सम्राट स्कन्दगुप्त
सम्राट समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के पुत्र कुमारगुप्त के पुत्र सम्राट समुद्रगुप्त एक महान विजेता और शासक थे। इनका शासनकाल ४५५ ई० से ४६७ ई० रहा है। भितरी स्तंभलेख चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय की पट्ट राजमहिषियों के नाम अंकित हैं, जबकि कुमारगुप्त की प्रथम रानी का नाम नहीं दिया गया है। इससे लगता है स्कन्दगुप्त सम्राट कुमार गुप्त की पट्ट राजमहिषी का पुत्र न होकर किसी अन्य रानी के पुत्र रहे हों। इसी से सिंहासनारूढ़ होते समय इन्हें सर्वत्र विरोधों के संकट का सामना करना पड़ा। संकट क्या था पता नहीं चलता। भाइयों के साथ संघर्ष का संकट था या प्रांतपतियों के विद्रोह का संकट था या हूणों के आक्रमण का संकट था-स्पष्ट नहीं है।
यह अवश्य स्पष्ट है कि स्कन्दगुप्त ने संकट पर विजय प्राप्त किया। राज्यारोहण स्कन्दगुप्त का संघर्ष के बीच हुआ-यह भी स्पष्ट ही है। एक महान योद्धा के रूप में स्कन्दगुप्त ने दक्षिण के पुष्य मित्रों को पराभव दिया। वाकाटक नरेशों से झगड़ा था ही। हूणों से युद्ध की व्यस्तता के चलते सम्भवत: वाकाटक नरेश नरेन्द्रसेन ने मालवा को कब्जे में ले लिया। स्कन्दगुप्त ने इसके अलावा राज्य की सीमायें सुरक्षित रखा। हूणों ने तब सारे एशिया और यूरोप को भयभीत कर रखा था, उन्हें स्कन्दगुप्त ने ४६० ई० में गंगा तट की उत्तरी घाटी के पास किसी स्थान पर इतना हरा दिया कि आगामी ५० वर्षों तक हूणों की आक्रामक शक्ति जाती रही। बर्बर हूणों से भारत रक्षा का महान कंवच स्कन्दगुप्त हो गये। जूनागढ़ अभिलेख में हूणों के क्रूर दमन का उल्लेख है। भितरी और कहोप अभिलेखों के मत में स्कन्दगुप्त की सत्ता स्वीकार किया अनेक नरेशों ने। जूनागढ़ अभिलेख में स्कन्दगुप्त दयालु, विचारशील, जनहितकारी और प्रजावत्सल थे।
आर्य मंजुश्रीकल्प के अनुसार स्कन्दगुप्त मेधावी थे। गिरनार पर्वत पर 'सुदर्शन' झील का पुनरुद्धार स्कन्दगुप्त ने करवाया, जिससे पड़ोसी राज्यों के किसान को भी पानी मिलने लगा। युवान च्वांग के अनुसार नालन्दा संघाराम के निर्माण में शक्रादित्य शासक ने योगदान दिये। शक्रादित्य स्कन्दगुप्त प्रमाणित होता है। सुदर्शनझील में बहुत धन व्यय किया स्कन्दगुप्त ने। सौराष्ट्र के गुप्त राज्य के सूबेदार पर्णदत्त ने झील निर्माण कार्य की देखरेख किया। अब इस झील ने अवशेष भी खो दिये। हूणों का दमन करने वाले स्कन्दगुप्त यूरोप और ऐशिया के प्रथम प्रतापी व्यक्तित्व थे।