शिकार की तैयारी
दो दिनों के बाद मैंने राजा साहब से कहा कि अब शिकार के लिये चलना चाहिये। छुट्टी समाप्त होने को थी। राजा साहब ने उसी पुजारी को बुलवाया। उससे राजा साहब ने कहा कि ज्योतिषी को बुला लाइये। ज्योतिषी महोदय आये, इसके पहले कि उनसे बात की जाये, उनके सामने थाली में चावल, पाँच टुकड़े हल्दी के और दो रुपये रखे गये। उन्होंने एक लम्बी-सी पुस्तक खोली। राजा साहब ने मेरी ओर दिखाकर कहा कि कप्तान साहब शिकार खेलने जानेवाले हैं, मुझे भी साथ जाना होगा। साइत बताइये जिसमें घड़ियाल अपने-आप बंद़ूक के मुँह में चले आयें। मैंने कहा - 'देखिये, मेरी बन्दूक सरकारी है उसमें घड़ियाल आने की चेष्टा करेंगे तो सब बन्दूक चौपट हो जायेगी।' राजा साहब ने कहा कि यह कहने की एक रीति है। इसका अभिप्राय यह है कि शिकार में सफलता मिले। ज्योतिषी ने मेरा नाम पूछा, फिर एक स्लेट मँगवाया गया, उस पर उन्होंने कुछ जोड़, कुछ गुणा और भाग के प्रश्न लगाये। फिर बोले - 'यदि शनिवार को आप जाते हैं तो घड़ियाल के हमले का भय है; शुक्र को जाते हैं तो नाव डूबने का योग है; गुरुवार को उधर जाना वर्जित है; बुधवार को यह रियासत नहीं छोड़ी जाती। बड़े राजा साहब एक बार बुधवार को यहाँ से अपने ससुराल चले गये, लौटने पर उन्हें फीलपाँव हो गया। मंगलवार को तो आपके यहाँ पूजा होती है। आपके जाने से महावीर जी अप्रसन्न हो जायेंगे और रियासत पर इसका प्रभाव पड़ेगा। सोमवार को बारह बजे और बारह बज कर पाँच मिनट के बीच आप लोग यहाँ से जायें। ईश्वर ने चाहा तो नदी में जितने मगर और जितने घड़ियाल और नाके और सुंइस और जन्तु हैं, सब आकर आपके सम्मुख खड़े हो जायेंगे। आप जितनों को चाहिये बाँध लाइयेगा। शिकार का ऐसा योग इधर पाँच सौ साल में नहीं पड़ा है। राजा टोडरमल के समय एक ऐसा अवसर आया था। उस समय जमुना का एक-एक घड़ियाल आगरे के किले में लोग उठा लाये थे।'
सोमवार की बात थी। मैं इतने दिनों ठहर नहीं सकता था। मैंने कहा - 'मैं तो इतने दिनों ठहर नहीं सकता। चाहे जो हो, मैं तो लौट जाऊँगा।' राजा साहब बड़े संकोच में पड़े। उन्होंने ज्योतिषी से सब कठिनाइयाँ बतायीं और बोले - 'कोई उपाय सोचिये।' ज्योतिषी ने कहा कि विशेष अवसरों के लिये तो शास्त्र ने कई विधियाँ बतायी हैं फिर उन्होंने किसी भाषा में पन्द्रह मिनट तक कुछ पढ़ा। पीछे पता लगा कि वह संस्कृत में अनेक ग्रंथों के कुछ प्रमाण दे रहे थे। उसके पश्चात् उन्होंने गद्य में और साधारण भाषा में समझाया कि आवश्यकता पड़ने पर सब नियम और शास्त्र बदले जा सकते हैं। मैंने कहा - 'हाँ, साधारण कानून में तो ऐसा होता है। जैसे युद्ध के समय सरकार अपनी सुविधा के लिये सब कानूनों के ऊपर अलग से कानून बना लेती है। किन्तु यात्रा और धार्मिक बातों में नहीं कह सकता। यह सब तो महत्व की बातें हैं।'
