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अध्याय ४

श्रीनगर से ग्या रह योजन की दूरी पर 'नागवाडीह' नामक एक टीला था। उस टीले पर एक जादुगर रहता था। उसके एक बड़ा भारी किला भी था। उस किले में सात चाँदी के और चौदह सोने के महल ये। उनके बीचों-बीच एक चार मीनारों वाली मसजिद थी। उस मसजिद में बैठ कर जादूगर अपनी जादू की किताबें उलटता रहता था। उसको बहुत से जंतर-मंतर मालूम थे। इसलिए सब तरह के भूत-प्रेत आदि उसका कहना मानते थे। सात सौ सफेद भूत और तीन सौ करिया भूत उसका इशारा पाते ही हाथ जोड़ कर सामने आ खड़े हो जाते थे। वह जादूगर हमेशा एक फकीर का भेष बनाए रहता था। इसलिए सब लोग उसे भुतहा फकीर कहा करते थे।

फकीर ने चुटकी बजाई। तुरंत धोत्री-भूत ने आकर मशाल जलाई। नाई-भूत ने आकर बाल बनाए। कुम्हार-भूत ने आकर खाना पकाया। ग्वाला-भूत दूध ले आया। कहार-भूत पानी ले आया। एक भुत आकर उसके पाँव सहलाने लगा। एक बूढ़ा भूत वहाँ बैठ कर कहानियाँ सुनाने लगा।

इतने में पूरब से एक पंछी और पश्चिम से एक पंछी आकर फकीर के सामने के पेड़ की डाल पर बैठ गए। तब फकीर ने अपनी रखेली प्यारीवाई को बुला कर कहा-

"प्यारी! उन पंछियों को देख ! जोड़ी कैसी अच्छी मिली है ! बता, कौन उस तरह मेरी बगल में बैठ कर मेरा शौक पूरा करेगी।"

बात यह थी कि प्यारीबाई अब बूढ़ी हो गई थी। इसलिए फकीर के मन में यह इच्छा पैदा हो गई थी कि वह और एक सुन्दर युवती को हर लाए। इसलिए उसने एक काली बिल्ली को मार कर उसके मम्म से आँखों में अंजन साध कर चारों ओर देखा। लेकिन उसे कहीं अपने मन के लायक सुंदरी न मिली। इतने में उसकी नजर पश्चिम में बारह योजन की दूरी पर श्रीनगर के महलों में नागवती पर पड़ी। उसने तुरंत निश्चय कर लिया कि इसको हर लना चाहिए।

इसलिए वह उठ कर प्यारीबाई के साथ उसके महल में गया। प्यारीबाई ने फकीर को आसन पर बिठाया। फिर उसने बारह मन गेहूँ की रोटिया और तीन मन मूंग की दाल पका कर फकीर के सामने रखी। फकीर तीन घड़े घी के साथ वह सब चट कर गया। फिर उसने तीस घडे शराब पी। लेकिन नशा नहीं चढ़ा। दो सेर अफीम खाई। लेकिन उससे भी कोई लाभ न निकला ! तत्र वह चार बोरे गाँज एक चिलम में डाल कर पूँकने लगा। इससे इतना धुंआ निकला कि कोई देखता तो समझता कहीं गाँव के गाँव जल रहे हैं।

अब फकीर पर नशा चढ़ गया। उसकी आँखें लाल हो गई। उसके मन में नागवती को हर लाने को इच्छा प्रबल हो गई। तब उसने कपड़े बदले और भड़कीली रेशमी पोशाक पहन ली। लेकिन आइने में अपना रूप देख कर उसने समझा कि इस भेष में मैं नागवती को नहीं हर ला सकता।

तब उसने कमर में अंगोछा कस कर, काँख में पोथियाँ दवाई और एक ब्राह्मण का वेष बनाया। लेकिन इससे भी उसे संतोष न हुआ।

तब उसने तराजू हाथ में ले एक बनिए का वेष बनाया। लेकिन वह भी पच्छा न लगा। आखिर उसने कमर में  सुनहरा पटका कस कर बदन में भभूत रमाई, गले में रुद्राक्ष की माला पहनी और एक शिव-भक्त का वेष बनाया। एक हाथ में शंख और दूसरे में घंटा लिया। फिर कंधे से झोली लटका कर, उस में एक सोने की और एक चाँदी की छड़ी डाल कर श्रीनगर की ओर रवाना हुआ।

 

फकीर अपने जादू के बल से पलक मारते में श्रीनगर के किले पर जा पहुँचा। लेकिन वहाँ चौकीदार रामजतन ने उसे रोका और अंदर जाने नहीं दिया। उसने कहा-

