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भाग 31

 


पाठक, आपने सुना कि नानक ने क्या प्रण किया अस्तु अब यहां पर हम यह कह देना उचित समझते हैं कि नानक अपनी मां को लिये हुए जब घर पहुंचा तो वहां उसने एक दिन के लिए भी आराम न किया। ऐयारी का बटुआ तैयार करने के बाद हर तरह का इंतजाम करके और चार-पांच शागिर्दों और नौकरों को साथ ले के वह उसी दिन घर के बाहर निकला और चुनार की तरफ रवाना हुआ। जिस दिन कुंअर इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह की बारात निकलने वाली थी उस दिन वह चुनार की सरहद में मौजूद था। बारात की कैफियत उसने अपनी आंखों से देखी थी और इस बात की फिक्र में भी लगा हुआ था कि किसी तरह दो-चार कैदियों को कैद से छुड़ाकर अपना साथी बना लेना चाहिए और मौका मिलने पर राजा गोपालसिंह को भी इस दुनिया से उठा देना चाहिए।
अब हम कुंअर इंद्रजीतसिंह और आनंदसिंह का हाल बयान करते हैं।
दोपहर दिन का समय है और सब कोई भोजन इत्यादि से निश्चिंत हो चुके हैं। एक सजे हुए कमरे में राजा गोपालसिंह, भरतसिंह, कुंअर आनंदसिंह, भैरोसिंह और तारासिंह बैठे हुए हंसी-खुशी की बातें कर रहे हैं।
गोपाल - (भरतसिंह से) क्या मुझे स्वप्न में भी इस बात की उम्मीद हो सकती थी कि आपसे किसी दिन मुलाकात होगी कदापि नहीं, क्योंकि लोगों के कहने पर मुझे विश्वास हो गया था कि आप जंगल में डाकुओं के हाथ से मारे गए...।
भरत - और इसका बहुत बड़ा सबब यह था कि तब तक दारोगा की बेईमानी का आपको पता न लगा था, उसे आप ईमानदार समझते थे और उसी ने मुझे कैद किया था।
गोपाल - बेशक यही बात है मगर खैर, ईश्वर जिसका सहायक रहता है वह किसी के बिगाड़े नहीं बिगड़ सकता। देखिए मायारानी ने मेरे साथ क्या कुछ न किया, मगर ईश्वर ने मुझे बचा लिया और साथ ही इसके बिछुड़े हुओं को भी मिला दिया!
भरत - ठीक है, मगर मेरे प्यारे दोस्त, मैं कह नहीं सकता कि कम्बख्त दारोगा ने मुझे कैसी तकलीफें दी हैं और मजा तो यह है कि इतना करने पर भी वह बराबर अपने को निर्दोष ही बताता रहा। अस्तु जब मैं अपना हाल बयान करूंगा तब आपको मालूम होगा कि दुनिया में कैसे-कैसे नमकहराम और संगीन लोग होते हैं और बदों के साथ नेकी करने का नतीजा बहुत बुरा होता है।
गोपाल - ठीक है, ठीक है, इन्हीं बातों को सोचकर भैरोसिंह बार-बार मुझसे कहते हैं कि आपने नानक को सूखा छोड़ दिया सो अच्छा नहीं किया, वह बद है और बदों के साथ नेकी करना वैसा ही है जैसा नेकों के साथ बदी करना।
भरत - भैरोसिंह का कहना वाजिब है, मैं उनका समर्थन करता हूं।
भैरो - कृपानिधान, सच तो यों है कि नानक की तरफ से मुझे किसी तरह बेफिक्री होती ही नहीं। मैं अपने दिल को कितना ही समझाता हूं मगर वह जरा भी नहीं मानता। ताज्जुब नहीं कि...।
भैरोसिंह इतना कह ही रहा था कि सामने से भूतनाथ आता हुआ दिखाई पड़ा।
गोपाल - अजी वाह जी भूतनाथ, चार-चार दफे बुलाने पर भी आपके दर्शन नहीं होते!!
भूत - (मुस्कराता हुआ) अभी क्या हुआ है, दो-चार दिन बाद तो मेरे दर्शन और भी दुर्लभ हो जायंगे!
गोपाल - (ताज्जुब से) सो क्या?
भूत - यही कि मेरा सपूत नानक इस शहर में आ पहुंचा है और मेरी अन्त्येष्टि क्रिया करके बहुत जल्द अपने सिर का बोझ हलका करने की फिक्र में लगा है। (बैठकर) कृपा कर आप भी जरा होशियार रहियेगा!
गोपाल - तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि वह बदनीयती के साथ यहां आ गया है।
भूत - मुझे अच्छी तरह मालूम हो गया है। इसी से तो मुझे यहां आने में देर हो गई क्योंकि मैं यह हाल कहने और तीन-चार दिन की छुट्टी लेने के लिए महाराज के पास चला गया था, वहां से लौटा हुआ आपके पास आ रहा हूं।
गोपाल - तो क्या महाराज से छुट्टी ले आये?
भूत - जी हां, अब आपसे यह पूछना है कि आप अपने लिये क्या बंदोबस्त करेंगे?
गोपाल - तुम तो इस तरह की बातें करते हो जैसे उसकी तरफ से कोई बहुत बड़ा तरद्दुद हो गया हो! वह बेचारा कल का लौंडा हम लोगों के साथ क्या कर सकता है।
भूत - सो तो ठीक है मगर दुश्मन को छोटा और कमजोर न समझना चाहिए।
गोपाल - तुम्हें ऐसा ही डर है तो कहो, बैठे ही बैठे चौबीस घंटे के अंदर उसे गिरफ्तार कराके तुम्हारे हवाले कर दूं?
भूत - यह मुझे विश्वास है और आप ऐसा कर सकते हैं, मगर मुझे यह मंजूर नहीं है, क्योंकि मैं जरा दूसरे ढंग से उसका मुकाबिला किया चाहता हूं। आप जरा बाप-बेटे की लड़ाई देखिये तो! हां अगर वह आपकी तरफ झुके तो जैसा मौका देखिये कीजियेगा।
गोपाल - खैर ऐसा ही सही, मगर तुमने क्या सोचा है, जरा अपना मनसूबा तो सुनाओ!
इसके बाद उन लोगों में देर तक बातें होती रहीं और दो घंटे के बाद भूतनाथ उठकर अपने डेरे की तरफ चला गया।