स्त्रियों के शरीर में छोटे-छोटे बदलाव निम्नलिखित है-
एनीमिया (खून की कमी)-
बच्चे को जन्म देने के बाद स्त्री के शरीर में रक्त की कमी होने के दो प्रमुख कारण होते हैं-
1. प्रसव के समय रक्त का अधिक मात्रा में निकल जाना।
2. स्त्री द्वारा गर्भावस्था में अपने रक्त की जांच न करवाना।
गर्भावस्था का समय बढ़ने के साथ-साथ स्त्री को सन्तुलित आहार न मिलने के कारण उसके चेहरे पर कभी-कभी झाईंयां भी पड़ जाती हैं। ऐसी अवस्था में स्त्री को प्रसव के 3 महीने बाद तक लौह पदार्थयुक्त भोजन देना बहुत जरूरी होता है। इसके साथ ही उसे कैप्सूल, गोलियां या पीने की दवा भी सेवन के लिए दी जा सकती हैं।
प्रसव के बाद त्वचा में बदलाव-
जिन स्त्रियों की त्वचा खुश्क होती है उनकी त्वचा बच्चे को जन्म देने के बाद और भी अधिक खुश्क हो जाती है। इसके लिए त्वचा पर किसी अच्छे तेल का प्रयोग करना चाहिए। जिन स्त्रियों का वजन अधिक होता है, उनके शरीर पर पके हुए लाल रंग के घाव दिखाई पड़ने लगते हैं। इस कारण अपने वजन को बढ़ने नहीं देना चाहिए।
वजन-ba
गर्भावस्था के दौरान लगभग सभी स्त्रियों को वजन पहले से अधिक बढ़ जाता है। इस अवस्था में स्त्रियों का वजन 8 किलो से 12 किलो तक बढ़ता है, जिसमें शरीर पर चर्बी का जमाव, शरीर में अधिक पानी का जमाव, बच्चे, बच्चेदानी और एमनीओटिक द्रव का वजन प्रमुख होता है। प्रसव के बाद भी स्त्री का वजन अधिक बना रहता है। बच्चे के जन्म के 3 महीने तक यदि स्त्री लगातार अपने बच्चे को स्तनपान कराती है तो उसका बढ़ा हुआ वजन पहले जैसा हो जाता है। परन्तु अधिक चिकनाईयुक्त भोजन करने, मेवे आदि के सेवन के कारण स्त्री का वजन बढ़ता चला जाता है। यदि स्त्री व्यायाम आदि नहीं करती हैं तो भी उसका शरीर भारी और भद्दा दिखने लगता है।
दूसरी ओर कुछ स्त्रियां अपने शरीर के आकार और सुन्दरता को बनाये रखने के लिए बच्चे को दूध पिलाना पसन्द नहीं करती हैं। इसके साथ ही वे भोजन भी कम मात्रा में करती हैं।
शौचक्रिया-
प्रसव के बाद सामान्य तौर पर स्त्रियों को कब्ज की शिकायत रहती है। भोजन करने के तौर-तरीकों में बदलाव लाकर कब्ज की शिकायत हमेशा के लिए दूर की जा सकती है। कब्ज को दूर करने के लिए ईसबगोल की भूसी या गोलियों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि आप जैसा अपनी आन्तों को देते रहेंगे, आन्ते वैसी ही बन जाएगी। अधिक मात्रा में तरल पदार्थों, हरी सब्जियां, दही, दाले तथा अन्य द्रवों का प्रयोग करने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती हैं।
प्रसव के बाद स्त्रियों के बाल-
प्रसव के बाद बालों का टूटना, पतला होना, बालों का सफेद होना, बालों का न बढ़ना आम बात है। लेकिन प्रतिदिन बालों की अच्छी तरह से देख-भाल करने से बालों के यह सभी दोष दूर किये जा सकते हैं।
प्रसव के बाद स्त्रियों के दांतों की स्थिति-
प्रसव के बाद स्त्री के दांतों की चमक में कमी आ जाती है। दांतों में दरारे पड़ना, दांतों में छेद हो जाना, मसूड़ों का सूजना व मवाद का आना आदि स्त्री के लिए प्रमुख समस्याएं होती है। इससे बचने के लिए गर्भावस्था में मसूड़ों की मालिश तथा दांतों को साफ रखना चाहिए। इससे दांतों के विकारों से छुटकारा मिलता है।
वेरीकोस धमनियां-
स्त्री में गर्भावस्था के समय हर बार वेरीकोस धमनियां बनती है। लगातार गर्भावस्था के कारण यह काफी बढ़ जाती है तथा शरीर में हानि देती हैं। पैरों में वेरीकोस धमनियां ठीक होने में अधिक समय लगता है परन्तु फिर भी गुनगुने नमकीन पानी की सिंकाई, पैरों को सदैव ऊपर करके बैठना, सोते समय पैरों के नीचे तकिया रखकर सोना, शौच क्रिया के लिए अधिक देर तक न बैठना तथा अधिक देर तक खड़े रहने से लाभ होता है। वेरीकोस धमनियों का आपरेशन करके तथा इंजेक्शन द्वारा भी ठीक किया जा सकता है।
प्रसव के बाद शरीर की त्वचा पर दाग-
