वीर गरुड़
पुराणों में गरुड़ के महारथ के कई किस्से मोजूद हैं |कृषि कश्यप की दो पत्नियाँ थी जो आपस में काफी द्वेष रखती थी |विनीता और कुद्रू नाम की उनकी पत्नियाँ ने कश्यप से बलशाली पुत्रो की मांग की |जहाँ विनीता ने दो पुत्र मांगे कुद्रू ने 100 सर्प पुत्र मांगे जो उनकी हर बात मानें |दोनों बहनों में ये शर्त लगी की जिनके पुत्र ज्यादा बलशाली होंगे वह दुसरे की दासता स्वीकार करेगी | कुद्रू के पुत्रों का जन्म हो गया लेकिन विनीता के पुत्र का जन्म हो ही नहीं रहा था | इस जल्दबाजी में विनीता ने अपने पहले पुत्र का अंडा फोड़ दिया |
उसमें से एक अविकसित पुत्र का जन्म हुआ जिसका नीचे का हिस्सा बिलकुल परिपक्व था | ये अरुण थे और निकल के उन्होनें अपनी माँ को श्राप दिया की आप को जल्द ही दासी बनना पड़ेगा | घबरा के विनीता ने दूसरे अंडे को विकसित होने दिया |इस वजह से वह शर्त हार गयी और कुद्रू की दासता स्वीकार करनी पड़ी |काफी समय बाद उस अंडे से एक विशालकाय पक्षी का जन्म हुआ | जब उन्हें अपनी माँ की दासता की बात पता चली तो उन्होनें अपनी माँ की सहायता करने की बात सोची |
सर्पों ने उनसे मंथन में निकले अमृत कलश की मांग की |वह अमृत कलश लेने देवताओं के पास पहुंचे | तीन सूत्र सुरक्षा को पार करने के बाद उन्होनें वह कलश चुरा लिया | लौटते में उन्हें विष्णु मिले जिन्होनें इस बहादुरी के लिए अपनी सवारी बनने और अमर होने का वरदान दिया | अंत में गरुड़ अमृत कलश ले सर्पों के पास पहुंचे और अपनी माँ को छुड़ा लिया | सर्पों को उन्होनें स्नान कर अमृत पान करने की सलाह दी | जब सर्प वहां से गए तो इंद्र आकर कलश वापस ले गए | इस तरह गरुड़ का वादा भी पूरा हो गया और अमृत भी सुरक्षित बना रहा |