नीच लोगो से संगत का नतीजा
एक समय बोधिसत्व बिस्खोपरा के कुल में जन्म लेता है । बूढ़े होने पर वह बहुत बड़े बिस्खोपरा टोली का सरदार बन जाता है । सबका ख़याल रखना और मार्गदर्शन करना उसका फर्ज होता है । कुछ दिन में उसके टोली में एक नन्हे बिस्खोपरा का जन्म लेता है । बचपन से ही उसकी दोस्ती बिल के पास रहने वाले छिपकली के बच्चे के साथ हो जाती है । सरदार उस नन्हे बिस्खोपरा के माता पिता को बहुत समजाता है के उसके बच्चे को छिपकली के बच्चे की संगत नहीं करने की सलाह दे । पर कुछ फायदा नहीं होता ।
सरदार यह भी कहता की इससे हम मुसीबत में पड सकते है । पर माता पिता नहीं उनका बचा सरदार की बात को गंभीरता से सोचते है । बच्चा छिपकली के बच्चे के साथ खेलते खेलते एक दिन बड़ा होने लगता है । बिस्खोपरा बच्चा छिपकली के बच्चे से जादा बड़ा होने लगता है । इससे छिपकली का बच्चा दिन बर दिन बिस्खोपरा से ईर्ष्या करने लगता है । वह सोचता है की वह एक साथ रह कर एक जैसा व्यवहार करते है पर बिस्खोपरा का बच्चा उससे जादा बड़ा हो रहा है और बहुत अधिक शानदार लग रहा है । पर वह बहुत दुर्बल लगता है उसके सामने ! पर वह कुछ नहीं कर पाता है ।
एक दिन जंगल में शिकारी आ जाते है । छिपकली का बच्चा शिकारी को बहकाकर बिस्खोपरा के पास ले आता है । बिस्खोपरा अपने बिल में जाता है । शिकारी बिल में आग लगा देते है । सारे बिस्खोपरा धुवे और आग के कारण बाहर आते है । शिकारी एक एक करके बहुत सारे बिस्खोपरा को मार देता है । बिस्खोपरा का सरदार और कुछ बिस्खोपरा भाग लेने में सफल होता है । बाद में बिस्खोपरा का सरदार कहता है देखा नीच जीव की
संगति का नतीजा !! हम सब टोली को उसी दिन भाग जाना चाहिए था जब बिस्खोपरा के बच्चे ने उस नीच के साथ दोस्ती की थी ।