भाग 43
कुछ रात जा चुकी है। रोहतासगढ़ किले के अंदर अपने मकान में बैसठी हुई बेचारी किशोरी न मालूम किस ध्यान में डूबी हुई है और क्या सोच रही है। कोई दूसरी औरत उसके पास नहीं है। आखिर किसी के पैर की आहट पा अपने खयाल में डूबी हुई किशोरी ने सिर उठाया और दरवाजे की तरफ देखने लगी। लाली ने पहुंचकर सलाम किया और कहा, “माफ कीजियेगा, मैं बिना हुक्म के इस कमरे में आई हूं।”
किशोरी - मैंने लौंडियों को हुक्म दे रखा है कि इस कमरे में कोई न आने पावे मगर साथ ही इसके यह भी कह दिया था कि लाली आने का इरादा करे तो उसे मत रोकना।
लाली - बेशक आपने मेरे ऊपर बड़ी मेहरबानी की।
किशोरी - मगर न मालूम तुम मेरे ऊपर दया क्यों नहीं करतीं! आओ बैठो।
लाली - (बैठकर) आप ऐसा न कहें, मैं जी-जान से आपके काम आने को तैयार हूं।
किशोरी - ये सब बनावटी बातें करती हो। अगर ऐसा ही होता तो अपना और कुंदन वाला भेद मुझसे क्यों छिपातीं नारंगी वाले भेद से तो मैं पहले ही हैरान हो रही थी मगर जब से कुंदन ने अपनी बातों का असर तुम पर डाला है तब से मेरी घबराहट और भी बढ़ गई है।
लाली - बेशक आपको बहुत कुछ ताज्जुब हुआ होगा। मैं कसम खाकर कह सकती हूं कि कुंदन ने उस समय जो मुझे कहा था या कुंदन की जिन बातों को सुनकर मैं डर गई थी वह उसे पहले से मालूम न थीं, अगर मालूम होतीं तो जिस समय मैंने नारंगी दिखाकर उसे धमकाया था उसी समय वह मुझसे बदला ले लेती। अब मुझे विश्वास हो गया कि इस मकान में कोई बाहर का आदमी जरूर आया है जिसने हमारे भेद से कुंदन को होशियार कर दिया। अफसोस, अब मेरी जान मुफ्त में जाया चाहती है क्योंकि कुंदन बड़ी ही बेरहम और बदकार औरत है।
किशोरी - तुम्हारी बातें मेरी घबड़ाहट को बढ़ा रही हैं, कृपा करके कुछ कहो तो सही, क्या भेद है
लाली - मैं बिल्कुल हाल आपसे कहूंगी और आपकी चिंता दूर करूंगी मगर आज रात भर आप मुझे और माफ कीजिये और इस समय एक काम में मेरी मदद कीजिए।
किशोरी - वह क्या
लाली - यह तो मुझे विश्वास हो ही गया कि अब मेरी जान किसी तरह नहीं बच सकती, तो भी अपने बचने के लिए मैं कोई-न-कोई उद्योग जरूर करूंगी। मैं चाहती हूं कि अपने मरने के पहले ही कुंदन को इस दुनिया से उठा दूं मगर एक ऐसी अंड़स में पड़ गई हूं कि ऐसा करने का इरादा भी नहीं कर सकती, हां कुंदन का कुछ विशेष हाल जानना चाहती हूं और इसके बाद बाग के उस कोने वाले मकान में घुसा चाहती हूं जिसमें हरदम ताला बंद रहता है और दरवाजे पर नंगी तलवार लिए दो औरतें बारी-बारी से पहरा दिया करती हैं। इन्हीं दोनों कामों में मैं आपसे मदद लिया चाहती हूं।
किशोरी - उस मकान में क्या है, तुम्हें कुछ मालूम है
लाली - हां, कुछ मालूम है और बाकी भेद जानना चाहती हूं। मुझे विश्वास है कि अगर आप भी मेरे साथ उस मकान के अंदर चलेंगी और हम दोनों आदमी किसी तरह बचकर निकल आवेंगे तो फिर आपको भी इस कैद से छुट्टी मिल जायगी, मगर उसके अंदर जाना और बचकर निकल आना यही मुश्किल है।
