नहीं किया था राम ने सीता का परित्याग
पहले रामायण में 6 कांडों होते थे , और उसमें उत्तरकांड नहीं होता था। फिर बौद्धकाल में राम और सीता के बारे में सच-झूठ लिखकर उत्तरकांड जोड़ दिया गया। उस काल के बाद से ही इस कांड पर विद्वानों ने घोर विरोध जताया था, लेकिन इस उत्तरकांड के चलते साहित्यकारों, कवियों और उपन्यासकारों को लिखने के लिए एक नया मुद्दा मिल गया और इस तरह राम धीरे-धीरे बदनाम होते गए। इसी उत्तरकांड को तुलसीदास ने लव-कुश कांड नाम से लिखा और कहानी को और विस्तार दिया।
सीता 2 वर्ष तक रावण की अशोक वाटिका में बंदी बनकर रहीं लेकिन इस दौरान रावण ने सीता को छुआ तक नहीं। इसकी वजह ये थी कि रावण को स्वर्ग की अप्सरा ने यह शाप दिया था कि जब भी तुम किसी ऐसी स्त्री से प्रणय करोगे, जो तुम्हें नहीं चाहती है तो तुम तत्काल ही मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे अत: रावण किसी भी स्त्री की इच्छा के बगैर उससे प्रणय नहीं कर सकता था।
सीता को मुक्त करने के बाद समाज में यह बात फैलाई गयी कि अग्निपरीक्षा के बाद राम ने प्रसन्न भाव से सीता को ग्रहण किया और उपस्थित समुदाय से कहा कि उन्होंने लोक निंदा के भय से सीता को ग्रहण नहीं किया था। किंतु अब अग्निपरीक्षा से गुजरने के बाद यह सिद्ध होता है कि सीता पवित्र है, तो अब किसी को इसमें संशय नहीं होना चाहिए। लेकिन इस अग्निपरीक्षा के बाद भी जनसमुदाय में तरह-तरह की बातें बनाई जाने लगीं, तब राम ने सीता को छोड़ने का मन बनाया। यह बात उत्तरकांड में लिखी है। यह मूल रामायण में नहीं है।
वाल्मीकि रामायण, जो निश्चित रूप से बौद्ध धर्म के अभ्युदय के पूर्व लिखी गई थी, इन सारी अटकलों से अछूती है। इसमें सीता परित्याग, शम्बूक वध, रावण चरित आदि कुछ भी नहीं था। यह रामायण युद्धकांड (लंकाकांड) में समाप्त होकर केवल 6 कांडों की थी। इसमें उत्तरकांड बाद में जोड़ा गया।