ग्यारहवाँ अध्याय
गृहका आकार
( १ ) वास्तुशास्त्रमें चौकोर, आयताकार, भद्रासन और वृत्ताकार - इन चार घरोंको श्रेष्ठ बताया गया है । यद्यापि चौकोर घरको सभी ग्रन्थोंमें उत्तम बताया गया है, तथापि ब्रह्मवैवर्तपुराणमें भगवान् श्रीकृष्णने विश्वकर्माके प्रति कहा है -
दीर्घे प्रस्थ समानञ्च न कुर्य्यान्मन्दिरं बुधः ।
चतुरस्त्रे गृहे कारो गृहिणां धननाशनम् ॥
( श्रीक्रुष्ण० १०३। ५७ )
' बुद्धिमान् पुरुषको चाहिये कि जिसकी लम्बाई - चौडा़ई समान हो, ऐसा घर न बनाये; क्योंकि चौकोर घरमें वास करना गृहस्थेंकि धनका नाशक होता है ।'
( २ ) घरकी परिमित लम्बाई - चौडा़ईमें पृथक् - पृथक् दोका भाग देनेपर यदि शून्य शेष आये तो वह घर मनुष्योंके लिये शून्यप्रद होता है । यदि शून्य शेष न आये तो वह घर शुभ होता है । ( ब्रह्मवैवर्तपुराण, श्रीकृष्ण० १०३। ५७-५८ )
( ३ ) आयताकार मकानमें चौडा़ईसे दुगुनीसे अधिक लम्बाई नहीं होनी चाहिये । चौडा़ईसे दुगुनी या उससे अधिक लम्बाई गृहस्वामीके लिये विनाशकारक होती है - ' विस्ताराद् द्विगुणं गेहं गृहस्वामिविनाशनम् ' । ( विश्वकर्मप्रकाश २। १०९ )
( ४ ) चक्रके समान घरमें दरिद्रता आती है ।
विषमबाहु घरमें शोक होता है ।
शकटके समान घरमें सुख और धनकी हानि होती है ।
दण्डके समान घरमें पशुओंकी हानि तथा वंशका नाश होता है ।
मृदंगके समान घरमें स्त्रीकी मृत्यु, वंशकी हानि तथा बन्धुनाश होता है ।
पंखीके समान घर होनेसे धनका नाश होता है ।
कछुएके समान घरमें बन्धन और पीड़ा होती है ।
धनुषके समान घरमें चोर आदिका भय होता है । मूर्ख एवं पापी पुत्र पैदा होते हैं ।
कुम्भके समान घरमें कुष्ठरोग होता है ।
कुल्हाड़ीके समान घरमें मूर्ख एवं पापी पुत्र उत्पन्न होते हैं ।
तीन कोनेवाले घरमें राजभय, पुत्रकी हानि, दुःख, वैधव्य एवं मृत्यु होती है ।
पाँच कोनेवाले घरमें सन्तानको कष्ट होता है । यह घर विनाशकारक होता है ।
छः कोनेवाले घरमें मृत्यु एवं क्लेश होता है ।
सात कोनेवाला घर अशुभ फल देनेवाला होता है ।
आठ कोनेवाले घरमें रोग तथा शोक होता है ।
छाजके समान घरमें धन एवं गायोंका नाश होता है ।
चौड़े मुखवाले घरमें बन्धुओंका नाश होता है ।