अध्याय ५
"थोड़ी ही देर में सारे श्रीनगर में यह बात फैल गई कि रानी नागवती को भुतहा फकीर हर ले गया है। पालने में लेटे हुए बच्चे को देख कर नागवती की बहनों ने रोते हुए कहा-
"हाय बेटा! तू कितना अभागा है! तेरे पैदा होने के पहले ही तेरे पिताओं को लड़ाई में जाना पड़ा। तेरे पैदा होते ही तेरी माँ को फकीर हर ले गया।“
श्रीनगर में जितने जवाँ मर्द बहादुर थे, सब शरमा गए कि फकीर उनके रहते किले में प्रवेश करके नागवती को हर ले गया। उन सबने एक जगह पञ्चायत करके से किया कि सातों राजाओं को यह खबर भेजी जाय। लेकिन कैसे? हरकारों को भेजने से तो उन्हें जालों और पहाड़ों को पार कर वहाँ तक पहुँचने में बहुत दिन लग जाएँगे।
इसलिए उन्होंने बाजों के द्वारा खबर भेजने की ठहराई। उन्होंने कई पत्र लिखे कि
“आप के एक लड़का हुआ है। लेकिन नागवती को फकीर हर ले गया है। बच्चा कुशल से है और उसे दाइयाँ पाल रही हैं।“
फिर उन्होंने उन पत्रों को मोड़ कर मज़बूत धागों से बाजों के गले में बाँध दिया और उन्हें गाँव के बाहर ले जाकर उड़ा दिया। तीसरा पहर होते होते वाज उड़ कर रामपुर में राजाओं के खेमों पर जा बैठे। जब सातों भाइयों ने पत्र खोल कर पढ़े तो उनके क्रोध का ठिकाना न रहा। उनकी तलवारें आप से आप म्यानों से निकल गई। उनके साथ बारह हजार सेना थी। दो सौ तोपें थीं। जैसे राम ने रावण को मार कर सीता का उद्धार किया था उसी तरह उन्होंने तुरन्त फकीर के किले पर चढ़ाई करके, उसे मार कर नागवती को छुड़ा लाने की तैयारियों की।
तुरन्त शङ्ख और शृक्ष की ध्वनि होने लगी। कूच का डका बज उठा। बड़ी धूम-धाम से सारी सेना वहाँ से चली। बाधनगर और गंगानगर से होते हुए चौथे दिन तक सारी सेना नगवाडीह पहुँची। तुरन्त फकीर के किले के चारों ओर घेग डाल दिया गया। पहर दिन चढ़ते चढ़ते तोपों ने किले पर तीन बार आग उगली।
लेकिन एक गोला भी न दीवारों से लगा और न दीवारों के पार किले में ही पड़ा। सारे गोले राह में ही चूर चूर होकर नीचे गिर गए। दीवार पर जरा सा व्या भी न लगा। यह सब फकीर के जादू की करामात थी। इतनी बार तो दागने पर भी जब किले की दीवारों पर कोई आदमी न दिखाई पड़े तो सिपाहियों को शक हुआ कि शायद किले में कोई नहीं है। तब उन्होंने दीवारों से सीढ़ियाँ लगा कर कुछ सिपाहियों को ऊपर चढ़ा दिया। जब उन सिपाहियों ने नीचे झाँक कर देखा तो उन्हें किले में एक भी मर्द न दिखाई दिया। फकीर द्वारा हर लाई हुई औरतें जहाँ तहाँ घूम रही थीं।
आखिर उन्हें मसजिद के बाहर ठण्डी हवा में खाट पर पड़ा सोता हुआ फकीर दिखाई दिया। उसे देखते ही सिपाहियों ने नीचे इशारा किया और तुरन्त तो किले की दीवारों पर चढ़ाई गई। इतने में प्यारीगई ने जब किले की दीवारों पर सिपाहियों को देखा तो उसने फकीर को थपथपा कर जगाना चाहा। उसने कहा-
"उठो, फकीर! जागो! जागो! किले पर दुश्मन चढ़ आए हैं। तुम्हारा सर्वनाश होना ही चाहता है। उठो! उठो!"
