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प्रथम पाद - मासोपवास-व्रतकी विधि


 
मासोपवास -व्रतकी विधि और महिमा
श्रीसनकजी कहते हैं -
नारदजी ! अब मैं मासोपवास नामक दूसरे श्रेष्ठ व्रतका वर्णन करूँगा ; एकाग्रचित्त होकर सुनिये। वह सब पापोंको हर लेनेवाला , पवित्र तथा सब लोकोंका उपकार करनेवाला है। विप्रवर ! आषाढ़ , श्रावण , भादों अथवा आश्विन मासमें इस व्रतको करना चाहिये। इनमेंसे किसी एक मासके शुक्ल पक्षमें जितेन्द्रिय पुरुष पञ्चगव्य पीये और भगवान् ‌‍ विष्णुके समीप शयन करे। तदनन्तर प्रातःकाल उठकर नित्यकर्म समाप्त करनेके पश्रात् ‌‍ मन और इन्द्रियोंको वशमें करके क्रोधरहित हो , श्रद्धापूर्वक भगवान् ‌‍ विष्णुकी पूजा करे। विद्वानोंके साथ भगवान् ‌‍ विष्णुका यथोचित पूजन करके स्वस्तिवाचनपूर्वक यह संकल्प करे --
मासमेकं निराहारो ह्यद्यप्रभृति केशव।
मासान्ते पारणं कुर्वे देवदेव तवाज्ञया ॥
तपोरूप नमस्तुभ्यं तपसां फलदायक।
ममाभीष्टफलं देहि सर्वविघ्नान् ‌‍ निवारय ॥
( ना० पूर्व० २२।६ - ७ )
’ देवदेव ! केशव ! आजसे एक मासतक मैं निराहार रहकर मासके अन्तमें आपकी आज्ञासे पारण करूँगा। प्रभो ! आप तपस्यारूप हैं और तपस्याके फल देनेवाले हैं। आपको नमस्कार है। आप मुझे अभीष्ट फल दें और मेरे सम्पूर्ण विघ्रोंका निवारण करें। ’ 
इस प्रकार भगवान् ‌‍ विष्णुको शुभ मासव्रत समर्पण करके उस दिनसे लेकर महीनेके अन्ततक भगवान् ‌‍ विष्णुके मन्दिरमें निवास करे और प्रतिदिन पञ्चामृतकी विधिसे भगवानको स्नानन करावे। उस महीनेमें निरन्तर भगवान्‌‍के मन्दिरमें दीप जलावे। नित्यप्रति अपामार्ग ( ऊँगा -चिरचिरा )-की दातुन करे और भगवान् ‌‍ नारायणके चिन्तनमें रत हो विधिपूर्वक स्नानन करे। तदनन्तर पहलेकी भाँति संयमपूर्वक भगवान् ‌‍ विष्णुको स्नानन करावे और उनकी पूजा करे। इस प्रकार मासोपवास पूरा होनेपर भगवत्पूजनपूर्वक यथाशक्ति ब्राह्यणोंको भोजन करावे और भक्तिपूर्वक उन्हें दक्षिणा दे। फिर स्वयं भी इन्द्रियोंको वशमें करके बन्धुजनोंके साथ भोजन करे। इस प्रकार व्रती पुरुष तेरह बार मासोपवास अर्थात् ‌‍ प्रतिवर्ष एक मासोपवास -व्रत करता हुआ तेरह वर्षतक व्रत करे। उसके अन्तमें वेदवेत्ता ब्राह्यणको दक्षिणासहित गोदान करे। बारह ब्राह्यणोंको विधिपूर्वक भोजन करावे और अपनी शक्तिके अनुसार उन्हें वस्त्र , आभूषण तथा दक्षिणा दे। इस प्रकार जो मनुष्य इन्द्रियसंयमपूर्वक तेरह पराक पूर्ण कर लेता है , वह परमानन्द पदको प्राप्त होता है , जहाँ जाकर कोई शोक नहीं करता। मासोपवास -व्रतमें लगे हुए , गङ्रास्नाननमें तत्पर तथा धर्ममार्गका उपदेश करनेवाले मनुष्य निस्संदेह मुक्त ही हैं। विधवा स्त्रियों , संन्यासियों , ब्रह्यचारियों और विशेषतः वानप्रस्थियोंको यह मासोपवास -व्रत करना चाहिये। स्त्री हो या पुरुष , इस परम दुर्लभ व्रतका अनुष्ठान करके मोक्ष प्राप्त कर लेता है , जो योगियोंके लिये भी दुर्लभ है। गृहस्थ हो या वानप्रस्थ , ब्रह्यचारी हो या संन्यासी तथा मूर्ख हो या पण्डि -इस प्रसंगको सुनकर कल्याणका भागी होता है। जो भगवान् ‌‍ नारायणकी शरण होकर इस पुण्यमय व्रतका वर्णन सुनता अथवा पढ़ता है , वह पापोंसे मुक्त हो जाता है।
 

श्रीनारदपुराण - पूर्वभाग

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Chapters
प्रथम पाद - सूतजीसे प्रश्न प्रथम पाद - विष्णुकी स्तुति प्रथम पाद - सृष्टिक्रमका संक्षिप्त वर्णन प्रथम पाद - सत्सड्गकी माहिमा प्रथम पाद - भगवानकी स्तुति प्रथम पाद - गंगा यमुना संगम प्रथम पाद - राजा बाहुकी अवनति प्रथम पाद - सगरका जन्म प्रथम पाद - देवताओंकी पराजय प्रथम पाद - अदितिको भगवद्दर्शन प्रथम पाद - दानका पात्र प्रथम पाद - तुलसी महिमा प्रथम पाद - विविध प्रायश्चित्तका वर्णन प्रथम पाद - सत्संग-लाभ प्रथम पाद - द्वादशीव्रतका वर्णन प्रथम पाद - द्वादशीव्रतका वर्णन प्रथम पाद - लक्ष्मीनारायण व्रत प्रथम पाद - ध्वजारोपणकी विधि प्रथम पाद - हरिपञ्चक-व्रतकी विधि प्रथम पाद - मासोपवास-व्रतकी विधि द्वितीय पाद - सृष्टितत्त्वका वर्णन द्वितीय पाद - ध्यानयोगका वर्णन द्वितीय पाद - त्रिविध तापोंसे छूटनेका उपाय द्वितीय पाद - मुक्तिप्रद योगका वर्णन द्वितीय पाद - जडभरत और सौवीरनरेशका संवाद द्वितीय पाद - अद्वैतज्ञानका उपदेश द्वितीय पाद - शिक्षा-निरूपण द्वितीय पाद - कल्पका वर्णन द्वितीय पाद - व्याकरण शास्त्रका वर्णन द्वितीय पाद - निरुक्त-वर्णन द्वितीय पाद - त्रिस्कन्ध ज्यौतिषके वर्णन द्वितीय पाद - त्रिस्कन्ध ज्यौतिषका जातकस्कन्ध द्वितीय पाद - संहिताप्रकरण