Get it on Google Play
Download on the App Store

कश्यपजीकी अन्य स्त्रियोंके वंश एवं मरुद्गणकी उप्तत्तिका वर्णन

श्रीपराहरजी बोले -

संह्लादके पुत्र आयुष्मान शिबि और बाल्कल थे तथा प्रह्लादके पुत्र विरोचन थे और विरोचनसे बलिका जन्म हुआ ॥१॥

हे महामुने ! बलिके सौ पुत्र थे जिनमें बाणासुर सबसे बड़ा था । हिरण्याक्षके पुत्र उत्कुर, शकुनि, भूतसन्तापन, महानाभ, महाबाहु तथा कालनाथ आदि सभी महाबलवान् थे ॥२-३॥

( कश्यपजीकी एक दुसरी स्त्री ) दनुके पुत्र द्विमूर्धा शम्बर, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और परमपराक्रमी विप्रचित थे । ये सब दनुके पुत्र विख्यात हैं ॥४-६॥

स्वर्भानुकी कन्या प्रभा थी तथा शर्मिष्ठा, उपदानी और हयशिरा- ये वृषपर्वाकी परम सुन्दरी कन्याएँ विख्यात हैं ॥७॥

वैश्वानरकी पुलोमा और कालका दो पुत्रियाँ थीं । हे महाभाग ! वे दोनों कन्याएँ मरीचिनन्दन कश्यपजीकी भार्या हुईं ॥८॥

उनके पुत्र साठ हजार दानव श्रेष्ठ हुए । मरिचिनन्दन कश्यपजीके वे सभी पुत्र पौलोम और कालकेय कहलाये ॥९॥

इनके सिवा विप्रचित्तिके सिंहिकाके गर्भसे और भी बहुत से महाबलवान् , भयंकर और अतिक्रूर पुत्र उत्पन्न हुए ॥१०॥

वे व्यंश, शल्य, बलवान् नभ, महाबली वातापी, नमुचि, इल्वल, खसृम , अन्धक, नरक, कालनाभ , महावीर, स्वर्भानु और महादैत्य वक्त्र योधी थे ॥११-१२॥

ये सब दानवश्रेष्ठ दनुके वंशको बढ़ानेवाले थे । इनके और भी सैकड़ो हजारों पुत्र-पौत्रादि हुए ॥१३॥

महान् तपस्याद्वारा आत्मज्ञानसम्पन्न दैत्यवर प्रह्लादजीके कुलमें निवातकवच नामक दैत्य उप्तन्न हुए ॥१४॥

कश्यपजीकी स्त्री ताम्राकी शुकी, श्येनी , भासी सुग्रीवी, शुचि और गृद्‌ध्रिका - ये छः अति प्रभावशालिनी कन्याएँ कही जाती हैं ॥१५॥

शुकीसे शुक उलूक एवं उलूकोंके प्रतिपक्षी काक आदि उप्तन्न हुए तथा श्येनीसे श्येन ( बाज ) , भासीसे भास और गृदिध्रकासे गृद्धोंका जन्म हुआ ॥१६॥

शुचिसे जलके पक्षिगण और सुग्रीवीसे अश्व, उष्ट्र और गर्दभोंकी उप्तत्ति हुई । इस प्रकार यह ताम्राका वंश कहा जाता है ॥१७॥

विनताके गरुड और अरुण ये दो पुत्र विख्यात हैं । इनमें पक्षियोंमें श्रेष्ठ सुपर्ण ( गरुडजी ) अति भयंकर और सर्पोंको खानेवाले हैं ॥१८॥

हे ब्रह्मन ! सुरसारे सहस्त्रों सर्प उत्पन्न हुए जो बड़े प्रभावशाली, आकाशमें विचरनेवाले, अनेक शिरोंवाले और बड़े विशालकाय थे ॥१९॥

और कद्रुके पुत्र भी महाबली और अमित तेजस्वी अनेक सिरवाले सहस्त्रों सर्प ही हुए जो गरुडजीके वशवर्ती थे ॥२०॥

उनमेंसे शेष, वासुकि, तक्षक शंखश्वेत, महापद्म, कम्बल, अश्वतर, एलापुत्र, नाग, कर्कोटक, धनत्रय तथा और भी अनुकों उग्र विषधर एवं काटनेवाले सर्प प्रधान हैं ॥२१-२२॥

क्रोधवशाके पुत्र क्रोधवशगण हैं । वे सभी बड़ी-बडी़ दाढोंवाले, भयंकर और कच्चा मांस खानेवाले जलचर, स्थलचर एवं पक्षिगण हैं ॥२३॥

महाबली पिशाचोंको भी क्रोधाने ही जन्म दिया है । सुरभिसे गौ और महिष आदिकी उप्तत्ति हुई तथ इरासे वृक्ष, लता, बेल, और सब प्रकरके तृण उप्तन्न हुए हैं ॥२४॥