:अगर तुम भीख चाहते हो तो मैं ही तुम्हें दे दूंगा। लेकिन किले के अंदर नहीं जाने दूंगा।' फकीर ने उसे बहुत समझाया। लेकिन रामजतन न माना। आखिर फकीर ने गुस्से में आकर कहा-

"रे मूर्ख! इसीलिए तू निसंतान रह गया। अगर मैं चाहता तो तुझे संतान दे देता। क्योंकि मैंने ही नागवती को सात दिन पहले एक लड़का दिया था।“

यह सुनते ही रामजतन के मन में उस कपटी शिव-भक्त के प्रति बड़ी श्रद्धा पैदा हो गई। उसने समझा कि स्वयं शिवजी उस रूप में आए हैं। उसने फकीर के पैरों पड़ कर क्षमा माँगी और विनती की

“आप मुझ पर भी कृपा करके संतान दीजिए।“

तब फकीर ने अपनी झोली में से थोड़ी भभूत निकाल कर चौकीदार के हाथ में दे दी और कहा- -

“तुम यह भभूत ले जाकर थोड़ी सी अपनी स्त्री को खिला दो। बाकी अपने घर में सब जगह छिड़क दो।"

चौकीदार दौड़ता दौड़ता घर गया। उसने फकीर के कहे अनुसार किया। बस, अब क्या था! जिस जिस जगह भभूत पड़ी वहाँ वहाँ तुरंत बच्चे पैदा हो गए। जहाँ देखो वहीं बच्चे छत पर बच्चे! दीवारों पर बच्चे ! बाड़ी में बच्चे ! आखिर कुएँ से भी बिलबिलाते बच्चे ऊपर रेंगने लगे। करीब तीन चार सौ बच्चों ने रोते-चीखते आकर रामजतन और उसकी स्त्री को घेर लिया। सब खाना मांग रहे थे। थोड़ी ही देर में उन्होंने घर में जो कुछ था सब चाटकर साफ कर दिया। फिर भी चिल्ला-चिल्ला कर खाना माँगते ही रहे। चौकीदार रामजतन के नाकों दम हो गया। वह किसी न किसी तरह उनसे पिंड छुड़ा कर फकीर के पैरों पर जा गिरा।

"भाड़ में जाय यह संतान ! मुझे इस राक्षसी संतान से बचाओ! मैं तुम्हें किले में जाने दूंगा।" उसने फकीर से कहा।

फकीर ने फिर थोड़ी सी भमूत निकाल कर उसके हाथ में देकर कहा

“जगह जगह छिड़क दे! इस बार तू जितने बच्चे चाहेगा उतने ही बच रहेंगे।"

रामजतन ने तुरंत घर जाकर वैसा ही किया। फकीर की कृपा से उसके सात बच्चे रहे। रामजतन की जान में जान आ गई। उसने विना चूं-चपड के फकीर को किले में प्रवेश करने दिया। फकीर ने किले में जाकर देखा तो उसे नागवती की छहों बहनें घड़े लेकर पनघट पर जाती दिखाई दीं। नागवती उनके साथ नहीं थी।

फकीर ने अपने जादू के बल से उनके घड़ों में अशर्फियाँ भर दीं। चकित होकर वे तुरंत घर लौट गई। लेकिन घर जाने पर उन्हें अमियों के बदले टीकरे दिखाई दिए। फकीर ने बारी बारी से छहों बहनों के घर जाकर भीख माँग ली। व

ह चिल्ला कर कहता जाता था

“भगवान भूतनाथ की कृपा से दूधों-पूतों फूलो-फलो! भगवान की भभूत रमा लो! भूत-प्रेत सत्र भाग जाएंगे। जय शंकर ,जय शंकर! हर हर बम!" यह कह कर वह जोर से शंख बजाता।

इसी तरह वह सारे किले में घूमता फिरता नागवती की कक्ष पर पहुँचा । उसने एक बार जोर से शंख फूंक कर भीख माँगी। जब दासियाँ भीख डालने आयी तो उसने कहा-

"मैं दासियों के हाथ से भीख नहीं लेता। जाओ! मालिकिन को खुद अपने हाथ से भीख डालने को कहो। जब दासियों ने कहा कि नागवती अभी बाहर नहीं आ सकती तो उसने कहा-

“अच्छा ! तो उसे इतना घमंड चढ़ गया है ? क्या वह नहीं जानती कि मैंने उसे जो लड़का दिया है उसे जब चाहूँ तब छीन ले जा सकता हूँ?"