किशोरी - यह और ताज्जुब की बात तुमने कही, खैर ऐसी जिंदगी से मैं मरना उत्तम समझती हूं। जो कुछ तुम्हें करना हो करो और जिस तरह की मदद मुझसे लिया चाहती हो लो।
लाली - (एक छोटी-सी तस्वीर कमर से निकाल और किशोरी के हाथ में देकर) थोड़ी देर बाद मामूली तौर पर कुंदन जरूर आपके पास आवेगी, उस समय यह तस्वीर ऐसे ढंग से उसे दिखाइए जिससे उसे यह न मालूम हो कि आप जान-बूझकर दिखा रही हैं, फिर उसके चेहरे की जैसी रंगत हो या जो कुछ वह कहे मुझसे कहिए। इस समय तो यही एक काम है।
किशोरी - यह काम मैं बखूबी कर सकूंगी।
किशोरी ने लाली के हाथ से तस्वीर लेकर पहले खुद देखी। इस तस्वीर में एक खोह की हालत दिखाई गई थी जिसमें एक आदमी उलटा लटक रहा था और एक औरत हाथ में छुरा लिए उसके बदन में घाव लगा रही थी, पास में एक कमसिन औरत खड़ी थी और कोने की तरफ कब्र खोदी जा रही थी।
पाठक, यह तस्वीर ठीक उस समय की थी जिसका हाल हम पहले भाग के आठवें बयान में लिख आये हैं, मगर यह हाल किशोरी को अभी तक मालूम नहीं हुआ था। किशोरी उस तस्वीर को देखकर बहुत ही हैरान हुई और उसके बारे में लाली से कुछ पूछना चाहा। मगर लाली तस्वीर देने के बाद वहां न ठहरी, तुरंत बाहर चली गई।
लाली के जाने के थोड़ी ही देर बाद कुंदन आ पहुंची मगर उस समय किशोरी उस तस्वीर को देखने में अपने को यहां तक भूली हुई थी कि कुंदन का आना उसे तब मालूम हुआ जब उसने पास आकर कुछ देर तक खड़े रहकर पूछा, “कहो बहिन, क्या देख रही हो'
किशोरी - (चौंककर) हैं! तुम यहां कब से खड़ी हो?
कुंदन - कुछ देर से। इस तस्वीर में कौन-सी ऐसी बात है जिसे तुम बड़े गौर से देख रही हो।
किशोरी - तुमने इस तस्वीर को देखा है?
कुंदन - सैकड़ों दफे। मैं समझती हूं कि यह तस्वीर तुम्हें लाली ने खास मुझे दिखाने के लिए दी है। आप लाली से कह दीजिएगा कि मैं इस तस्वीर को देखकर नहीं डर सकती। मैं बिना बदला लिए कभी न छोडूंगी क्योंकि जिस दिन पहले-पहल रात को आपसे मुलाकात हुई थी उस दिन यहां से मेरे निकल जाने का सामान बिल्कुल ठीक था, इसी लाली ने मेरे उद्योग को मिट्टी कर दिया और मेरे मददगारों को भी फंसा दिया, खैर देखा जायगा। मैं आपके मिलने से प्रसन्न थी मगर अफसोस, उसने झूठी बात गढ़कर आपका दिल भी मेरी तरफ से फेर दिया। तो भी मैं आपके साथ बुराई न करूंगी और जहां तक हो सकेगा उसकी चालबाजियों से आपको होशियार कर दूंगी, मानने-न-मानने का आपको अख्तियार है।
किशोरी - मेरी समझ में कुछ नहीं आता कि क्या हो रहा है। हे ईश्वर, मैंने क्या अपराध किया था कि चारों तरफ से संकट ने आकर घेर लिया! हाय, मैं बिल्कुल नहीं जान सकती कि कौन मेरा दोस्त हे और कौन दुश्मन!
