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गाते-गाते गान तुम्हारा


जाने कब मैं बाहर निकली गान तुम्‍हारे ही गाते--
यह तो आज की नहीं, हाँ आज की बात नहीं।
भूल गई हूँ जाने कब से चाहत तुम्‍हारी मन में--
यह तो आज की नहीं, हाँ आज की बात नहीं।

झरना जैसे बाहर निकलता
किसकी चाहत नहीं जानता
वैसे ही आई हूँ दौड़ी
जीवनधारा के संग बहती
यह तो आज की नहीं, हाँ आज की बात नहीं।

कितने ही नामों से रही पुकारती
कितनी हीं छवियां रही आँकती
जाने किस आनंद में चलती रही
उसका ठिकाना पाए बिना--
यह तो आज की नहीं,हाँ आज की बात नहीं।

पुष्‍प जैसे प्रकाश के लिए
काटे अबोध जगकर के रात
वैसे ही तुम्‍हारी चाहत में
मेरा हृदय पड़ा है बिछकर
यह तो आज की नहीं,हाँ आज की बात नहीं।

गीतांजलि

रवीन्द्रनाथ ठाकुर
Chapters
मेरा मस्तक अपनी चरणधूल तले नत कर दो मैं अनेक वासनाओं को चाहता हूँ प्राणपण से कितने अनजानों से तुमने करा दिया मेरा परिचय विपदा से मेरी रक्षा करना अंतर मम विकसित करो प्रेम में प्राण में गान में गंध में तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ कहाँ है प्रकाश, कहाँ है उजाला मुझे झुका दो, मुझे झुका दो आज द्वार पर आ पहुँचा है जीवंत बसंत अपने सिंहासन से उतर कर तुम अब तो मुझे स्वीकारो नाथ जीवन जब सूख जाए अपने इस वाचाल कवि को विश्व है जब नींद में मगन वह तो तुम्हारे पास बैठा था तुम लोगों ने सुनी नहीं क्या मान ली, मान गयी मैं हार एक-एक कर गाते-गाते गान तुम्हारा प्रेम तुम्हारा वहन कर सकूँ हे सुंदर आए थे तुम आज प्रात जब तुम्हारे साथ मेरा खेल हुआ करता था