पंडितजी से मैंने कहा कि ऐसी अवस्था में यदि आपकी धर्म-पुस्तकों में व्यवस्था लिखी हो तो बताइये। राजा साहब ने भी कहा - 'हाँ, पंडितजी! शास्त्र तो आप लोग ही बनाते हैं, कुछ विचारिये।' मुझे क्या पता था कि शास्त्र बनानेवाले मेरे सामने बैठे हैं। मैंने जो कुछ पढ़ा था उससे मैंने अपने मन में कल्पना कर रखी थी कि हिन्दू शास्त्र बनानेवाले जंगलों में रहते थे, बड़ी-बड़ी उनकी जटायें रहती थीं, दो-दो फुट की दाढ़ियाँ थीं और एक समय हवा पीते थे और एक समय पेड़ों की छाल खाते थे। किन्तु राजा साहब की बातों से पता चला कि शास्त्र बनानेवाले तो मेरे सामने ही बैठे हैं। मैंने जेब से कलम निकाल कर उनसे बड़ी श्रद्धा से कहा कि मुझे यह देश बड़ा प्रिय है। छोटा-सा शास्त्र मेरे लिये आप बना दें तो बड़ी कृपा होगी। सब मेरी ओर ऐसी दृष्टि से देखने लगे मानो मैं निरा मूर्ख हूँ। राजा साहब ने कहा - 'यह तो साइत देखते हैं, जन्मकुंडली बनाते हैं, शास्त्र नहीं बनाते।'
मैंने कहा - 'आपने ही कहा है अभी; इसीलिये मेरी इच्छा हुई कि अपने लिये एक शास्त्र बनवा लूँ।' राजा साहब ने कहा - 'यह तो कहने की विधि है।'
मैंने कहा - 'आप लोगों की कहने की विधि विचित्र होती है। कहा जाये कुछ और अर्थ हो कुछ। अच्छा, शिकार के लिये चलने का निश्चय हो जाना चाहिये। यदि आपको अड़चनें हों तो मैं स्वयं जा सकता हूँ। किसी चिन्ता की बात नहीं है।'
राजा साहब ने कहा - 'नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता कि आप अकेले जायें। आप मेरे मेहमान हैं। पंडितजी, कोई न कोई तरकीब निकाल ही लेंगे।' फिर पंडितजी से उन्होंने पूछा कि यदि मगर का शिकार न खेलने जायें, शेर का शिकार खेलने जंगल में चले जायें तब?
पंडितजी ने कहा - 'मैंने सोचा, तो प्रमाण भी है। एक चाँदी का मगर दान दे दीजिये और वहाँ से लौटने पर होम करा दीजिये और ग्यारह ब्राह्मणों का भोज करा दीजियेगा। सब ठीक हो जायेगा।' और हँसकर बोले - 'यदि मगर की खाल में से एकाध टुकड़ा मुझे भी मिल जाये तो आपके लड़के को एक जोड़ा जूता बन जाये।' मैंने कहा - 'राजा साहब के लड़के के जूते से आपका क्या मतलब? पंडितजी ने कहा - 'आपका लड़का का अर्थ अपना लड़का होता है। यह कहने की एक विधि है।' मैंने सोचा भारत में बातें करने की विचित्र-विचित्र विधियाँ हैं। यहाँ की बातें समझने के लिये इन विधियों को सीखना होगा।
राजा साहब ने ज्योतिषी महोदय की बतायी सलाह मान ली और शिकार की तैयार होने लगी। यह निश्चय हुआ कि दनुआ-भलुआ के जंगल में शेर के शिकार के लिये चलें और वहीं से मगर के शिकार के लिये भी चलें।
उनके मैनेजर महोदय आये; उन्हें आज्ञा दी गयी। मोटरवाले ने पेट्रोल भरना आरम्भ किया। एक लारी में भोजन इत्यादि की सामग्री रखी गयी। राजा साहब ने मैनेजर साहब से पूछा - 'कौन-कौन साथ चलेगा।' एक घण्टे तक इस पर विचार होता रहा और उसी गम्भीरता से जैसे दस नम्बर डाउनिंग गली में विलायत के कैबिनेट की बैठक होती है। कौन नौकर कहाँ कौन काम कर सकेगा? इस पर भी विचार हुआ और साथ-साथ उसके परिवार का इतिहास भी दुहराया गया।