प्रस्तावना
मैं बीते हुए अतीत को सिरज खंगाल कर लाया हूँ। उस अतीत को जहाँ मेरी कहानियों का बचपना पल रहा था। खिलखिला रहा था। अलमस्त बसंती बयार के साथ चौकड़ी भरता, तितलियों के पीछे भागता, कुतों को दौड़ाता, झाड़ियों में बेसुरे, अल्हड़ गीतों को गुनगुना रहा था। बचपन का तो कहानी भी अबोध था, नादान था लेकिन बचपन की तरह विसुध भोला और सरल था। बहुधा हर इंसान जीवन की व्यस्त दिनचर्चाओं को जीते हुए, कभी संघर्ष करते, भाग्य को ढ़ोते, कभी अपनी जिम्मेदारियों में इतना उलझ जाता है, कि बीता हुआ हसीन कल याद ही नहीं रहता।
मैं चाहता हूँ कि आप मेरे साथ कुछ घण्टों के लिए, इस कहानी को पढ़ते हुए उन खुबसूरत पलों को याद कर लें, जहाँ आपका बचपन सिर्फ चहकना जानता था। खिलखिलाना जानता था। हो सकता है इस किस्सागोई को पढ़ते हुए एक कर्मरत, प्यार की कुछ शीतल पंक्तियाँ मिल जाए। हो सकता है इस कहानी को पढ़ते हुए, आपके संघर्षों में तपा, लड़ा और अविचल खड़ा इंसानियत का सूत्र मिल जाए। आइए चलते हैं, पिछले पड़ाव की ओर! चौंकिए मत। वर्तमान को जीने के लिए अतीत का ज्ञान ही भविष्य का स्वरूप रचता है!
भविष्य के बारे में आखिर किसे पता होता है? कौन जानता है कि अगला बसंत संगीतमय धुन सुनाएगा या वेदना का गीत गाएगा। हम सिर्फ वर्तमान को जीते हुए, भविष्य को सुखमय बनाने के लिए योजनाएं बनाते हैं। एक संघर्षरत युवक आनेवाले कल के लिए, अपने श्रम की संजीवनी से उजाले का निर्माण करता है। तमाम वनस्पतियों को सिरजता है, सींचता है। एक प्रेमी स्वप्न में चुम्बन, छुअन, स्पर्श, मुस्कुराहट, दिल के धड़कनों तक गीन लेता। नन्हे बच्चे मस्ती में सपनों का घरौंदा बनाते हैं। उनकी जिज्ञासा, उनकी हास मिश्रित उतेजनाएँ, उनका सरल निष्कपट संवाद एक अलौकिक सुख का निर्माण करता है। अपने आनंद के उपवन में बालचिंचित विचारों के असंख्य पुष्प खिलाते हैं, टकटकी लगाए आँखों के कमरे में एक-एक दृश्यों को पूरी ईमानदारी और दक्षता के साथ संग्रहित करते हैं। तो अब बस इतना ही। आइए चलते हैं कहानियों में। प्रेम की ऐसी दास्तान जो कई जटिल प्रश्न लिए हमारा इंतजार कर रहा है। हम वहीं मिलते हैं। तबतक के लिए अलविदा---