सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ३८० ई. से ४१३ या ४१५ ई. के बीच सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का शासन था। ये सम्राट-समुद्रगुप्त की रानी दत्तदेवी के पुत्र थे। लोककथाओं में उज्जयिनी के राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य यही थे। महान कवि कालिदास इनके नवरत्नों में एक थे। विशाख दत्त के 'देवीचन्द्रगुप्तम्' एवं इन पर निर्भर बाणभट्ट के 'हर्षचरित', राजशेखर की 'काव्यमीमांसा' के अनुसार समुद्रगुप्त के बाद इनके ज्येष्ठ पुत्र रामगुप्त शासनारूढ़ हुए, जिनकी पत्नी ध्रुवस्वामिनी थीं। शकों से संघर्ष में उलझकर रामगुप्त ने रूपसी रानी ध्रुवदेवी को शकराज को देना और युद्ध से बचना स्वीकार कर लिया था। पर, चन्द्रगुप्त ने स्त्रीवेश में पालकी में जाकर शकराज का वध किया और रामगुप्त को मारकर ध्रुवदेवी से विवाह किया और गद्दी पर बैठे। पर, यह कथा पूर्ण भरोसेमन्द नहीं है। भला जुझारू सम्राट समुद्रगुप्त का पुत्र इतना कायर कैसे हो सकता है? उस युग की नैतिकता में चन्द्रगुप्त जैसा नैतिक व्यक्ति बड़े भाई का हत्यारा और उसकी विधवा से विवाह करने का अनैतिक कार्य कैसे कर सकता है? पर, कोई साक्ष्य और सबूत स्पष्ट नहीं है। हाँ हो सकता है, रामगुप्त समुद्रगुप्त के उत्तराधिकारी थे, जो दुर्बल थे, उनकी हत्या हो गयी, जिसमें चन्द्रगुप्त का हाथ न रहा हो, बाद में शासन सूत्र उन्हें संभालना पड़ा हो और पति के निधन पर विधवा ध्रुवस्वामिनी ने धर्मस्वामिनी के निर्देशन में इन्हें अपना पति वरण किया। ध्रुवस्वामिनी रूपसी तो थी ही, एक प्रभावशाली महिला थीं, अतः विधवा रूप में उन्हें चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की प्रेमनिष्ठा ने वैधव्यवाहिनी न रहने दिया हो।
हिन्दू धर्म की मान्यता में उस समय भी विधवा विवाह होते थे। चन्द्रगुप्त ने बंगाल जीता। शकों का उन्मूलन किया। उत्तर-पश्चिम भारत में कुषाण और गुजरात-काठियावाड़ प्रदेश में शक राज्य थे। ४०९ में चन्द्रगुप्त ने शकराज रुद्रसिंह तृतीय को हराकर उनका राज्य गुप्त साम्राज्य में मिल गया। अब पश्चिमी के सिन्धु तट और पश्चिमी देशों से व्यापार के केन्द्र स्थानों पर इनका कब्जा हो गया। बल्ख (बैक्ट्रिया) से लेकर पूर्व में पूर्वी बंगाल, तक, निकटवर्ती बंगक्षेत्र जीतकर गुप्त साम्राज्य में विलीन कर दिये गये। चन्द्रगुप्त ने अश्वमेध एवं राजसूय यज्ञ किये। चन्द्रगुप्त ने भारत के मुख्य राजपरिवार से विवाह संबंध स्थापित किये। जनता ३३ नागवंश की राजकुमारी कुबेर नागा से चन्द्रगुप्त ने स्वयं विवाह किये। अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह वाकाटक शासक रुद्रसेन द्वितीय से किया। शकों को हराने में इससे सहायता मिली। कुन्तल राज्य के कदम्ब शासकों से भी वैवाहिक संबंध जुड़े थे। कुन्तल राजकन्या का विवाह चन्द्रगुप्त के साथ हुआ था। कला, साहित्य, धर्म सभी दृष्टियों से चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के कार्यों ने में समुद्रगुप्त की स्मृतियाँ धूमिल कर दिया और जन-जन के हृदय का सम्राट चन्द्रगुप्त सम्राट हो गये।
ताम्बे और चाँदी के सिक्के भी चन्द्रगुप्त जारी किये। सोने की मुद्रायें भी चलायीं। पिता समुद्रगुप्त के सिक्के पर उन्हें चीते से लड़ते दिखाया गया है, क्योंकि उनके राज्य में सिंह उपलब्ध नहीं थे। पुत्र चन्द्रगुप्त सिंह से लड़ते मुद्रांकित हैं क्योंकि सौराष्ट्र विजय से उन्हें सिंह का शिकार करने की सुविधा मिल गयी। वीणापाणि रूप में भी चन्द्रगुप्त मुद्रांकित हैं। किसी मुद्रा में प्रसाद लेते, किसी में अश्वारूढ़ मुद्रा है। इनका धर्म, शौर्य और संगीत प्रेम इन सिक्कों के संकेत देते हैं चन्द्रगुप्त के इतिहास पर। चन्द्रगुप्त एक महान् सम्राट थे।