इतना कह किशोरी रोने लगी, उसने अपने को बहुत संभालना चाहा मगर न हो सका, हिचकियों ने उसका गला दबा दिया। कुंदन किशोरी के पास बैठ गई और उसका हाथ अपने दोनों हाथों में दबाकर बोली -
“प्यारी किशोरी, यह समझना तो बहुत मुश्किल है कि यहां आपका दोस्त कौन है। बात बनाकर दोस्ती साबित करना भूल है तिसमें दुश्मन के घर में, हां, यह मैं जरूर साबित कर दूंगी कि लाली आपसे दुश्मनी रखती है। लाली ने आपसे जरूर कहा होगा कि आपकी तरह मैं भी कुमार के साथ ब्याह करने के लिए लाई गई हूं मगर नहीं, यह बात बिल्कुल झूठ है। असल तो यह है कि लाली मुझको बिल्कुल नहीं जानती और न मैं जानती हूं, कि लाली कौन है मगर आजकल लाली जिस फिक्र में पड़ी है उससे मैं समझती हूं कि वह आपके साथ दुश्मनी कर रही है। ताज्जुब नहीं कि वह आपको एक दिन उस मकान में ले जाय जिसका ताला बराबर बंद रहता है और जिसके दरवाजे पर नंगी तलवार का पहरा पड़ा रहता है क्योंकि आजकल वह वहां पहरा देने वाली औरतों से दोस्ती बढ़ा रही है और ताला खोलने के लिए एक ताली तैयार कर रही है। उसकी दुश्मनी का अंत उसी दिन होगा जिस दिन वह आपको उस मकान के अंदर कर देगी, फिर आपकी जान किसी तरह नहीं बच सकती। उसका ऐसा करना केवल आप ही के साथ दुश्मनी करना नहीं बल्कि यहां के राजा और इस राज्य के साथ भी दुश्मनी करना है। बेशक वह आपको उस मकान के अंदर भेजेगी और आप उस चौखट के अंदर पैर भी न रखेंगी।”
किशोरी - उस मकान के अंदर क्या है?
कुंदन - सो मैं नहीं जानती।
किशोरी - यहां का कोई आदमी जानता है?
कुंदन - कोई नहीं, बल्कि जहां तक मैं खयाल करती हूं, यहां का राजा भी उसके अंदर का हाल नहीं जानता।
किशोरी - क्या मकान कभी खोला नहीं जाता?
कुंदन - मेरे सामने तो कभी खोला नहीं गया।
किशोरी - फिर कैसे कह सकती हो कि उसके अंदरन जाकर कोई बच नहीं सकता?
कुंदन - इसका जानना तो कोई मुश्किल नहीं है। पहले तो यही सोचिए कि वहां हरदम ताला बंद रहता है, अगर कोई चोरी से भीतर गया भी तो निकलने का मौका मुश्किल से मिलेगा, फिर हम लोगों को उसके अंदर जाकर फायदा ही क्या होगा आपने देखा होगा, उस दरवाजे के ऊपर लिखा है कि - 'इसके अंदर जो जायगा उसका सिर आपसे आप कटकर गिर पड़ेगा'! जो हो मगर यह सब होते हुए भी लाली आपको उस मकान के अंदर जरूर भेजना चाहेगी।
किशोरी - खैर, इस तस्वीर का हाल अगर तुम जानती हो तो कहो।
कुंदन - कहती हूं सुनो-जब कुंअर इंद्रजीतसिंह को धोखा देकर माधवी ले गई तो उनके छोटे भाई आनंदसिंह उनकी खोज में निकले। एक मुसलमानी ने उन्हें धोखा देकर गिरफ्तार कर लिया और उनके साथ शादी करनी चाही मगर उन्होंने मंजूर न किया और तीन दिन भूखे उसके यहां कैद रह गये। आखिर उन्हीं के ऐयार देवीसिंह ने उस कैद से उनको छुड़ाया मगर उन्हें अभी तक मालूम नहीं है कि उन्हें देवीसिंह ने छुड़ाया था।
इसके बाद उस तस्वीर के बारे में जो कुछ आनंदसिंह ने देखा - सुना था कुंदन ने वहां तक कह सुनाया जब आनंदसिंह बेहोश करके उस खोह के बाहर निकाल दिये गये बल्कि घर पहुंचा दिये गये।
किशोरी - यह सब हाल तुम्हें कैसे मालूम हुआ?
कुंदन - मुझसे देवीसिंह ने कहा था।
किशोरी - देवीसिंह से तुमसे क्या संबंध?
कुंदन - जान-पहचान है। आपने इस तस्वीर के बारे में लाली से कुछ सुना है या नहीं?