दासियों ने डर के मारे यह बात नागवती से जाकर कह दी। तब नागवती ने सोचा कि महात्माओं के क्रोध से बच्चे का अनिष्ट हो सकता है। इसलिए यह खुद फकीर को भीख डालने चली। इतने में जब उसका बच्चा जाग कर रोने लगा तो उसने उसका मन बहलाने के लिए अपनी अंगूठी निकाल कर उसकी नन्ही सी उँगली में पहना दी। फिर यह भीख लेकर बाहर आई। लेकिन फकीर ने भीख लेने से इनकार कर दिया।

उसने कहा कि जब वह अपने पति की स्त्रींची हुई सातों लकीरें लॉघ कर बाहर आयगी तभी वह भीख लेगा। क्योंकि उन लकीरों का प्रभाव कुछ ऐसा था कि नागवती जब तक उन के अंदर रहती तब तक फकीर उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता था। नागवती भी उन लकीरों को पार करने में हिचकिचाने लगी। यह देख कर फकीर ने उसे फिर धमकाया कि

“मैं बच्चे को छीन ले जाऊँगा।“

आखिर नागवती ने लाचार होकर उसकी बात मान ली। बस, अब क्या था? उसके लकीरों से बाहर आते ही फकीर ने उसे अपनी जादु की छड़ी से छुआ। तुरंत वह एक कुतिया के रूप में बदल कर अपने बच्चे के पालने के चारों ओर करुण स्वर से चिल्लाती हुई घूमने लगी।

फकीर ने उसे डरा-धमका कर बाहर बुलाया और उसके गले में एक जंजीर बाँध कर अपने साथ ले चला।

 

लेकिन किले के फाटक पर रामजतन ने फिर उसे रोक लिया। उसे इस कुतिया को देख कर शक हो गया। उसने कहा-

"अंदर जाते वक्त यह कुतिया तुम्हारे साथ नहीं थी। इसलिए मैं इसे तुम्हारे साथ नहीं जाने दे सका।"

फकीर ने उससे बहुत कुछ कहा-सुना। डराया-धमकाया भी। लेकिन वह टस से मस न हुआ। तब फकीर को गुस्सा आ गया और उसने थोड़ी सी भभूत निकाल कर चौकीदार के माथे पर छिड़क दी। तुरंत रामजतन पगला कर जंगल की ओर दौड़ा।

थोड़ी ही देर में फकीर अपने किले में पहुँच गया। वहाँ उसने अपनी झोली से सोने की छड़ी निकाली और उससे कुतिया को छुआ। तुरंत चूड़ियाँ खनकांती, पायल झनकाती नागवती उसके सामने खड़ी हो गई। उसे देख फकीर ने उतावली के साथ उसका हाथ पकड़ना चाहा।

लेकिन नागवती ने उसे रोक कर कहा-

"रे फकीर ! मैंने बारह वरस का व्रत लिया है। इसलिए व्रत पूरा होने तक तुम मुझे नहीं छू सकते। मैं तुम्हारे हाथ से तो किसी तरह निकल कर नहीं जा सकती। फिर तुम क्यों उतावले होते हो ! याद रखो; अगर तुमने मेरी मर्जी के खिलाफ मुझे छुआ तो तुम्हारा सिर टूक टूक  हो जाएगा। खबरदार!"

फकीर बड़ा भारी जादूगर तो था। लेकिन नागवती पतिव्रता थी। इसलिए उसके सामने इसका जादू बिलकुल नहीं चलता था। वह उसका बाल भी बांका नहीं कर सकता था। थोड़ी देर बाद फकीर ने नागवती को छड़ी से छूकर उसे मुट्ठी भर राख में बदल डाला।

फिर वह उस राख को अपनी झोली में छिपा कर प्यारीबाई के घर गया। प्यारी ने उसे अकेले लौटते देख कर समझा कि वह नागवती को हर नहीं ला सका। इसलिए अपना सा मुँह लेकर लौटा है। उसने उसकी दिल्लगी उड़ाई। तब फकीर ने मुसकुरा कर झोली को अपनी सोने की छड़ी से छुआ। तुरंत चूड़ियों और नूपुरों की झंकार के साथ नागवती उठ खड़ी हुई। उसकी सुन्दरता से महल जगमगा उठा।

'हाय बिटिया ! तुम इस हत्यारे के पंजे में कैसे फंस गई ! न जाने, अब तुम्हारी क्या दशा होगी?"

प्यारी ने नागवती को देख कर असू बहाते हुए कहा। बेचारी नागवती क्या जवाब देती ? वह भी आँसू बहाने लगी। फकीर ने उसे मसजिद में ले जाकर कैद कर दिया। नागवती को बार बार अपने बच्चे की याद सताने लगी। वह अपने भाग्य को बहुत रोई। हाय ! कौन उसके पति को जाकर बताए कि वह मसजिद में कैद है!