श्रीराम की जल समाधि
श्रीराम की जल समाधि : श्रीराम द्वारा जल समाधि लेने की घटना को हिन्दू दलितों ने आत्महत्या करना बताया। मध्यकाल में ऐसे बहुत से साधु हुए हैं जिन्होंने जिंदा रहते हुए सभी के सामने धीरे-धीरे देह छोड़ दी और फिर उनकी समाधि बनाई गई।
अयोध्या आगमन के बाद राम ने कई वर्षों तक अयोध्या का राजपाट संभाला और इसके बाद गुरु वशिष्ठ व ब्रह्मा ने उनको संसार से मुक्त हो जाने का आदेश दिया। एक घटना के बाद उन्होंने जल समाधि ले ली थी।
सरयू नदी में श्रीराम ने जल समाधि ले ली थी। अश्विन पूर्णिमा के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अयोध्या से सटे फैजाबाद शहर के सरयू किनारे पर जल समाधि लेकर देह का त्याग किया। श्रीराम ने सभी की उपस्थिति में ब्रह्म मुहूर्त में सरयू नदी की ओर प्रयाण किया उनके पीछे थे उनके परिवार के सदस्य भरत, शत्रुघ्न, उर्मिला, मांडवी और श्रुतकीर्ति। ॐ का उच्चारण करते हुए वे सरयू के जल में एक एक पग आगे बढ़ते गए और जल उनके हृदय और अधरों को छूता हुआ सिर के उपर चढ़ गया।
क्यों ली जल समाधि : यमराज को ये पता था कि भगवान की इच्छा के बिना भगवान न तो स्वयं शरीर का त्याग करेंगे और न शेषनाग के अंशावतार लक्ष्मण जी। ऐसे में यमराज को एक चाल चलनी पड़ी | एक दिन यमराज किसी विषय पर बात करने भगवान राम के पास आ पहुंचे। भगवान राम ने जब यमराज से आने का कारण पूछा तो यमराज ने कहा कि आपसे कुछ जरूरी बातें करनी है।
भगवान राम यमराज को अपने कक्ष में ले गए। यमराज ने कहा कि मैं चाहता हूं कि जब तक मेरी और आपकी बात हो उस बीच कोई इस कक्ष में नहीं आए।यमराज ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अगर कोई बीच में आ जाता है तो आप उसे मृत्युदंड देंगे। भगवान राम ने यमराज की बात मान ली और यह सोचकर कि लक्ष्मण उनके सबसे आज्ञाकारी हैं इसलिए उन्होंने लक्ष्मण जी को पहरे पर बैठा इसी बीच दुर्वसा ऋषि अयोध्या पहुंच गए और राम जी से तुरंत मिलने की इच्छा जताई। लक्ष्मण जी ने कहा कि भगवान राम अभी यमराज के साथ विशेष चर्चा कर रहे हैं। भगवान की आज्ञा है कि जब तक उनकी बात समाप्त नहीं हो जाए कोई उनके कक्ष में नहीं आए। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप कुछ समय प्रतीक्षा करें।
ऋषि दुर्वसा लक्ष्मण जी की बातों से क्रोधित हो गए और कहा कि अभी जाकर राम से कहो कि मैं उनसे मिलना चाहता हूं नहीं तो मैं पूरी अयोध्या को नष्ट होने का शाप दे दूंगा। लक्ष्मण जी ने सोचा कि उनके प्राणों से अधिक महत्व उनके राज्य और उसकी जनता का है इसलिए अपने प्राणों का मोह छोड़कर लक्ष्मण जी भगवान राम के कक्ष में चले गए।भगवान राम लक्ष्मण को सामने देखकर हैरान और परेशान हो गए। भगवान राम ने लक्ष्मण से पूछा कि यह जानते हुए भी कि इस समय कक्ष में प्रवेश करने वाले को मृत्युदंड दिया जाएगा, तुम मेरे कक्ष में क्यों आए हो।
लक्ष्मण जी ने कहा कि दुर्वसा ऋषि आपसे अभी मिलना चाहते हैं। राम जी से यमराज ने कहा कि आप अपने वचन के अनुसार लक्ष्मण को मृत्युदंड दीजिए। भगवान राम अपने वचन से मजबूर थे। रामजी सोच में थे कि अपने प्राणों से प्रिय भाई को कैसे मृत्युदंड दिया जाए।
राम जी ने अपने गुरू वशिष्ठ जी से इस विषय में बात की तो गुरू ने बताया कि अपनों का त्याग मृत्युदंड के समान ही होता है। इसलिए आप लक्ष्मण को अपने से दूर कर दीजिए यह उनके लिए मृत्युदंड के जैसे ही सजा होगी।जब राम जी ने लक्ष्मण को अपने से दूर जाने के लिए कहा तो लक्ष्मण जी ने कहा कि आपसे दूर जाकर तो मैं यूं भी मर जाऊंगा। इसलिए अब मेरे लिए उचित है कि मैं आपके वचन की लाज रखूं। लक्ष्मण जी भगवान राम को प्रणाम करके राजमहल से चल पड़े और उन्होनें सरयू नदी में जाकर जल समाधि ले ली। इस तरह राम और लक्ष्मण दोनों ने अपने-अपने वचनों और कर्तव्य का पालन किया।