किशोरी - कुछ नहीं।
कुंदन - पूछिये, देखें क्या कहती है! अच्छा, अब मैं जाती हूं, फिर मिलूंगी।
किशोरी - जरा ठहरो तो।
कुंदन - अब मत रोको, बेमौका हो जायगा। मैं फिर बहुत जल्द मिलूंगी।
कुंदन चली गई मगर किशोरी पहले से भी ज्यादे सोच में पड़ गई। कभी तो उसका दिल लाली की तरफ झुकता और उसको अपने दुख का साथी समझती, कभी सोचते-सोचते लाली की बातों में शक पड़ जाने पर कुदंन ही को सच्ची समझती। उसका दिल दोनों तरफ के खिंचाव में पड़कर बेबस हो रहा था, वह ठीक निश्चय नहीं कर सकती थी कि अपना हमदर्द लाली को बनावे या कुंदन को क्योंकि लाली और कुंदन दोनों अपने असली भेदों को किशोरी से छिपा रही थीं।
उस दिन लाली ने फिर मिलकर किशोरी से पूछा, “उस तस्वीर को देखकर कुंदन की क्या दशा हुई' जिसके जवाब में किशोरी ने कहा, “कुंदन ने उस तस्वीर की तरफ ध्यान भी न दिया और मेरे खुद पूछने पर कहा, मैं नहीं जानती यह तस्वीर कैसी है और न इसे कभी मैंने पहले देखा ही था।”
यह सुनकर लाली का चेहरा कुछ उदास हो गया और वह किशोरी के पास से उठकर चली गई। किशोरी ने कहा, “भला तुम ही बताती जाओ कि यह तस्वीर कैसी है' मगर लाली ने इसका कुछ जवाब न दिया और चली गई।
इस बात को कई दिन बीत गये। लश्कर से कुंअर इंद्रजीतसिंह के गायब होने का हाल भी चारों तरफ फैल गया जिसे सुन धीरे-धीरे किशोरी की उदासी और भी ज्यादे बढ़ गई।
एक दिन रात को अपनी पलंगड़ी पर लेटी हुई किशोरी तरह-तरह की बातें सोच रही थी, लाली और कुंदन के बारे में भी गौर कर रही थी। यकायक वह उठ बैठी और धीरे-से आप ही बोली, 'अब मुझे खुद कुछ करना चाहिए, इस तरह पड़े रहने से काम नहीं चलता। मगर अफसोस, मेरे पास कोई हरबा भी तो नहीं है।'
किशोरी पलंग के नीचे उतरी और कमरे में इधर-उधर टहलने लगी, आखिर कमरे के बाहर निकली। देखा कि पहरेदार लौंडियां गहरी नींद में सो रही हैं। आधी रात से ज्यादे जा चुकी थी, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था। धीरे-धीरे कदम बढ़ाती हुई कुंदन के मकान की तरफ बढ़ी। जब पास पहुंची तो देखा कि एक आदमी काले कपड़े पहने उसी तरफ लपका हुआ जा रहा है बल्कि उस कमरे के दालान में पहुंच गया जिसमें कुंदन रहती है। किशोरी एक पेड़ की आड़ में खड़ी हो गई, शायद इसलिए कि वह आदमी लौटकर चला जाय तो आगे बढ़ूं।
थोड़ी देर बाद कुंदन भी उसी आदमी के साथ बाहर निकली और धीरे-धीरे बाग के उस तरफ रवाना हुई जिधर घने दरख्त लगे हुए थे। जब दोनों उस पेड़ के पास पहुंचे जिसकी आड़ में किशोरी छिपी हुई थी तब वह आदमी रुका और धीरे से बोला -
आदमी - अब तुम जाओ, ज्यादे दूर तक पहुंचाने की कोई जरूरत नहीं।
कुंदन - फिर भी मैं कहे देती हूं कि अब पांच-सात दिन 'नारंगी' की कोई जरूरत नहीं।
आदमी - खैर, मगर किशोरी पर दया बनाये रखना।
कुंदन - इसके कहने की कोई जरूरत नहीं।
वह आदमी पेड़ों के झुंड की तरफ चला गया और कुंदन लौटकर अपने कमरे में चली गई। किशोरी भी फिर वहां न ठहरी और अपने कमरे में आकर पलंग पर लेट रही क्योंकि उन दोनों की बातों ने जिसे किशोरी ने अच्छी तरह सुना था उसे परेशान कर दिया और वह तरह-तरह की बातें सोचने लगी, मगर अपने दिल का हाल किससे कहे इस लायक वहां कोई भी न था।
पहले तो किशोरी बनिस्बत कुंदन के लाली को सच्ची और नेक समझती थी मगर अब वह बात न रही। किशोरी उस आदमी के मुंह से निकली हुई उस बात को फिर याद करने लगी कि 'किशोरी पर दया बनाये रखना।'
