श्लोक १६,१७,१८
हर्तुर्याति न गोचरं किमपि शं पुष्णाति यत्सर्वदा
ह्यर्थिभ्यः प्रतिपाद्यमानमनिशं प्राप्नोति वृद्धिं पराम् ।
कल्पान्तेष्वपि न प्रयाति निधनं विद्याख्यमन्तर्धन
येषां तान्प्रति मानमुज्झत नृपाः कस्तैः सह स्पर्धते ॥[16]
ज्ञान अद्भुत धन है, ये आपको एक ऐसी अद्भुत ख़ुशी देती है जो कभी समाप्त नहीं होती। जब कोई आपसे ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा लेकर आता है और आप उसकी मदद करते हैं तो आपका ज्ञान कई गुना बढ़ जाता है।शत्रु और आपको लूटने वाले भी इसे छीन नहीं पाएंगे यहाँ तक की ये इस दुनिया के समाप्त हो जाने पर भी ख़त्म नहीं होगी।
अतः हे राजन! यदि आप किसी ऐसे ज्ञान के धनी व्यक्ति को देखते हैं तो अपना अहंकार त्याग दीजिये और समर्पित हो जाइए, क्यूंकि ऐसे विद्वानो से प्रतिस्पर्धा करने का कोई अर्थ नहीं है।
अधिगतपरमार्थान्पण्डितान्मावमंस्था
स्तृणमिव लघुलक्ष्मीर्नैव तान्संरुणद्धि ।
अभिनवमदलेखाश्यामगण्डस्थलानां
न भवति बिसतन्तुवरिणं वारणानाम् ॥[17]
किसी भी ज्ञानी व्यक्ति को कभी काम नहीं आंकना चाहिए और न ही उनका अपमान करना चाहिए क्यूंकि भौतिक सांसारिक धन सम्पदा उनके लिए तुक्ष्य घास से समान है। जिस तरह एक मदमस्त हाथी को कमल की पंखुड़ियों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता ठीक उसी प्रकार धन दौलत से ज्ञानियों को वश में करना असंभव है !
अम्भोजिनीवनवासविलासमेव,
हंसस्य हन्ति नितरां कुपितो विधाता ।
न त्वस्य दुग्धजलभेदविधौ प्रसिद्धां,
वैदग्ध्यकीर्तिमपहर्तुमसौ समर्थः ॥ [18]
हंस पर अत्यंत क्रोधित भगवान ब्रम्हा उसे झील के किनारे कमल के फूलों पर सोने से तो रोक सकते हैं लेकिन वे भी हंस से उसकी दूध से दूध और पानी को अलग कर देने की क्षमता या कला को नहीं छीन सकते।