खसाने यक्ष और राक्षसोंको , मुनिने अप्सराओंको तथा अरिष्टाने अति समर्थ गन्धर्वोंको जन्म दिया ॥२५॥

ये सब स्थावर, जंगम कश्यपजीकी सन्तान हुए । इनके और भी सैकड़ो-हजारों पुत्र-पौत्रादि हुए ॥२६॥

हे ब्रह्मन ! यह स्वारोचिष - मन्वन्तरकी सृष्टिका वर्णन कहा जाता हैं ॥२७॥

वैवस्वत-मन्वन्तरके आरम्भमें महान् वारुण यज्ञ हुआ, उसमें ब्रह्माजी होता थे, अब मैं उनकी प्रजाका वर्णन करता हूँ ॥२८॥

हे साधुश्रेष्ठ ! पूर्व मन्वन्तरमें ! पूर्व मन्वन्तरमें जो सप्तार्षिगण स्वयं ब्रह्माजीके मानसपुत्ररूपसे उप्तन्न हुए थे , उन्हीकों ब्रह्माजीने इस कल्पमें गन्धर्व, नाग देव और दान्वादिके पितृरूपसे निश्चित किया ॥२९॥

पुत्रोंके नष्ट हो जानेपर दितिने कश्यपजीको प्रसन्न किया । उसकी सम्यक् आराधनासे सन्तुष्ट हो तपस्वियोंमें श्रेष्ठ कश्यपजीने उसे वर देकर प्रसन्न किया । उस समय उसने इन्द्रके वध करनेमें समर्थ एक अति तेजस्वी पुत्रका वर माँगा ॥३०-३१॥

मुनिश्रेष्ठ कश्यपजीने अपनी भार्या दितिको वह वर दिया और उस अति उग्र वरको देते हुए वे उससें बोले - ॥३२॥

"यदि तुम भगवान्‌के ध्यानमें तत्पर रहकर अपना गर्भ शौच * और संयमपूर्वक सौ वर्षतक धारण कर सकोगी तो तुम्हारा पुत्र इन्द्रको मारनेवाला होगा " ॥३३॥

ऐसा कहकर मुनि कश्यपजीने उस देवीसे संगमन किया और उसने बडे़ शौचपूर्वक रहते हुए वह गर्भ धारण किया ॥३४॥

उस गर्भको अपने वधका कारण जान देवराज इन्द्र भी विनयपूर्वक उसकी सेवा करनेके लिये आ गये ॥३५॥

उसके शौचादिमें कभी कोई अन्तर पड़े - यहीं देखनेकी इच्छासे इन्द्र वहाँ हर समय उपस्थित रहते थे । अन्तमें सौ वर्षमें कुछ हे कमी रहनेपर उन्होंने एक अन्तर देख ही लिया ॥३६॥

एक दिन दिति बिना चरणशुद्धि किये हो अपनी शय्यापर लेट गयी । उस समय निद्राने उसे घेर लिया । तब इन्द्र हाथमें वज्र लेकर उसकी कुक्षिमें घुस गये और उस महागर्भके सात टुकडे़ कर डाले । इस प्रकार वज्रसे पीडित होनेसे वह गर्भ जोर-जोरसे रोने लगा ॥३७-३८॥

इन्द्रने उससे पुनःपुनः कहा कि 'मत रो' । किन्तु जब वह गर्भ सात भागोंमें विभक्त हो गया, ( और फिर भी न मरा ) तो इन्द्रने अत्यन्त कुपित हो अपने शत्रु विनाशक वज्रसे एक-एकके सात-सात टुकडे़ और कर दिये । वे ही अति वेगवान् मरुत नामक देवता हुए ॥३९-४०॥

भगवान् इन्द्रने जो उससे नामक देवता हुए रोदीः' ( मत रो ) इसीलिये वे मरूत कहलाये । ये उनचास मरुद्नण इन्द्रके सहायक देवता हुए ॥४१॥

इति श्रीविष्णुपुराणे प्रथमेंऽशे एकविंशोऽध्यायः ॥२१॥

* शौच आदि नियम मत्स्यपुराणमें इस प्रकार बतलाये गये है - 'सन्धायां नैव भोक्तव्यं गर्भिण्या वरवर्णिनि । न स्थातव्यं न गन्तव्यं वृक्षमूलेषु सर्वदा ॥ वर्जयेत् कलहँ लोके गात्रभंग तथैव च नोन्मुक्तकेशी तिष्ठेच्च नाशुचिः स्यात् कदाचन ॥ हे सुन्दरि ! गर्भिणी स्त्रीको चाहिये कि सायंकालमें भोजन न करे, वृक्षोंके नीचे न जाय और न वहाँ ठहरे ही तथा लोगोंके साथ कलह और अँगाई लेना छोड़ दे, कभी केश खुला न रखे और न अपवित्र ही रहे । तथा भागवतमें भी कहा है - 'न हिंस्यात्सर्वभूतानि न शपेन्नानृतं वदेत्' इत्यादि । अर्थात् प्राणियोंकी हिंसा न करे किसीको बुरा-भला न कहे और कभी झूठ न बोले ।