वह आदमी कौन था इस बाग में आना और यहां से निकलकर जाना तो बड़ा ही मुश्किल है, फिर वह क्योंकर आया! उस आदमी की आवाज पहचानी हुई-सी मालूम होती है, बेशक मैं उससे कई दफे बातें कर चुकी हूं, मगर कब और कहां, सो याद नहीं पड़ता और न उसकी सूरत का ध्यान बनता है। कुंदन ने कहा था, 'पांच-सात दिन तक नारंगी की कोई जरूरत नहीं।' इससे मालूम होता है कि नारंगी वाली बात कुछ उस आदमी से संबंध रखती है और लाली उस भेद को जानती है। इस समय तो यह निश्चय हो गया कि कुंदन मेरी खैरख्वाह है और लाली मुझसे दुश्मनी किया चाहती है मगर इसका भी विश्वास नहीं होता। कुछ भेद खुला मगर इससे तो और भी उलझन हो गई। खैर कोशिश करूंगी तो कुछ और भी पता लगेगा मगर अबकी लाली का हाल मालूम करना चाहिए।
थोड़ी देर तक इन सब बातों को किशोरी सोचती रही, आखिर फिर अपने पलंग से उठी और कमरे के बाहर आई। उसकी हिफाजत करने वाली लौंडियां उसी तरह गहरी नींद में सो रही थीं। जरा रुककर बाग के उस कोने की तरफ बढ़ी जिधर लाली का मकान था। पेड़ों की आड़ में अपने को छिपाती और रुक-रुककर चारों तरफ की आहट लेती हुई चली जाती थी, जब लाली के मकान के पास पहुंची तो धीरे-धीरे किसी की बातचीत की आहट पा एक अंगूर की झाड़ी में रुक रही और कान लगाकर सुनने लगी, केवल इतना ही सुना, “आप बेफिक्र रहिये, जब तक मैं जीती हूं कुंदन किशोरी का कुछ बिगाड़ नहीं सकती ओैर न उसे कोई दूसरा ले जा सकता है। किशोरी इंद्रजीतसिंह की है और बेशक उन तक पहुंचाई जायेगी।”
किशोरी ने पहचान लिया कि यह लाली की आवाज है। लाली ने यह बात बहुत धीरे से कही थी मगर किशोरी बहुत पास पहुंच चुकी थी इसलिए बखूबी सुनकर पहचान सकी कि लाली की आवाज है मगर यह न मालूम हुआ कि दूसरा आदमी कौन है। लाली अपने कमरे के पास ही थी बात कहकर तुरंत दो-चार सीढ़ियां चढ़ अपने कमरे में घुस गई और उसी जगह से एक आदमी निकलकर पेड़ों की आड़ में छिपता हुआ बाग के पिछली तरफ जिधर दरवाजे में बराबर ताला बंद रहने वाला मकान था चला गया, मगर उसी समय जोर-जोर से “चोर-चोर” की आवाज आई। किशोरी ने आवाज को भी पहचानकर मालूम कर लिया कि कुंदन है जो उस आदमी को फंसाया चाहती है। किशोरी फौरन लपकती हुई अपने कमरे में चली आई और चोर-चोर की आवाज बढ़ती ही गई।
किशोरी अपने कमरे में आकर पलंग पर लेट रही और उन बातों पर गौर करने लगी जो अभी दो-तीन घंटे के हेर-फेर में देख-सुन चुकी थी। वह मन ही मन में कहने लगी, 'कुंदन की तरफ भी गई और लाली की तरफ भी गई जिससे मालूम हो गया कि वे दोनों ही एक-एक आदमी से जान-पहचान रखती हैं जो बहुत छिपकर इस मकान में आता है। कुंदन के साथ जो आदमी मिलने आया था उसकी जुबानी जो कुछ मैंने सुना उससे जाना जाता था कि कुंदन मुझसे दुश्मनी नहीं रखती बल्कि मेहरबानी का बर्ताव किया चाहती है, इसके बाद जब लाली की तरफ गई तो वहां की बातचीत से मालूम हुआ कि लाली सच्चे दिल से मेरी मददगार है और कुंदन शायद दुश्मनी की निगाह से मुझे देखती है। हां ठीक है, अब समझी बेशक ऐसा ही होगा। नहीं-नहीं मुझे कुंदन की बातों पर विश्वास न करना चाहिए! अच्छा देखा जायेगा। कुंदन ने बेमौके चोर-चोर का शोर मचाया, कहीं ऐसा न हो कि बेचारी लाली पर कोई आफत आवे।'
इन्हीं सब बातों को सोचती हुई किशोरी ने बची हुई थोड़ी-सी रात जागकर ही बिता दी और सुबह की सफेदी फैलने के साथ ही अपने कमरे के बाहर निकली क्योंकि रात की बातों का पता लगाने के लिए उसका जी बेचैन हो रहा था।
किशोरी जैसे ही दालान में पहुंची, सामने से कुंदन को आते हुए देखा। कुंदन ने पास आकर सलाम किया और कहा, “रात का कुछ हाल मालूम है या नहीं'
किशोरी - सब-कुछ मालूम है! तुम्हीं ने तो गुल मचाया था!
