पाँचवाँ अध्याय
भूमिको शुद्ध करना
( १ ) सम्मार्जनोपाञ्ञनेन सेकेनोल्लेखनेन च ।
गवां च परिवासेन भूमिः शुद्धयाति पञ्चभिः ॥
( मनुस्मृति ५।१२५)
' सम्मार्जन ( झाड़ना ), लीपना ( गोबर आदिसे ) , सींचना ( गोमूत्र, गङ्रजल आदिसे ) , खोदना ( ऊपरकी कुछ मिट्टी खोदकर फेंक देना ) और ( एक दिन - रात ) गायोंको ठहराना - इन पाँच प्रकारोंसे भूमिकी शुद्धि होती है ।'
( २ ) भूमिके भीतर यदि गायका शल्य ( हड्डी ) हो तो राजभय, मनुष्यका शल्य हो तो सन्तानका नाश, बकरेका शल्य हो तो अग्निसे भय, घोड़ेका शल्य हो तो रोग, गधे या ऊँटका शल्य हो तो हानि, कुत्तेका शल्य हो तो कलह तथा नाश होता है । यदि भूमिमें एक पुरुष नापके नीचे शल्य हो तो उसका दोष नहीं लगता* । इसलिये यदि सम्पूर्ण भुखण्डकी मिट्टी एक पुरुषतक खोदकर फेंक दी जाय और उसकी जगह नयी मिट्टी छानकर भर दी जाय तो वह भूमि मकान बनानेके लिये श्रेष्ठ होती है ।