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भाग 30

 


अब हम थोड़ा-सा हाल नानक और उसकी मां का बयान करते हैं जो हर तरह से कसूरवार होने पर भी महाराज की आज्ञानुसार कैद किये जाने से बच गये और उन्हें केवल देश-निकाले का दंड दिया गया।
यद्यपि महाराज ने उन दोनों पर दया की और उन्हें छोड़ दिया मगर यह बात सर्वसाधारण को पसंद न आई। लोग यही कहते रहे कि 'यह काम महाराज ने अच्छा नहीं किया और इसका नतीजा बहुत बुरा निकलेगा'। आखिर ऐसा ही हुआ अर्थात् नानक ने इस एहसान को भूलकर फसाद करने और लोगों की जान लेने पर कमर बांधी।
जब नानक की मां और नानक को देश-निकाले का हुक्म हो गया और इंद्रदेव के आदमी इन दोनों को सरहद के पार करके लौट आये तब ये दोनों बहुत ही दुःखी और उदास हो एक पेड़ के नीचे बैठकर सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए। उस समय सबेरा हो चुका था और सूर्य की लालिमा पूरब तरफ आसमान पर फैल रही थी।
रामदेई - कहो अब क्या इरादा है हम लोग तो बड़ी मुसीबत में फंस गए!
नानक - बेशक मुसीबत में फंस गए और बिल्कुल कंगाल कर दिये गए। तुम्हारे जेवरों के साथ ही साथ मेरे हरबे भी छीन लिए गये और हम इस लायक भी न रहे कि किसी ठिकाने पर पहुंचकर रोजी के लिए कुछ उद्योग कर सकते।
रामदेई - ठीक है मगर मैं समझती हूं कि अगर हम लोग किसी तरह नन्हों के यहां पहुंच जायेंगे तो खाने का ठिकाना हो जायेगा और उससे किसी तरह की मदद भी ले सकेंगे।
नानक - नन्हों के यहां जाने से क्या फायदा होगा वह तो खुद गिरफ्तार होकर कैदखाने की हवा खा रही होगी! हां उसका भतीजा बेशक बचा हुआ है जिसे उन लोगों ने छोड़ दिया और जो नन्हों की जायदाद का मालिक बन बैठा होगा, मगर उससे किसी तरह की उम्मीद मुझको नहीं हो सकती है।
रामदेई - ठीक है मगर नन्हों की लौंडियों में से दो-एक ऐसी हैं जिनसे मुझे मदद मिल सकती है।
नानक - मुझे इस बात की भी उम्मीद नहीं है, इसके अतिरिक्त वहां तक पहुंचने के लिए भी तो समय चाहिए, यहां तो एक शाम की भूख बुझाने के लिए पल्ले में कुछ नहीं है।
रामदेई - ठीक है मगर क्या तुम अपने घर भी मुझे नहीं ले जा सकते वहां तो तुम्हारे पास रुपए-पैसे की कमी नहीं होगी!
नानक - हां यह हो सकता है, वहां पहुंचने पर फिर मुझे किसी तरह की तकलीफ नहीं हो सकती, मगर इस समय तो वहां तक पहुंचना भी कठिन हो रहा है। (लंबी सांस लेकर) अफसोस! मेरा ऐयारी का बटुआ भी छीन लिया गया और हम लोग इस लायक भी न रह गये कि किसी तरह सूरत बदलकर अपने को लोगों की आंखों से छिपा लेते।
रामदेई - खैर जो होना था सो हो गया, अब इस समय अफसोस करने से काम न चलेगा। सब जेवर छिन जाने पर भी मेरे पास थोड़ा-सा सोना बचा हुआ है, अगर इससे कुछ काम चले तो...।
नानक - (चौंककर) क्या कुछ है!
रामदेई - हां!