कुंदन - (ताज्जुब से) यह कैसी बात कहती हो?
किशोरी - तुम्हारी आवाज साफ मालूम होती थी।
कुंदन - मैं तो चोर-चोर का गुल सुनकर वहां पहुंची थी और उन्हीं की तरह खुद भी चिल्लाने लगी थी।
किशोरी - (हंसकर) शायद ऐसा ही हो।
कुंदन - क्या इसमें आपको कोई शक है?
किशोरी - बेशक। लो यह लाली भी आ रही है।
कुंदन - (कुछ घबड़ाकर) जो कुछ किया उन्होंने किया।
इतने में लाली भी आकर खड़ी हो गई और कुंदन की तरफ देखकर बोली, “आपका वार खाली गया।”
कुंदन - (घबड़ाकर) मैंने क्या...
लाली - बस रहने दीजिये, आपने मेरी कार्रवाई कम देखी होगी मगर दो घंटे पहले मैं आपकी पूरी कार्रवाई मालूम कर चुकी थी।
कुंदन - (बदहवास होकर) आप तो कसम खा...
लाली - हां-हां, मुझे खूब याद है, मैं उसे नहीं भूलती।
किशोरी - जो हो, मुझे अब पांच-सात दिन तक नारंगी की कोई जरूरत नहीं।
किशोरी की इस बात ने लाली और कुंदन दोनों को चौंका दिया। लाली के चेहरे पर कुछ हंसी थी मगर कुंदन के चेहरे का रंग बिल्कुल ही उड़ गया था क्योंकि उसे विश्वास हो गया कि किशोरी ने भी रात की कुल बातें सुन लीं। कुंदन की घबराहट और परेशानी यहां तक बढ़ गई कि किसी तरह अपने को सम्हाल न सकी और बिना कुछ कहे वहां से उठकर अपने कमरे की तरफ चली गई। अब लाली और किशोरी में बातचीत होने लगी -
लाली - मालूम होता है तुमने भी रात भर ऐयारी की!
किशोरी - हां, मैं कुंदन की तरफ छिपकर गई थी।
लाली - तब तो तुम्हें मालूम हो गया होगा कि कुंदन तुम्हें धोखा दिया चाहती है।
किशोरी - पहले तो यह साफ नहीं जान पड़ता था मगर जब तुम्हारी तरफ गई और तुमको किसी से बातें करते सुना तो विश्वास हो गया कि इस महल में केवल तुम्हीं से मैं कुछ भलाई की उम्मीद कर सकती हूं।
लाली - ठीक है, कुंदन की कुल बातें तुमने नहीं सुनीं, क्या मुझसे भी...(रुककर) खैर जाने दीजिये। हां, अब वह समय आ गया कि तुम और हम दोनों यहां से निकल जायें। क्या तुम मुझ पर विश्वास रखती हो.
किशोरी - बेशक, तुमसे मुझे नेकी की उम्मीद है, मगर कुंदन बहुत बिगड़ी हुई मालूम होती है।
लाली - वह मेरा कुछ नहीं कर सकती।
किशोरी - अगर तुम्हारा हाल किसी से कह दे तो
लाली - अपनी जुबान से वह नहीं कह सकती, क्योंकि वह मेरे पंजे में उतना ही फंसी हुई है जितना मैं उसके पंजे में।
किशोरी - अफसोस! इतनी मेहरबानी रहने पर भी तुम वह भेद मुझसे नहीं कहतीं
लाली - घबड़ाओ मत, धीरे-धीरे सब-कुछ मालूम हो जाएगा।