कुशल व्यापारी
थेनागर नाम के एक गांव में एक सेथु नाम का युवक नौकरी की खोज कर रहा था | जब एक दिन वह घूम रहा था , राज्य का कोशागार उसके मित्र के साथ उसी रस्ते से गुजर रहे थे | मित्र ने राज कोशागार से कहा के "राजा उससे बहुत खुश है क्योंकि राज्य का भंडार संपत्ति से बहुत भरा पड़ा है | आखिर तुम्हारे यश पाने का रहस्य क्या है ?" तब कोशागार ने कहा " व्यापार का अच्छा तरीका !" मित्र ने कहा मुझे कुछ समझ नहीं आया | तब राज कोशागर ने कहा में कैसे समझा सकता हूँ ? तब राह में चलते चलते एक मरा हुवा घुस जो बड़े चुवे के समान होता है | उसे दिखाते हुवे कोशागार ने कहा क्या तुम उस राह में पड़े चुवे को देख सकते हो ? अगर में अपना मन लगावु तो उस मरे हुवे चुवे से भी बिना पैसा लगाए व्यापार शुरू कर सकता हु | मित्र फिर सोच में पडकर हँसने लगा |
सेथू वह सारी बाते सुन रहा था क्योंकि वह उनके पीछे बाते सुनते हुवे चल रहा था | वह अचंभित होते हुवे उस मरे हुवे चुवे की तरफ देखने लगा | उसने सोचा राज कोषागार ने जरूर कुछ तथ्य के आधार पर ही कहा होगा | तब उसने बात पर अमल करने की ठानी | उसने मरे हुवे चुवे को उठाया और चल पड़ा | एक व्यापारी दूसरी तरफ से अपने बिल्ली के साथ आ रहा था | बिल्ली उसके हाथो से निचे उतर गयी और दौड़ने लगी | तब सेथु को देखकर समझ गया के बिल्ली क्यों उसके तरफ भाग रही है | व्यापारी ने कहा अगर तुम ये मरा हुवा चुवा मुझे दोगे तो में तुम्हें एक पैसा दुँगा | इस तरह सेथु ने एक पैसा कमाया और राह में चलते हुवे सोचने लगा के वह उस एक पैसे का क्या कर सकता है | तब उसने कुछ सोचते हुवे एक दुकान पे गया और गूढ़ ख़रीदा | और गांव के बाहर जहा लोग फूल खरीकर गुजरते है वहा पानी और गूढ़ के साथ राह देखने लगा |
तब उसे बहुत सारे लोग दिखे जो काम ख़तम करके पास से गुजर रहे थे | एक बूढ़ा इंसान फूलों के साथ पास आया तब सेतु ने कहा "आप बहुत थक गए होंगे कुछ गूढ़ और पानी लेकर थकान में राहत पावो " तब उस बूढ़े इंसान ने आशीर्वाद देते हुवे कहा बेटा में बहुत आभारी हु | क्या तुम कल भी पानी लेकर आवोगे ?" तब कुछ फूल देकर वो बूढ़ा इंसान राह पे चल पड़ा | अगले दिन उसने बहुत सारे लोगो को जो फूल ला रहे थे उनको पानी पिलाया और उसके बदले उसे बहुत सारे फूल मिले |
वह सारे फूल लेकर शाम को मंदिर के बाहर फूल बेचने बैठ गया | वह बहुत खुश हुवा यह सोचकर के उसने पहली बार आठ पैसे कमाये | बाद में वो और जादा गूढ़ और पानी बेचने केलिए उसी जगह जाने लगा | तब राह में उसे लोग मिले जो चावल के खेत में काम करके बहुत थके हुवे थे | सेथु ने उन्हें पानी पिलाया | तब उन मेहनती किसानो ने कहा अगर कुछ मदत की जरुरत पड़े तो जरूर कहना | ऐसे करते करते एक माह बित गया | जब वह एक दिन शाम को घर लौट रहा था तब बहुत जोरो से हवा बहने लगी | जोरो की हवाह से सारी ओर झाड़ पौधो की डालिया ईथर उधर टूटकर बिखर गयी | उसने सोचा जब मरे हुवे चुवे से पैसे बनाये जा सकते है तो इन टूटे हुवे डालियो से क्यों नहीं | दूसरे दिन वह राजा के बगीचे के माली के पास गया | माली ने कहा के वह बहुत डरा हुवा है क्योंकि जब राजा लौटेगा तो बिखरी हुवी डलिया और पौधे देखकर बहुत डाटेगा | उसे नहीं लगता के वह अकेला सब साफ़ कर सकेगा | तब सेथु ने कहा डरो मत में तुम्हे सफाई में मदत करूँगा लेकिन उसके बदले तुम्हे सारी टूटी हुवी डलिया और पेड़ मुझे देने पड़ेंगे | सेथु सारी लकड़ी लेकर गया और कुम्भार को बेच दी | कुम्भार ने उसे सौ ताम्बे की राशिया दी | राह से जब सेथु गुजर रहा था तब उसने सुना के एक व्यापारी पाच सौ घोड़े लेकर आने वाला है | तब सेतु ने सोचा के वो उनको घास बेच सकेगा | तब वह किसानो के पास गया जिनको उसने पानी दिया था | सेथु को उन्होंने घास ले जाने केलिए अनुमति दी | सेथु पांच सौ घास की गड्डिया ले कर चल पड़ा | व्यापारी घोड़ो केलिए चारा खोज रहा था तब उसे सेतु दिखयी पड़ा | उसे देखकर वह बहुत खुश हुवा | व्यापारी ने एक हज़ार तांबे के मुद्राये देकर सारी घास खरीद ली | सेतु बहुत खुश हुवा था तब उसने सोचा के अब इन सारे पैसो से बड़ा व्यापार सुरु करने में वह सक्षम है | सेतु ने सुना के दूसरे दिन एक व्यापारी जहाज लेकर बहुत सामान बेचने आया है |
तब सेतु ने सोचा के नए कपडे ख़रीदे जाए | सेतु ने अच्छे कपडे ख़रीदे और उन्हें पहनकर किनारे पहुंचा जहा जहाज लेकर आया था | तब सेतु ने उसका स्वागत किया जिससे व्यापारी बहुत खुश हुवा | सेतु ने कहा की वह उसका सारा सामान ख़रीदेगा लेकिन उसको पैसा लौटाने में कुछ समय लगेगा | उसने सौ तांबे के मुद्रा उसे अग्रिम / पेशगी के तोर पर दी | व्यापारी राजी हुवा | कुछ देर में दूसरे कही सारे व्यापारी आये तो उन्हें पता चला के सारा माल तो सेतु खरीद चुका है |
वह सारे व्यापारी सेतु के पास गए और एक लाख सुवर्ण मुद्रावो में उससे सारा माल ख़रीदा | सेतु ने महसूस किया के वह बहुत अमिर बन चूका है | उसको ख़याल आया के उसको राज कोषागार को धन्यवाद करना चाहिए | वह राज कोषागार के यहा जाकर उसने उन्हें सोने का चुवा उपहार में देना चाहा | तब कोषागार ने कहा उसने उसे पहली बार देखा है तब उसने उसकी मदत कब की | सारी बात बताने के बाद राज कोशागार बहुत प्रभावित हुवा | सेथु की लगन और होशियारी से खुश होकर राज कोषागार ने उसकी लड़की से सेथु का ब्याह करके सारी संपत्ति उसको सोप दी | उसको यकीन था के वह उसका अच्छे से ख़याल रखेगा |