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जह्नुका गंगापान तथा जगदग्नि और विश्वामित्रकी उत्पत्ति

श्रीपराशरजी बोले

राजा पुरूरवाके परम बुद्धिमान आयु, अमावसु, विश्वावसु, श्रुतायु, शतायु और अयुतायु नामक छः पुत्र हुए ॥१॥

अमावसुके भीम, भीमके कात्र्जन, कात्र्जनके सुहोत्र और सुहोत्रके जह्नु, नामक पुत्र हुआ जिसने अपनी सम्पूर्ण यज्ञशालाको गंगाजलसे आल्पावित देख क्रोधसे रक्तनयन हो भगवान् यज्ञपुरुषको परम समाधिके द्वारा अपनेमें स्थापित कर सम्पूर्ण गंगाजीको पी लिया था ॥२-४॥

तब देवर्षियोंने इन्हें प्रसन्न किया और गंगाजीको इनकी पुत्रीरूपसे पाकर ले गये ॥५-६॥

जह्नुके सुमन्तु नामक पुत्र हुआ ॥७॥

सुमन्तुके अजक, अजकके बलाकाश्व, बलाकाश्वके कुश और कुशके कुशाम्ब, कुशनाभ, अधूर्त्तरजा और वसु नामक चार पुत्र हुए ॥८॥

उनमेंसे कुशाम्बने इस इच्छासे कि मेरे इन्द्रके समान पुत्र हो , तपस्या की ॥९॥

उसके उग्र तपको देखकर ' बलमें कोई अन्य मेरे समान न हो जाये ' इस भयसे इन्द्र स्वयं ही इनका पुत्र हो गया ॥१०॥

वह गाधि नामक पुत्र कौशिक कहलाया ॥११॥

गाधिने सत्यवती नामकी कन्याको जन्म दिया ॥१२॥

उसे भृगुपुत्र ॠचीकने वरण किया ॥१३॥

गाधिने अति क्रोधी और अति वृद्ध ब्राह्मणको कन्या न देनेकी इच्छासे ऋचीकसे कन्याके मूल्यमें जो चन्द्रमाके समान कान्तिमान् और पवनके तुल्य वेगवान् हों, ऐसे एक सहस्त्र श्यामकर्ण घोड़े माँगे ॥१४॥

किन्तु महर्षि ऋचीकने अश्वतीर्थसे उप्तन्न हुए वैसे एक सहस्त्र घोड़े उन्हें वरुणसे लेकर दे दिये ॥१५॥

तब ऋचीकने उस कन्यासे विवाह किया ॥१६॥

( तदुपरान्त एक समय ) उन्होंने सन्तानकी कामनासे सत्यवतीके लिये चरु ( यज्ञीय खीर ) तैयार किया ॥१७॥

और उसीके द्वारा प्रसन्न किये जानेपर एक क्षत्रियश्रेष्ठ पुत्रकी उप्तत्तिके लिये एक और चरु उसकी माताके लिये भी बनाया ॥१८॥

और ' यह चरु तुम्हारे लिये है तथा यह तुम्हारी माताके लिये - इनका तुम यथोचित उपयोग करना - ' ऐसा कहकर वे वनको चले गये ॥१९॥

उनका उपयोग करते समय सत्यवतीकी माताने उससे कहा - ॥२०॥

" बेटी ! सभी लोग अपने ही लिये सबसे अधिक गुणवान् पुत्र चाहते हैं, अपनी पत्नीके भाईके गुणोंमें किसीकी भी विशेष रुचि नहीं होती ॥२१॥

अतः तु अपना चरु तो मुझे दे दे और मेरा तू ले ले; क्योंकी मेरे पुत्रको तो सम्पुर्ण भूमण्डलका पालन करना होगा और ब्राह्मणकुमारको तो बल, वीर्य तथा सम्पत्ति आदिसे लेना ही क्या है । " ऐसा कहनेपर सत्यवतीने अपना चरु अपनी माताको दे दिया ॥२२-२३॥

वनसे लौटनेपर ऋषिने सत्यवतीको देखकर कहा - " अरी पापिनि ! तुने ऐसा क्या अकार्य किया है जिससे तेरा शरीर ऐसा भयानक प्रतीत होता है ॥२४-२५॥

अवश्य ही तुने अपनी माताके लिये तैयार किये चरुका उपयोग किया है, सो ठीक नहीं है ॥२६॥

मैनें उसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य, पराक्रम, शूरता और बलकी सम्पत्तिका आरोपण किया था तथा तेरेमें शान्ति, ज्ञान तितिक्षा आदि सम्पूर्ण ब्राह्मणोचित गुणोंका समावेश किया था ॥२७॥

उनका विपरित उपयोग करनेसे तेरे अति भयानक अस्त्र- शस्त्रधारी पालन - कर्ममें तत्पर क्षत्रियके समान आचरणवाला पुत्र होगा और उसके शान्तिप्रिय ब्राह्मणाचारयुक्त पुत्र होगा ।" यह सुनते ही सत्यवतीने उनके चरण पकड़ लिये और प्रमाण करके कहा - ॥२८-२९॥

" भगवान ! अज्ञानसे ही मैंने ऐसा किया है, अतः प्रसन्न होइये और ऐसा कीजिये जिससे मेरा पुत्र ऐसा न हो, भले ही पौत्र ऐसा हो जाय !" इसपर मुनिने कहा - ' ऐसा ही हो ।' ।३०-३१॥

तदनन्तर उसने जमदग्निको जन्म दिया और उसकी माताने विश्वामित्रको उत्पन्न किया तथा सत्यवती कौशिकी नामकी नदी हो गयी ॥३२-३४॥

