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द्वादश सूर्योंके नाम एवं अधिकारियोंका वर्णन

श्रीपराशरजी बोले -

आरोह और अवरोहके द्वारा सूर्यको एक वर्षमें जितनी गति हैं उस सम्पूर्ण मार्गकी दोनों काष्ठाओंका अन्तर एक सौ अस्सी मण्डल है ॥१॥

सूर्यका रथ ( प्रति मास ) भिन्न - भिन्न आदित्य, ऋषि, गन्धर्व, अप्सरा, यक्ष, सर्प और राक्षसगणोंसे अधिष्ठित होता हैं ॥२॥

हे मैत्रेय ! मधुमास चैरमें सूर्यके रथमें सर्वदा धाता नामक आदित्य, क्रतुस्थला अप्सरा, पुलस्त्य ऋषि , वासुकि सर्प, रथभृत यक्ष, हेति राक्षस और तुम्बुरु गन्धर्व - ये सात मासाधिकारी रहते हैं ॥३-४॥

तथा अर्यमा नामक आदित्य, पुलह ऋषि, रथौजा यक्ष, पुत्र्चिकस्थला अप्सरा, प्रहेति राक्षस, कच्छवीर सर्प और नारद नामक गन्धर्व - ये वैशाख मासमें सुर्यके रथपर निवास करते हैं । हे मैत्रेय ! अब ज्येष्ठ मासमें ( निवास करनेवालोंके नाम ) सुनो ॥५-६॥

उस समय मित्र नामक आदित्य, अत्रि ऋषि, तक्षक सर्प, पौरुषेय राक्षस, मेनका अप्सरा, हाहा गन्धर्व और रथस्वन नामक यक्ष - ये उस रथमें वास करते हैं ॥७॥

तथा आषाढ़ मासमें वरुण नामक आदित्य, वसिष्ठ ऋषि, नाग सर्प, सहजन्या अप्सरा, हूहू गन्धर्व, रथ राक्षस और रथचित्र नामक यक्ष उसमें रहते हैं ॥८॥

श्रावण मासमें इन्द्र नामक आदित्य, विश्वावसु गन्धर्व, स्त्रोत यक्ष, एलापुत्र सर्प, अंगिरा ऋषि, प्रम्लोच अप्सरा और सर्पि नामक राक्षस सूर्यके रथमें बसते हैं ॥९॥

तथा भाद्रपदमें विवस्वान् नामक आदित्य, उग्रसेन गन्धर्व भृगु ऋषि, आपूरण यक्ष, अनुम्लोचा अप्सरा, शंखपाल सर्प और व्याघ्र नामक राक्षसका उसमें निवास होता हैं ॥१०॥

आश्विन-मासमें पूषा नामक आदित्य, वसुरुचि गन्धर्व, वात राक्षस, गौतम ऋषि धनत्र्जय सर्प, सुषेण गन्धर्व और घॄताची नामकी अप्सराका उसमें वास होता है ॥११॥

कार्तिक मासमें उसमें विश्वावसु नामक गन्धर्व, भरद्वज ऋषि, पर्जन्य आदित्य, ऐरावत सर्प, विश्वाची अप्सरा, सेनाजित् यक्ष तथा आप नामक राक्षस रहते हैं ॥१२॥

मार्गशीषके अधिकारी अंश नामक आदित्य, काश्यप ऋषि, तार्क्ष्य यक्ष, महापद्म सर्प, उर्वशी अप्सरा, चित्रसेन गन्धर्व और विद्युत् नामक राक्षस हैं ॥१३॥

हे विप्रवर ! पौष-मासमें क्रतु ऋषि, भग आदित्य, ऊर्णायु गन्धर्व, स्फूर्ज राक्षस, कर्कोटक सर्प, अरिष्टनेमि यक्ष तथा पूर्वचित्ति अप्सरा जगत्‌को प्रकाशित करनेके लिये सूर्यमण्डलमें रहते हैं ॥१४-१५॥

हे मैत्रेय ! त्वष्टा नामक आदित्य, जमदग्रि ऋषि, कम्बल सर्प, तिलोत्तमा अप्सरा, ब्रह्मोपेत राक्षिस, ऋताजित् यक्ष और धृतराष्ट्र गन्धर्व - ये सात माघमासमें भास्करमन्डलमें रहते हैं । अब, जो फाल्गुनमासमें सूर्यके रथमें रहते हैं उनके नाम सुनो ॥१६-१७॥

हे महामुने ! वे विष्णु नामक आदित्य, अश्वतर सर्प, रम्भा अप्सरा, सुर्यवर्चा गन्धर्व, सत्यजित् यक्ष, विश्वामित्र ऋषि और यज्ञोपेत नामक राक्षस हैं ॥१८॥

हे ब्रह्मन ! इस प्रकार विष्णुभगवान्‌की शक्तिसे तेजोमय हुए ये सात - सात गण एक- एक मासतक सूर्यमण्डलमें रहते हैं ॥१९॥