लेकिन फकीर न जागा। तब प्यारी अन्दर गई और कलछुल तपा कर ले आई। उसने फकीर को उससे दाग दिया। फिर भी फकीर खुर्राटे लेता ही रहा। तो फिर गरज उठी। इस बार फकीर पर निशाना लगाया गया। लेकिन फकीर को ऐसा लगा जैसे खटमल काट खा रहे हों। वह आँखें मलते हुए उठा। दीवारों पर सिराहियों को देखते ही उसने समझ लिया कि दुश्मन आ गए हैं। वह तुरन्त नागवती को साथ लेकर मसजिद की छत पर चढ़ा। नागवती ने जब अपने पति और उनकी सेना को देखा तो वह आँसू बहाने लगी।
यह देख कर फकीर ने कहा- "पगली! रोती क्यों है ? ये हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। तुम डरो नहीं। देखो, अभी मेरी करामात! “
यह कह कर उसने एक जादू की लाठी निकाली और कुछ मन्तर पढ़ कर उसे दुश्मनों की ओर उड़ा दिया। लाठी उड़ी और शत्रु-दल के सिपाहियों के ऊपर बेभाव की पड़ी। तडातड़ की मार से घबरा कर सिपाही भागने लगे। वह लाठी यों तीन सौ दुश्मनों को मार कर फकीर के पास लौट आई।
“अच्छा। अब हम खुद लड़ने जाते हैं।' यह कह कर फकीर ने कमरबन्द कस कर हाथ में एक सोटा लिया और मुट्ठी भर भभूत हाथ में लेकर 'या खुदा! या खुदा”
कहते हुए शत्रु-सेना पर टूट पड़ा। पास पहुँचते ही सिपाहियों ने उसे घेर कर टुकड़े टुकड़े कर डाला। लेकिन यह क्या-वह तो वहाँ खड़ा हुआ है ! वहाँ भी मार डाला गया, तो दूसरी ओर खड़ा दीख पड़ा; इस तरह न जाने वह कितनी बार मारा गया और कितनी बार जहाँ का तहाँ खड़ा दीख पड़ा!
आखिर सिपाहियों ने झला कर उसे मारा और तुरन्त उसके शरीर के टुकड़ो को चिता में जला डाला। उन्होंने राख को बटोर कर एक तालाब में फेंक दिया। लेकिन फकीर फिर पानी पर चलता नज़दीक आया और गरज कर बोला-
"अब तक तुम लोगों ने अपनी सारी ताकत आजमा ली.. अब देखो हमारी ताकत?"
यह कह कर उसने थोड़ी सी भभूत चारों ओर उड़ा दी। देखते-देखते दुश्मनों के काले-काले पहाड़ के से हाथी काले पत्थर की मूरतें बन गए। घोड़े सफेद पत्थर बन गए। ऊँट गेरु के-से लाल पत्थर बन कर खड़े थे। बारह हजार पैदल सिपाही ककड़-पत्थर के ढेरों में बदल गए। तोपें मिट्टी की हॉड़ियाँ हो गई। सेना के डेरे-तम्बू काँटेदार झाड़ियाँ बन गए। सातों राजा साँप की बाँबियों की तरह खड़े थे। तीनों मन्त्री पत्थर के ढोके बने हुए थे। यों सारी की सरी सेना अचानक जड हो गई। पल भर में सब ओर सन्नाटा छा गया।
फकीर ने नागवती के पास लौट कर कहा-
"देख ! दुश्मनों का नामो निशान भी नहीं रह गया। देख ली न तूने मेरी बहादुरी?" यह कहते हुए उसने उसका हाथ पकड़ना चाहा। लेकिन नागवती ने दूर हट कर कहा-
"सावधान! अगर व्रत पूरा होने के पहले तूने मुझे छुआ तो तेरा सिर टूक टूक हो जाएगा।"
श्रीनगर में जब यह खबर पहुँची कि सातों राजाओं और बारह हजार सेना में एक भी जीता न बचा, तो सारे शहर में शोक छा गया। वह नगर ही अनाथ हो गया। नागवती की बहनें पछाड़ खाने लगीं। जहर खाकर प्राण छोड़ने को तैयार हो गई। लेकिन फिर नागवती के बच्चे को कौन पाले पोसेगा? इसलिए वे कलेजे पर पत्थर घर कर रह गई और उस लड़के की देखभाल में किसी तरह दिन काटने लगीं।
नागवती के लड़के का नाम बालचन्द्र था। वह धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। पाँचवें साल में आते ही उसका अक्षराभ्यास हुआ। लड़के ने एक ही घड़ी में वर्णमाला सीख ली। दूसरी घड़ी में बारहखड़ी पूरी हो गई। थोड़े ही दिनों में बालचन्द्र ने सभी पवित्र ग्रन्थ पढ़ लिए। उसके बाद उसे अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा देने के लिए तीन आचार्य नियुक्त किए गए। बालचन्द्र ने थोड़े ही दिनों में कुश्ती लड़ना सीख लिया। तीर और तलवार चलाने में ऐसा होशियार हुआ कि उसका निशाना अचूक प्रसिद्ध हो गया। उसकी वीरता देख कर नगर के सब लोग प्रसन्न होने लगे।
बड़े-बूढ़ों ने सिर हिला कर कहा-"यह आगे चल कर अपने बाप-दादों से भी बड़ा प्रतापी होगा।“
एक दिन की बात है। बालचन्द्र खेल रहा था। इतने में नगर के पूजारी की बहू पानी भर कर घर लौटने लगी। यह देख कर बालचन्द्र को शरारत सूझी। उसने घड़े पर एक तीर छोड़ा। वह तीर घड़े को छेद कर उस औरत के अँगूठे में लगा। खून बहने लगा। तब वह गुस्से से भर कर बोली-
“कलमुँहा कहीं का! तेरी माँ वहाँ फकीर के पर में तेरे नाम को रोती है और तू यहाँ गाँव की बहू-बेटियों के घड़े छेड़ता फिरता है! अरे! अपनी यह वीरता उस फकीर पर क्यों नहीं दिखाता ?'
