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मेरा मस्तक अपनी चरणधूल तले नत कर दो

मेरा मस्तक अपनी चरण्ढूल तले नत कर दो
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।

अपने मिथ्या गौरव की रक्षा करता
मैं अपना ही अपमान करता रहा,
अपने ही घेरे का चक्कर काट-काट
मैं प्रतिपल बेदम बेकल होता रहा,
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।

अपने कामों में मैं अपने प्रचार से रहूँ दूर
मेरे जीवन द्वारा तुम अपनी इच्छा पूरी करो, हे पूर्ण!

मैं याचक हूँ तुम्हारी चरम शांति का
अपने प्राणों में तुम्हारी परम कांति का,
अपने हृदय-कमल दल में ओट मुझे दे दो,
मेरा सारा अहंकार मेरे अश्रुजल में डुबो दो।

गीतांजलि

रवीन्द्रनाथ ठाकुर
Chapters
मेरा मस्तक अपनी चरणधूल तले नत कर दो मैं अनेक वासनाओं को चाहता हूँ प्राणपण से कितने अनजानों से तुमने करा दिया मेरा परिचय विपदा से मेरी रक्षा करना अंतर मम विकसित करो प्रेम में प्राण में गान में गंध में तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ कहाँ है प्रकाश, कहाँ है उजाला मुझे झुका दो, मुझे झुका दो आज द्वार पर आ पहुँचा है जीवंत बसंत अपने सिंहासन से उतर कर तुम अब तो मुझे स्वीकारो नाथ जीवन जब सूख जाए अपने इस वाचाल कवि को विश्व है जब नींद में मगन वह तो तुम्हारे पास बैठा था तुम लोगों ने सुनी नहीं क्या मान ली, मान गयी मैं हार एक-एक कर गाते-गाते गान तुम्हारा प्रेम तुम्हारा वहन कर सकूँ हे सुंदर आए थे तुम आज प्रात जब तुम्हारे साथ मेरा खेल हुआ करता था