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भारतीय इतिहास का स्वर्णिम दौर

मौर्य साम्राज्य:

हांलाकि भारतीय लेखों में ३२६ बी सी में एलेग्जेंडर द ग्रेट के सिन्धु घाटी अभियान का कोई ज़िक्र नहीं है , ग्रीक लेखकों ने उस काल में दक्षिण एशिया में प्रचलित परिस्थितियों का ज़िक्र ज़रूर किया है | अगले कई सालों तक भारतीय और ग्रीक सभ्यता में खास तौर पर कला , निर्माण और सिक्कों के क्षेत्र में एक अलग समावेश बना रहा | उत्तर भारत के राजनितिक समीकरण में मगध के उभरने से एक बहुत व्यापक बदलाव आया |

कुछ ही समय बाद चन्द्रगुप्त नाम के राजा ने मगध से शुरू कर पूरे देश पर कब्ज़ा किया और उसके बाद वह अफगानिस्तान की और बढ़ गया | ये समय था भारत के सबसे महान साम्राज्य, मौर्या साम्राज्य का | ३२२ बी सी में मगध चन्द्रगुप्त मौर्या के नेतृत्व में पडोसी राज्यों पर अपना कब्ज़ा बनाने लगा | चन्द्रगुप्त जिन्होंने ३२४ बी सी से ३०१ बी सी तक राज किया , वह भारत के सबसे पहले साम्राज्य के निर्माण कर्ता थे – मौर्यन साम्राज्य (३२६ -१८४ बी सी ) – जिसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी जो आज के बिहार की राजधानी पटना है |

उपजाऊ ज़मीन और धातू संग्रहों(खास तौर पर लोहा) के पास स्थित मगध व्यापार और वाणिज्य का केंद्र था | तीसरी शताब्दी बी सी के  ग्रीक इतिहासकार और मौर्य अदालत के राजदूत मेगास्थींस के मुताबिक उसकी राजधानी में भव्य महल , मंदिर , विश्वविद्यालय , पुस्तकालय , बाग आदि थे | कथाओं के मुताबिक चन्द्रगुप्त की सफलता काफी हद तक उसके सलाहकार कौटिल्य , अर्थशास्त्र( एक किताब जो सरकारी प्रशासन और राजनितिक नीतियों के बारे में बताती थी) के ब्राह्मण लेखक ,पर निर्भर थी | एक अत्यधिक केंद्रीकृत और श्रेणीबद्ध सरकार थी जिसमें काफी सारे कर्मचारी नियुक्त थे जो विनियमित कर संग्रह, व्यापार और वाणिज्य, औद्योगिक कला, खनन, महत्वपूर्ण आँकड़े, विदेशियों के कल्याण, बाजारों , मंदिरों और वेश्याओं सहित सार्वजनिक स्थानों के रखरखाव का काम देखते थे | एक विशाल सेना और ख़ुफ़िया प्रणाली की स्थापना की गयी थी | राज्य को प्रांतों, जिलों और गांवों में बांटा गया था जिन के लिए  स्थानीय अफसर केंद्र प्रशासन वाले कार्य को पूर्ण करते थे |

 

अशोक बिन्दुसार के विश्वसनीय बेटे और चन्द्रगुप्त के पोते थे | अपने पिता के राज्य में वह उज्जैन और ताक्सिला के राज्यपाल थे | उनके  सभी भाइयों के सिंघासन के दावे  को ख़ारिज कर अशोक को राजा घोषित किया गया था | उन्होनें २६९ से २३२ बी सी तक राज्य किया और वह भारत के सबसे प्रतिभाशाली राजाओं में से एक थे | अशोक के नेतृत्व में मौर्यन साम्राज्य ने पूरे महाद्वीप पर कब्ज़ा कर लिया , अशोक ने मौर्यन साम्राज्य को दक्षिण और दक्षिण पूर्व को छोड़ पूर्ण भारत तक अपना साम्राज्य फैला दिया और मध्य एशिया तक भी अपना वर्चस्व कायम किया |

अशोक के शिलालेख पहाड़ों और पत्थर के खम्बों पर उनके राज्य के महत्वपूर्ण स्थानों - लम्पका (आधुनिक अफगानिस्तान में लघमान), महास्तान (आधुनिक बांग्लादेश में), और ब्रह्मगिरि (कर्नाटक में)- पर स्थापित किये गए थे | इनमें से कुछ शिलालेख के मुताबिक अपने कलिंगा के विरुद्ध युद्ध अभियान में हुई हिंसा से घृणित हो अशोक ने हिंसा को त्याग दिया और अहिंसा की नीति का पालन करने का फैसला किया | उनके अलग धर्म और भाषाओँ के लिए सहनशीलता भारत की क्षेत्रीय बहुलवाद की वास्तविकताओं को दर्शाता था हांलाकि वह निजी तौर पर बौद्ध धर्म का पालन करते थे | शुरुआती बौद्ध कहानियों के मुताबिक उन्होनें अपनी राजधानी में एक बौद्ध समिति का गठन किया था , वह पूरे राज्य में भ्रमण करते थे और श्री लंका तक उन्होनें अपने बौद्ध धर्म प्रचारकों को भेजा था | उनके राज्य में मौर्यन साम्रज्य ने उत्कृष्टता की ऊँचाइयों को छुआ और उनके मरने के 100 साल बाद ही इस साम्राज्य का अंत हुआ |

उनके राज्य में बौद्ध धर्मं सीरिया , एजीप्ट,मसदोनिया, केन्द्रीय एशिया और बर्मा तक फ़ैल गया | बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए , उन्होनें पहाड़ों और खम्बों पर लेख लिखने शुरू किये , ताकि लोग उन्हें आसानी से पढ़ सकें | ये पहाड़ और खम्बे आज भी भारत में मोजूद हैं और पिछले २००० सालों से प्यार और शांति का सन्देश लोगों को दे रहे हैं | अपने विचारों को उन्होनें धर्म नाम दिया | अशोक २३२ बी सी में ख़तम हो गए | सारनाथ में स्थित अशोक खम्बे को भारत के राष्ट्रिय चिन्ह की तरह इस्तेमाल किया जाता है | अशोक खम्बे पर बना “धर्मं चक्र” हमारे देश के झंडे की शोभा बढ़ाता है |