दक्षिण के राजा
कुषाण साम्राज्य के दौरान , एक अज्ञात शक्ति , सत्यावाहन साम्राज्य
दक्षिण भारत के डेक्कन में उभरा | सत्यावाहन या आंध्रा रज्य मौर्य राजनितिक समीकरण
से प्रभावित था , हांलाकि यहाँ सत्ता कुछ स्थानीय सरदारों के हाथों में सिमटी हुई
थी , जो वैदिक धर्म के चिन्हों का पालन करते थे और वर्नाश्रमधर्म का पालन करते थे
|
इसके शासक लेकिन उदार थे और बौद्ध समपदा जैसे एल्लोरा और अमरावती की
सुरक्षा करते थे | इसलिए डेक्कन उत्तर और दक्षिण के बीच में एक पुल का काम करने
लगा जिससे राजनितिक , व्यापारिक और धार्मिक विचारों का आदान प्रदान हो सके | और
नीचे थे तीन और पुराने राज्य –चेरा (पश्चिम), चोला (पूर्व ) और पंड्या (दक्षिण) –
जो की अक्सर क्षेत्रीय वर्चस्व को हासिल करने के लिए युद्ध करते थे | इनको ग्रीक
और अशोक सूत्रों के हिसाब से मौर्य साम्राज्य के सीमा पर स्थापित माना जाता था |
भारत उस समय एक आठवी सदी से चली आ रही लड़ाई का गवाह था जिसके मुख्य
हिस्सेदार थे वातापी के चलुक्या(५५६-७५७ ऐ डी) , कांचीपुरम के पल्लवा(३००-८८८ ऐ
डी) और मदुरै के पंड्या( सांतवी से दसवी सदी) | चलुक्या राजाओं के सेवकों
राष्ट्रकूट ने उन्हें सत्ता से हटा दिया | हांलाकि दोनों पल्लव और पंड्या
साम्राज्य एक दुसरे के दुश्मन थे , राजनितिक वर्चस्व की असली लड़ाई पल्लव और
चालुक्य राजाओं के बीच ही रही |