यह सुन कर लड़का हक्का-बक्का सा खड़ा रह गया। उसके लिए यह एक दम नई बात थी। उसने पूजारी की बहू को डरा-धमका कर सारा किस्सा जान लिया। नागवती को कैसे फकीर हर ले गया, कैसे उसके पिता और उनके छहों भाई सेना साथ लेकर उसको छुड़ा लाने गए और वहाँ फकीर के जादू के बल से पत्थर की मूरतें वन गए, यह सब उसको मालूम हो गया। उसने पूजारी की बहू से क्षमा माँगते हुए कहा-
"मैं यह सब नहीं जानता था। तुमने आज मेरी आँखें खोल दी। तुम मेरी माता हो। मुझे आशीष दो। मैं फकीर को दंड देने जाऊँगा।"
पूजारी की बहू ने आशीष देकर कहा- “बेटा! तुम जुग जुग जीओ और अपनी माँ का उद्धार करो!"
बालचन्द्र वहाँ से सीधे महल में गया। जाकर खाट पर लेटा लेटा सोचने लगा। न नहाया, न खाया-पिया। किसी से कुछ बोलता चालता भी नहीं, मानों गूंगा हो गया हो। तब उसकी छहों माताएँ आकर गिड़गिड़ाने लगी-
“बेटा! तुमको क्या हो गया है ! क्या किसी ने कुछ कहा सुना है! हमसे क्यों नहीं बोलते हो?" आखिर बालचन्द्र ने दृढ़ स्वर में पूछा
"बताओ, मेरे माँ-बाप कहाँ हैं?"
"हम ही तुम्हारी माँ हैं। तुम्हारे पिता मर गए।" उन्होंने जवाब दिया।
फिर पूछा। "तो क्या मैं समझ लूँ कि मैं तुम सब की कोख से पैदा हुआ हूँ? सच बताओ, मेरी माँ कहाँ है? बताओगी कि नहीं?"
“हाय बेटा! किस चुडैल ने यह आग लगाई है? उसके भी बाल-बच्चे होते तो वह यह आग क्यों सुलगाती?” उन्होंने रोते-पीटते कहा।
“क्यों नाहक किसी को दोप लगाती हो? तुम सच कहो! डरने की कोई बात नहीं है।“
उसने हठ किया। आखिर लाचार होकर उन्होंने सारी कथा सुनाई और कहा
“बेटा! हमारे वंश में अब तुम एक ही बचे हो। इसीलिए हमने तुम्हें इतने लाड़-प्यार से पाल कर बड़ा किया है।"
"अच्छा! तो अब मैं अपनी माँ को छुड़ाने चला। तुम सब मुझे आशीर्वाद दो।"
“हाय बेटा। तुम वहाँ कैसे जाओगे वह भुतहा फकीर जो बारह हजार सेना को खा गया, तुम्हें कैसे जीता बचने देगा? अगर तुम वहाँ जाना ही चाहते हो तो पहले हम सबको अपने हाथ से जहर दे दो। फिर जहाँ तुम्हारा जी चाहे चले जाना।" उन्होंने रोते हुए कहा।
"माँ! तुम व्यर्थ अधीर क्यों होती हो! डरो नहीं। मैं बेले के पौधे लाकर महल के सामने लगा दूंगा। तुम दिन में तीन दफे उन्हें सींचना। जब तक वे पौधे हरे भरे बने रहेंगे समझना कि मैं सकुशल हूँ। जब वे सूख जाएँ तो जान लेना कि मेरी आयु पूरी हो गयी”
इस तरह बहुत कुछ कह सुन कर बालचन्द्र ने उनको ढाढस बँधाया। गई।
बालचन्द्र ने खा पी कर कुछ कलेवा बाँध लिया। तब उसने अपने पिता के सभी आभूषण पहन लिए। कानों में मोतियों की बालियाँ पहनीं। हाथों में सोने के कड़े पहने। गले में रत्नों की मालाएँ पहनीं। अशरफीयों की थैली कमर में कस ली। फिर तलवार लटका कर, दुपट्टा कंधे पर डाल लिया और छहों माताओं के चरण छूकर वहाँ से चल पड़ा।