इतना कहकर रामदेई ने धोती के अंदर छिपी हुई सोने की एक करधनी निकाली और नानक के आगे रख दी।
नानक - (करधनी को हाथ में लेकर) बहुत है, हम लोगों को घर तक पहुंचा देने के लिए काफी है, और वहां पहुंचने पर किसी तरह की तकलीफ न रहेगी क्योंकि वहां मेरे पास खाने-पीने की कमी नहीं है।
रामदेई - तो क्या वहां चलकर इन बातों को भूल...।
नानक - (बात काटकर) नहीं-नहीं, यह न समझना कि वहां पहुंचकर हम इन बातों को भूल जायेंगे और बेकार बैठे टुकड़े तोड़ेंगे, बल्कि वहां पहुंचकर इस बात का बंदोबस्त करेंगे कि अपने दुश्मनों से बदला लिया जाय।
रामदेई - हां, मेरा भी यही इरादा है, क्योंकि मुझे तुम्हारे बाप की बेमुरौवती का बड़ा रंज है जिसने हम लोगों को दूध की मक्खी की तरह एकदम निकालकर फेंक दिया और पिछली मुहब्बत का कुछ खयाल न किया। शांता और हरनामसिंह को पाकर ऐंठ गया और इस बात का कुछ भी खयाल न किया कि आखिर नानक भी तो उसका ही लड़का है और वह ऐयारी भी जानता है।
नानक - (जोश के साथ) बेशक यह उसकी बेईमानी और हरामजदगी है! अगर वह चाहता तो हम लोगों को बचा सकता था।
रामदेई - बचा लेना क्या, यह जो कुछ किया सब उसी ने तो किया। महाराज ने तो हुक्म दे ही दिया था कि 'भूतनाथ की इच्छानुसार इन दोनों के साथ बर्ताव किया जाय।'
नानक - बेशक ऐसा ही है! उसी कम्बख्त ने हम लोगों के साथ ऐसा सलूक किया। मगर क्या चिंता है। इसका बदला लिये बिना मैं कभी न छोडूंगा।
रामदेई - (आंसू बहाकर) मगर तेरी बातों पर मुझे विश्वास नहीं होता क्योंकि तेरा जोश थोड़ी ही देर का होता है।
नानक - (क्रोध के साथ रामदेई के पैरों पर हाथ रख के) मैं तुम्हारे चरणों की कसम खाकर कहता हूं कि इसका बदला लिए बिना कभी न रहूंगा।
रामदेई - भला मैं भी तो सुनूं कि तुम क्या बदला लोगे मेरे खयाल से तो वह जान से मार देने लायक है।
नानक - ऐसा ही होगा, ऐसा ही होगा! जो तुम कहती हो वही करूंगा बल्कि उसके लड़के हरनामसिंह को यमलोक पहुंचाऊंगा!!
रामदेई - शाबाश! मगर मेरा चित्त तब तक प्रसन्न न होगा जब तक शांता का सिर अपने तलवों से न रगड़ने पाऊंगी!
नानक - मैं उसका सिर भी काटकर तुम्हारे सामने लाऊंगा और तब तुमसे आशीर्वाद लूंगा।
रामदेई - शाबाश, ईश्वर तेरा भला करे! मैं समझती हूं कि इन बातों के लिए तू एक दफे फिर कसम खा जिससे मेरी पूरी दिलजमई हो जाय।
नानक - (सूर्य की तरफ हाथ उठाकर) मैं त्रिलोकीनाथ के सामने हाथ उठाकर कसम खाता हूं कि अपनी मां की इच्छा पूरी करूंगा और जब तक ऐसा न कर लूंगा अन्न न खाऊंगा।
रामदेई - (नानक की पीठ पर हाथ फेरकर) बस-बस, अब मैं प्रसन्न हो गई और मेरा आधा दुःख जाता रहा।
नानक - अच्छा तो फिर यहां से उठो। (हाथ का इशारा करके) किसी तरह उस गांव में पहुंचना चाहिए फिर सब बंदोबस्त होता रहेगा।
दोनों उठे और एक गांव की तरफ रवाना हुए जो वहां से दिखाई दे रहा था।