श्रीविष्णुपुराण

संकलित साहित्य
Chapters
अध्याय १ चौबीस तत्त्वोंके विचारके साथ जगत्‌के उप्तत्ति क्रमका वर्णन और विष्णुकी महिमा ब्रह्मादिकी आयु और कालका स्वरूप ब्रह्माजीकी उप्तत्ति वराहभगवानद्वारा पृथिवीका उद्धार और ब्रह्माजीकी लोक रचना अविद्यादि विविध सर्गोका वर्णन चातुर्वर्ण्य-व्यवस्था, पृथिवी-विभाग और अन्नादिकी उत्पात्तिका वर्णन मरीचि आदि प्रजापतिगण, तामसिक सर्ग, स्वायम्भुवमनु और शतरूपा तथा उनकी सन्तानका वर्णन रौद्र सृष्टि और भगवान् तथा लक्ष्मीजीकी सर्वव्यापकताका वर्णन देवता और दैत्योंका समुद्र मन्थन भृगु, अग्नि और अग्निष्वात्तादि पितरोंकी सन्तानका वर्णन ध्रुवका वनगमन और मरीचि आदि ऋषियोंसे भेंट ध्रुवकी तपस्यासे प्रसन्न हुए भगवान्‌का आविर्भाव और उसे ध्रुवपद-दान राजा वेन और पृथुका चरित्र प्राचीनबर्हिका जन्म और प्रचेताओंका भगवदाराधन प्रचेताओंका मारिषा नामक कन्याके साथ विवाह, दक्ष प्रजापतिकी उत्पत्ति एवं दक्षकी आठ कन्याओंके वंशका वर्णन नृसिंहावतारविषयक प्रश्न हिरण्यकशिपूका दिग्विजय और प्रह्लाद-चरित प्रह्लादको मारनेके लिये विष, शस्त्र और अग्नि आदिका प्रयोग प्रह्लादकृत भगवत्-गुण वर्णन और प्रह्लादकी रक्षाके लिये भगवान्‌का सुदर्शनचक्रको भेजना प्रह्लादकृत भगवत् - स्तृति और भगवान्‌का आविर्भाव कश्यपजीकी अन्य स्त्रियोंके वंश एवं मरुद्गणकी उप्तत्तिका वर्णन विष्णुभगवान्‌की विभूति और जगत्‌की व्यवस्थाका वर्णन प्रियव्रतके वंशका वर्णन भूगोलका विवरण भारतादि नौ खण्डोंका विभाग प्लक्ष तथा शाल्मल आदि द्वीपोंका विशेष वर्णन सात पाताललोकोंका वर्णन भिन्न - भिन्न नरकोंका तथा भगवन्नामके माहात्म्यका वर्णन भूर्भुवः आदि सात ऊर्ध्वलोकोंका वृत्तान्त सूर्य, नक्षत्र एवं राशियोंकी व्यवस्था तथा कालचक्र, लोकपाल और गंगाविर्भावका वर्णन ज्योतिश्चक्र और शुशुमारचक्र द्वादश सूर्योंके नाम एवं अधिकारियोंका वर्णन सूर्यशक्ति एवं वैष्णवी शक्तिका वर्णन नवग्रहोंका वर्णन तथा लोकान्तरसम्बन्धी व्याख्यानका उपसंहार भरत-चरित्र जडभरत और सौवीरनरेशका संवाद ऋभुका निदाघको अद्वैतज्ञानोपदेश ऋभुकी आज्ञासे निदाघका अपने घरको लौटना वैवस्वतमनुके वंशका विवरण इक्ष्वाकुके वंशका वर्णन तथा सौभरिचरित्र मान्धाताकी सन्तति, त्रिशुंकका स्वर्गारोहण तथा सगरकी उप्तत्ति और विजय सगर, सौदास, खट्‍वांग और भगवान् रामके चरित्रका वर्णन निमि-चरित्र और निमिवंशका वर्णन सोमवंशका वर्णनः चन्द्रमा, बुध और पुरुरवाका चरित्र जह्नुका गंगापान तथा जगदग्नि और विश्वामित्रकी उत्पत्ति काश्यवंशका वर्णन महाराज रजि और उनके पुत्रोंका चरित्र ययातिका चरित्र यदुवंशका वर्णन और सहस्त्रार्जुनका चरित्र यदुपुत्र क्रोष्टुका वंश सत्वतकी सन्ततिका वर्णन और स्यमन्तकमणिकी कथा