मुनिगण सूर्यकी स्तुति करते हैं, गन्धर्व सम्मुख रहकर उनका यशोगान करते हैं, अप्सराएँ नृत्य करती हैं, राक्षस रथके पीछे चलते हैं, सर्प वहन करनेके अनुकूल रथको सुसज्जित करते हैं और यक्षगण रथकी बागडोर सँभालते हैं तथा नित्यसेवक बालखिल्यादि इसे सब ओरसे घेरे रहते हैं ॥२०-२२॥

हे मनिसत्तम ! सूर्यमण्डलके ये सात-सात गण ही अपने-अपने समयपर उपस्थित होकर शीत, ग्रीष्म और वर्षा आदिके कारण होते हैं ॥२३॥

इति श्रीविष्णुपुराणे द्वितीयेंऽशे दशमोऽध्यायः ॥१०॥

श्रीविष्णुपुराण

संकलित साहित्य
Chapters
अध्याय १ चौबीस तत्त्वोंके विचारके साथ जगत्‌के उप्तत्ति क्रमका वर्णन और विष्णुकी महिमा ब्रह्मादिकी आयु और कालका स्वरूप ब्रह्माजीकी उप्तत्ति वराहभगवानद्वारा पृथिवीका उद्धार और ब्रह्माजीकी लोक रचना अविद्यादि विविध सर्गोका वर्णन चातुर्वर्ण्य-व्यवस्था, पृथिवी-विभाग और अन्नादिकी उत्पात्तिका वर्णन मरीचि आदि प्रजापतिगण, तामसिक सर्ग, स्वायम्भुवमनु और शतरूपा तथा उनकी सन्तानका वर्णन रौद्र सृष्टि और भगवान् तथा लक्ष्मीजीकी सर्वव्यापकताका वर्णन देवता और दैत्योंका समुद्र मन्थन भृगु, अग्नि और अग्निष्वात्तादि पितरोंकी सन्तानका वर्णन ध्रुवका वनगमन और मरीचि आदि ऋषियोंसे भेंट ध्रुवकी तपस्यासे प्रसन्न हुए भगवान्‌का आविर्भाव और उसे ध्रुवपद-दान राजा वेन और पृथुका चरित्र प्राचीनबर्हिका जन्म और प्रचेताओंका भगवदाराधन प्रचेताओंका मारिषा नामक कन्याके साथ विवाह, दक्ष प्रजापतिकी उत्पत्ति एवं दक्षकी आठ कन्याओंके वंशका वर्णन नृसिंहावतारविषयक प्रश्न हिरण्यकशिपूका दिग्विजय और प्रह्लाद-चरित प्रह्लादको मारनेके लिये विष, शस्त्र और अग्नि आदिका प्रयोग प्रह्लादकृत भगवत्-गुण वर्णन और प्रह्लादकी रक्षाके लिये भगवान्‌का सुदर्शनचक्रको भेजना प्रह्लादकृत भगवत् - स्तृति और भगवान्‌का आविर्भाव कश्यपजीकी अन्य स्त्रियोंके वंश एवं मरुद्गणकी उप्तत्तिका वर्णन विष्णुभगवान्‌की विभूति और जगत्‌की व्यवस्थाका वर्णन प्रियव्रतके वंशका वर्णन भूगोलका विवरण भारतादि नौ खण्डोंका विभाग प्लक्ष तथा शाल्मल आदि द्वीपोंका विशेष वर्णन सात पाताललोकोंका वर्णन भिन्न - भिन्न नरकोंका तथा भगवन्नामके माहात्म्यका वर्णन भूर्भुवः आदि सात ऊर्ध्वलोकोंका वृत्तान्त सूर्य, नक्षत्र एवं राशियोंकी व्यवस्था तथा कालचक्र, लोकपाल और गंगाविर्भावका वर्णन ज्योतिश्चक्र और शुशुमारचक्र द्वादश सूर्योंके नाम एवं अधिकारियोंका वर्णन सूर्यशक्ति एवं वैष्णवी शक्तिका वर्णन नवग्रहोंका वर्णन तथा लोकान्तरसम्बन्धी व्याख्यानका उपसंहार भरत-चरित्र जडभरत और सौवीरनरेशका संवाद ऋभुका निदाघको अद्वैतज्ञानोपदेश ऋभुकी आज्ञासे निदाघका अपने घरको लौटना वैवस्वतमनुके वंशका विवरण इक्ष्वाकुके वंशका वर्णन तथा सौभरिचरित्र मान्धाताकी सन्तति, त्रिशुंकका स्वर्गारोहण तथा सगरकी उप्तत्ति और विजय सगर, सौदास, खट्‍वांग और भगवान् रामके चरित्रका वर्णन निमि-चरित्र और निमिवंशका वर्णन सोमवंशका वर्णनः चन्द्रमा, बुध और पुरुरवाका चरित्र जह्नुका गंगापान तथा जगदग्नि और विश्वामित्रकी उत्पत्ति काश्यवंशका वर्णन महाराज रजि और उनके पुत्रोंका चरित्र ययातिका चरित्र यदुवंशका वर्णन और सहस्त्रार्जुनका चरित्र यदुपुत्र क्रोष्टुका वंश सत्वतकी सन्ततिका वर्णन और स्यमन्तकमणिकी कथा