जमदग्निने इक्ष्वाकुकुलोद्भव रेणुकी कन्या रेणुकासे विवाह किया ॥३५॥

उससे जमदग्निके सम्पूर्ण क्षत्रियोंका ध्वंस कारनेवाले भगवान् परशुरामजी उप्तन्न हुए जो सकल लोक- गुरु भगवान् नारायणके अंश थे ॥३६॥

देवताओंने विश्वामित्रजीको भृगुवंशीयं शुनःशेप पुत्ररूपसे दिया था । उसके पीछे उनके देवरात नामक एक पुत्र हुआ और फिर मधुच्छन्द, धनत्र्जय, कृतदेव, अष्टक, कच्छप एवं हारीतक नामक और भी पुत्र हुए ॥३७-३८॥

उनसे अन्यान्य ऋषिवंशोमें विवाहने योग्य बहुत- से कौशिकगोत्रीय पुत्र - पौत्रादि हुए ॥३९॥

इति श्रीविष्णुपुराणे चतुर्थें‍ऽशे सप्तमोऽध्यायः ॥७॥

श्रीविष्णुपुराण

संकलित साहित्य
Chapters
अध्याय १ चौबीस तत्त्वोंके विचारके साथ जगत्‌के उप्तत्ति क्रमका वर्णन और विष्णुकी महिमा ब्रह्मादिकी आयु और कालका स्वरूप ब्रह्माजीकी उप्तत्ति वराहभगवानद्वारा पृथिवीका उद्धार और ब्रह्माजीकी लोक रचना अविद्यादि विविध सर्गोका वर्णन चातुर्वर्ण्य-व्यवस्था, पृथिवी-विभाग और अन्नादिकी उत्पात्तिका वर्णन मरीचि आदि प्रजापतिगण, तामसिक सर्ग, स्वायम्भुवमनु और शतरूपा तथा उनकी सन्तानका वर्णन रौद्र सृष्टि और भगवान् तथा लक्ष्मीजीकी सर्वव्यापकताका वर्णन देवता और दैत्योंका समुद्र मन्थन भृगु, अग्नि और अग्निष्वात्तादि पितरोंकी सन्तानका वर्णन ध्रुवका वनगमन और मरीचि आदि ऋषियोंसे भेंट ध्रुवकी तपस्यासे प्रसन्न हुए भगवान्‌का आविर्भाव और उसे ध्रुवपद-दान राजा वेन और पृथुका चरित्र प्राचीनबर्हिका जन्म और प्रचेताओंका भगवदाराधन प्रचेताओंका मारिषा नामक कन्याके साथ विवाह, दक्ष प्रजापतिकी उत्पत्ति एवं दक्षकी आठ कन्याओंके वंशका वर्णन नृसिंहावतारविषयक प्रश्न हिरण्यकशिपूका दिग्विजय और प्रह्लाद-चरित प्रह्लादको मारनेके लिये विष, शस्त्र और अग्नि आदिका प्रयोग प्रह्लादकृत भगवत्-गुण वर्णन और प्रह्लादकी रक्षाके लिये भगवान्‌का सुदर्शनचक्रको भेजना प्रह्लादकृत भगवत् - स्तृति और भगवान्‌का आविर्भाव कश्यपजीकी अन्य स्त्रियोंके वंश एवं मरुद्गणकी उप्तत्तिका वर्णन विष्णुभगवान्‌की विभूति और जगत्‌की व्यवस्थाका वर्णन प्रियव्रतके वंशका वर्णन भूगोलका विवरण भारतादि नौ खण्डोंका विभाग प्लक्ष तथा शाल्मल आदि द्वीपोंका विशेष वर्णन सात पाताललोकोंका वर्णन भिन्न - भिन्न नरकोंका तथा भगवन्नामके माहात्म्यका वर्णन भूर्भुवः आदि सात ऊर्ध्वलोकोंका वृत्तान्त सूर्य, नक्षत्र एवं राशियोंकी व्यवस्था तथा कालचक्र, लोकपाल और गंगाविर्भावका वर्णन ज्योतिश्चक्र और शुशुमारचक्र द्वादश सूर्योंके नाम एवं अधिकारियोंका वर्णन सूर्यशक्ति एवं वैष्णवी शक्तिका वर्णन नवग्रहोंका वर्णन तथा लोकान्तरसम्बन्धी व्याख्यानका उपसंहार भरत-चरित्र जडभरत और सौवीरनरेशका संवाद ऋभुका निदाघको अद्वैतज्ञानोपदेश ऋभुकी आज्ञासे निदाघका अपने घरको लौटना वैवस्वतमनुके वंशका विवरण इक्ष्वाकुके वंशका वर्णन तथा सौभरिचरित्र मान्धाताकी सन्तति, त्रिशुंकका स्वर्गारोहण तथा सगरकी उप्तत्ति और विजय सगर, सौदास, खट्‍वांग और भगवान् रामके चरित्रका वर्णन निमि-चरित्र और निमिवंशका वर्णन सोमवंशका वर्णनः चन्द्रमा, बुध और पुरुरवाका चरित्र जह्नुका गंगापान तथा जगदग्नि और विश्वामित्रकी उत्पत्ति काश्यवंशका वर्णन महाराज रजि और उनके पुत्रोंका चरित्र ययातिका चरित्र यदुवंशका वर्णन और सहस्त्रार्जुनका चरित्र यदुपुत्र क्रोष्टुका वंश सत्वतकी सन्ततिका वर्णन और स्यमन्तकमणिकी कथा