गर्भावस्था में स्त्री के स्तन, पेट और जांघों की त्वचा खिंच जाती है। इस खिंचाव के कारण स्त्री के शरीर की त्वचा पर हल्के रंग के दाग दिखाई पड़ने लगते हैं। जिन स्त्रियों का वजन अधिक होता है या जिन स्त्रियों के दो बच्चे होते हैं, उन स्त्रियों के शरीर की त्वचा पर दाग बहुत अधिक मात्रा में दिखाई पड़ते हैं।
प्रतिदिन व्यायाम और शरीर की मालिश करने से स्त्रियों का वजन नियन्त्रित रहता है। वजन नियन्त्रित होने से त्वचा पर दाग कम मात्रा में होते हैं। त्वचा के दाग-धब्बों को दूर करने के लिए प्लास्टिक सर्जरी भी की जा सकती है।
स्तनों में बदलाव-
गर्भावस्था में लगातार हार्मोन्स में परिवर्तन के कारण स्त्रियों के स्तन भारी और लम्बे हो जाते हैं। इस अवस्था में अगर स्तनों की ठीक प्रकार से देखभाल न की जाए तो इनका आकार बदल जाता है। स्तन ढीले या लटक जाने पर दुबारा पहले जैसे नहीं हो पाते हैं। इसलिए स्तनों की सही तरीके से देखभाल करनी चाहिए।
इससे स्तनों के निप्पल का रंग गहरा होना तथा उसके पास की त्वचा पर दाग का रंग हमेशा के लिए ठीक हो जाता है।
पैरों में बदलाव-
अधिक शारीरिक थकान, देर तक खड़े होकर काम करना, ज्यादा दूरी तक पैदल चलना तथा ढके जूते पहनने के कारण स्त्री के पैर खराब हो जाते हैं। गर्भावस्था में शरीर के लिंगामेंट मांसपेशियों तथा दो हडि्डयों के बीच बांधने वाली नलिकाएं ढीली हो जाती है जिससे पैरों के आकार में बदलाव हो जाता है।
चाल में बदलाव-
गर्भावस्था में हार्मोन्स के कारण तथा प्रसव के बाद हडि्डयों का आकार बदल जाता है। इस कारण स्त्री की चाल में भी परिवर्तन आ जाता है। इसकी वजह से उसकी कमर तथा कूल्हों में दर्द रहता है। इस दर्द से छुटकारा पाने के लिए प्रसव के बाद स्त्री को हल्का व्यायाम करने से लाभ मिलता है।
बवासीर-
गर्भावस्था के समय स्त्रियों में बवासीर उभर आते हैं। वैसे तो यह साधारण बात है। प्रसव के समय यह बवासीर अधिक बढ़ जाते हैं लेकिन प्रसव के बाद धीरे-धीरे खुद ही कम भी हो जाते हैं। बवासीर के कारण स्त्री को उठने-बैठने तथा दैनिक कार्यों में अधिक दर्द तथा कष्ट होता है। यदि प्रसव के बाद भी बवासीर बना रहता है तो इसकी चिकित्सा शीघ्र ही करानी चाहिए। बवासीर की चिकित्सा इन्जैक्शन, ऑपरेशन, लेजर चिकित्सा तथा अधिक साफ-सफाई व दवाईयों द्वारा किया जा सकती है।
मूत्र की शिकायत-
गर्भावस्था के बाद ज्यादातर स्त्रियों का अपने मूत्र पर से नियन्त्रण खो जाता है। खांसने या छींकने पर भी उनका मूत्र निकल जाता है। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए स्त्रियों को रोजाना हल्के व्यायाम करने चाहिए।
पैरानियम-
पैरानियम वहीं जगह है जहां प्रसव होने के बाद स्त्री को टांके लगाये जाते हैं। टांकों के दाग, मांसपेशियों का मोटापन और दर्द कुछ दिनों तक बना रहता है। धीरे-धीरे समय बीतने और व्यायाम करने पर टांकों का दर्द समाप्त हो जाता है। इसके बावजूद भी कुछ स्त्रियों को संभोग क्रिया के समय दर्द महसूस होता है। इस प्रकार की समस्या होने पर अपने डॉक्टर को तुरन्त दिखाना चाहिए।
यदि बच्चे के जन्म के बाद स्त्री को टांके लगते हैं तो टांकों के निशान इसके किनारों पर देखे जा सकते हैं। योनि में बच्चे के जन्म के बाद घाव होने से छाले आदि देखे जा सकते हैं। इन घावों से पानी की तरह एक तरल पदार्थ रिस-रिसकर निकलता रहता है जिससे जलन और सूजन भी होती है।
बच्चेदानी-
प्रसव के बाद स्त्री की बच्चेदानी भी पहले की तुलना में बड़ी और मोटी हो जाती है। प्रथम मासिक स्राव होने के समय अधिक रक्त निकलता है। इसी तरह लगभग 6 महीने तक अधिक रक्तस्राव तथा अधिक समय तक मासिक स्राव होने के कारण धीरे-धीरे बच्चेदानी का आकार सामान्य हो जाता है। यह हार्मोन्स के बदलाव के कारण होता है। कुछ स्त्रियों को मासिकस्राव के समय कुछ दर्द होता है तथा कुछ स्त्रियों में दर्द नहीं होता है।