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मेरा वतन वही है

चिश्ती ने जिस ज़मीं पे पैग़ामे हक़ सुनाया,
नानक ने जिस चमन में बदहत का गीत गाया,
तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया,
जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुड़ाया,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥

सारे जहाँ को जिसने इल्मो-हुनर दिया था,
यूनानियों को जिसने हैरान कर दिया था,
मिट्टी को जिसकी हक़ ने ज़र का असर दिया था
तुर्कों का जिसने दामन हीरों से भर दिया था,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥

टूटे थे जो सितारे फ़ारस के आसमां से,
फिर ताब दे के जिसने चमकाए कहकशां से,
बदहत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकां से,
मीरे-अरब को आई ठण्डी हवा जहाँ से,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥

बंदे किलीम जिसके, परबत जहाँ के सीना,
नूहे-नबी का ठहरा, आकर जहाँ सफ़ीना,
रफ़अत है जिस ज़मीं को, बामे-फलक़ का ज़ीना,
जन्नत की ज़िन्दगी है, जिसकी फ़िज़ा में जीना,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥

गौतम का जो वतन है, जापान का हरम है,
ईसा के आशिक़ों को मिस्ले-यरूशलम है,
मदफ़ून जिस ज़मीं में इस्लाम का हरम है,
हर फूल जिस चमन का, फिरदौस है, इरम है,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥

मोहम्मद इक़बाल की शायरी

मोहम्मद इक़बाल
Chapters
तराना-ए-हिन्दी (सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा) लबरेज़ है शराब-ए-हक़ीक़त जवाब-ए-शिकवा आम मशरिक़ के मुसलमानों का दिल मगरिब में जा अटका है हर मुक़ाम से आगे मुक़ाम है तेरा जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी असर करे न करे सुन तो ले मेरी फ़रियाद अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा एक आरज़ू उक़ाबी शान से झपटे थे जो बे-बालो-पर निकले सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं परीशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए है कलेजा फ़िग़ार होने को अक़्ल ने एक दिन ये दिल से कहा नसीहत ख़ुदी में डूबने वालों लेकिन मुझे पैदा किया उस देस में तूने सफ़र कर न सका हिमाला ख़ुदा के बन्दे तो हैं हज़ारों बनो‌ में फिरते हैं मारे-मारे फिर चराग़े-लाला से रौशन हुए कोहो-दमन न आते हमें इसमें तकरार क्या थी आता है याद मुझ को गुज़रा हुआ ज़माना अजब वाइज़ की दींदारी है या रब गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बू न बेगानावार देख कभी ऐ हक़ीक़त-ए- मुन्तज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में गेसू-ए- ताबदार को और भी ताबदार कर हम मश्रिक़ के मुसलमानों का दिल जिन्हें मैं ढूँढता था आसमानों में ज़मीनों में ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं ख़ुदा का फ़रमान लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी चमक तेरी अयाँ बिजली में आतिश में शरारे में ख़िरदमंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है जब इश्क़ सताता है आदाबे-ख़ुदागाही क्या कहूँ अपने चमन से मैं जुदा क्योंकर हुआ अनोखी वज़्अ है सारे ज़माने से निराले हैं मजनूँ ने शहर छोड़ा है सहरा भी छोड़ दे मुहब्बत का जुनूँ बाक़ी नहीं है नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शनीदन दास्ताँ मेरी नया शिवाला सितारों से आगे जहाँ और भी हैं तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ तू अभी रहगुज़र में है ज़मीं-ओ-आसमाँ मुमकिन है हकी़क़ते-हुस्न साक़ी परवाना और जुगनू जमहूरियत राम बच्चों की दुआ जुगनू गुलज़ारे-हस्ती-बूद न बेगानावार देख तिरे इश्क की इंतहा चाहता हूँ सच कह दूँ ऐ ब्रह्मन गर तू बुरा न माने न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए दयारे-इश्क़ में अपना मुक़ाम पैदा कर मुझे आहो-फ़ुगाने-नीमशब का ये पयाम दे गई है मुझे सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा चमने-ख़ार-ख़ार है दुनिया जुदाई मेरी निगाह में है मोजज़ात की दुनिया लहू अपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर हादसा वो जो अभी पर्दा-ए-अफ़लाक में है ख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र ओ नाज़ नहीं मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ू-मंदी मेरी नवा-ए-शौक़ से शोर हरीम-ए-ज़ात में न तख़्त ओ ताज में ने लश्कर ओ सिपाह परेशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए तू ऐ असीर-ए-मकाँ ला-मकाँ से दूर नहीं वहीं मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी वो हर्फ़-ए-राज़ के मुझ को सिखा गया है जुनूँ ज़मिस्तानी हवा में गरचे थी शमशीर की तेज़ी मेरा वतन वही है