शेख़ जी अपनी सी बकते ही रहे
शेख़ जी अपनी सी बकते ही रहे
वह थियेटर में थिरकते ही रहे
दफ़ बजाया ही किए मज़्मूंनिगार
वह कमेटी में मटकते ही रहे
सरकशों ने ताअते-हक़ छोड़ दी
अहले-सजदा सर पटकते ही रहे
जो गुबारे थे वह आख़िर गिर गए
जो सितारे थे चमकते ही रहे