भारत-पाक युद्ध (1947)
भारत में ब्रिटेन का दो तरह से राज था- पहला कंपनी का राज और दूसरा 'ताज' का राज। 1857 से शुरू हुआ ताज का राज 1947 में खत्म हो गया। इससे पहले 100 वर्षों तक कंपनी का राज था।
इतिहासकार मानते हैं कि 200 वर्षों के ब्रिटिश काल के दौरान संभवत: 1904 में नेपाल को अलग देश की मान्यता दे दी गई। फिर सन् 1906 में भूटान को स्वतंत्र देश घोषित किया गया। तिब्बत को 1914 में भारत से अलग कर दिया गया। इसके बाद 1937 में बर्मा को अगले देश की मान्यता मिली। इसी तरह इंडोनेशिया, मलेशिया भी स्वतंत्र राष्ट्र बन गए। बाद में 1947 को भारत का एक और विभाजन किया गया। हालांकि इस पर कई इतिहासकारों में मतभेद हैं।
1947 में भारत का एक बार फिर विभाजन हुआ। माउंटबेटन, चर्चिल, जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी, मोहम्मद अली जिन्ना और लियाकत अली खान ने मिलकर भारत को तोड़ दिया। विभाजन भी जिन्ना की शर्त पर हुआ। भारत से अलग हुए क्षेत्र को पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) कहा जाता था। विभाजन के बाद पाकिस्तान की नजर थी कश्मीर पर। उसने कश्मीरियों को भड़काना शुरू किया और अंत में कश्मीर पर हमला कर दिया।
26 अक्टूबर को 1947 को जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरिसिंह ने अपनी रियासत के भारत में विलय के लिए विलय-पत्र पर दस्तखत किए थे। गवर्नर जनरल माउंटबेटन ने 27 अक्टूबर को इसे मंजूरी दी। इस वैधानिक दस्तावेज पर दस्तखत होते ही समूचा जम्मू और कश्मीर, जिसमें पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला इलाका भी शामिल है, भारत का अभिन्न अंग बन गया था। 1947 को विभाजित भारत आजाद हुआ। उस दौर में भारतीय रियासतों के विलय का कार्य चल रहा था। इसके चलते इन राज्यों में अस्थिरता फैली थी।
हालांकि भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हो चुका था जिसमें क्षेत्रों का निर्धारण भी हो चुका था फिर भी जिन्ना ने परिस्थिति का लाभ उठाते हुए 22 अक्टूबर 1947 को कबाइली लुटेरों के भेष में पाकिस्तानी सेना को कश्मीर में भेज दिया। वर्तमान के पाक अधिकृत कश्मीर में खून की नदियां बहा दी गईं। इस खूनी खेल को देखकर कश्मीर के शासक राजा हरिसिंह भयभीत होकर जम्मू लौट आए। वहां उन्होंने भारत से सैनिक सहायता की मांग की, लेकिन सहायता पहुंचने में बहुत देर हो चुकी थी। नेहरू की जिन्ना से दोस्ती थी। वे यह नहीं सोच सकते थे कि जिन्ना ऐसा कुछ कर बैठेंगे, लेकिन जिन्ना ने ऐसा कर दिया।
भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ाते हुए उनके द्वारा कब्जा किए गए कश्मीरी क्षेत्र को पुनः प्राप्त करते हुए तेजी से आगे बढ़ रही थी कि बीच में ही 31 दिसंबर 1947 को नेहरूजी ने यूएनओ से अपील की कि वह पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी लुटेरों को भारत पर आक्रमण करने से रोके। फलस्वरूप 1 जनवरी 1949 को भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्धविराम की घोषणा कराई गई। इससे पहले 1948 में पाकिस्तान ने कबाइलियों के वेश में अपनी सेना को भारतीय कश्मीर में घुसाकर समूची घाटी कब्जाने का प्रयास किया, जो असफल रहा।
नेहरूजी के यूएनओ में चले जाने के कारण युद्धविराम हो गया और भारतीय सेना के हाथ बंध गए जिससे पाकिस्तान द्वारा कब्जा किए गए शेष क्षेत्र को भारतीय सेना प्राप्त करने में फिर कभी सफल न हो सकी। आज कश्मीर में आधे क्षेत्र में नियंत्रण रेखा है तो कुछ क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सीमा। अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगातार फायरिंग और घुसपैठ होती रहती है।