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भाग 26

 


कुमार की आज्ञानुसार इन्दिरा ने पुनः अपना किस्सा कहना शुरू किया –
इन्दिरा - चम्पा ने मुझे दिलासा देकर बहुत कुछ समझाया और मेरी मदद करने का वादा किया और यह भी कहा कि आज से तू अपना नाम बदल दे। मैं तुझे अपने घर ले चलती हूं मगर इस बात का खूब ध्यान रखियो कि यदि कोई तुझसे तेरा नाम पूछे तो 'सरला' बताइयो और यह सब हाल जो तूने मुझसे कहा है अब और किसी से बयान न कीजियो। मैंने चम्पा की बात कबूल कर ली और वह मुझे अपने साथ चुनारगढ़ ले गई। वहां पहुंचने पर जब मुझे चम्पा की इज्जत और मर्तबे का हाल मालूम हुआ तो मैं अपने दिल में बहुत खुश हुई और विश्वास हो गया कि वहां रहने में मुझे किसी तरह का डर नहीं है और इनकी मेहरबानी से अपने दुश्मनों से बदला ले सकूंगी।
चम्पा ने मुझे हिफाजत और आराम से अपने यहां रक्खा और मेरा सच्चा हाल अपनी प्यारी सखी चपला के सिवाय और किसी से भी न कहा। निःसन्देह उसने मुझे अपनी लड़की के समान रक्खा और ऐयारी की विद्या भी दिल लगाकर सिखलाने लगी, मगर अफसोस, किस्मत ने मुझे बहुत दिनों तक उसके पास रहने न दिया और थोड़े ही जमाने के बाद (इन्द्रजीतसिंह की तरफ इशारा करके) आपको गया की रानी माधवी ने धोखा देकर गिरफ्तार कर लिया। चम्पा और चपला आपकी खोज में निकलीं, मुझे भी उनके साथ जाना पड़ा और उसी जमाने में मेरा और चम्पा का साथ छूटा।
आनन्द - तुम्हें यह कैसे मालूम हुआ कि भैया को माधवी ने गिरफ्तार कराया था?
इन्दिरा - माधवी के दो आदमियों को चम्पा और चपला ने अपने काबू में कर लिया, पहिले छिपकर उन दोनों की बातें सुनीं जिससे विश्वास हो गया कि दोनों माधवी के नौकर हैं और कुंअर साहब को गिरफ्तार कर लेने में दोनों शरीक थे, मगर यह समझ में न आया कि जिसके ये लोग नौकर हैं वह माधवी कौन है और कुंअर साहब को ले जाकर उसने कहां रक्खा है। लाचार चम्पा ने धोखा देकर उन लोगों को अपने काबू में किया और कुंअर साहब का हाल उनसे पूछा। मैंने उन दोनों के ऐसा जिद्दी आदमी कोई भी न देखा होगा। आपने स्वयं देखा था कि चम्पा ने उस खोह में उसे कितना दुःख देकर मारा मगर उस कम्बख्त ने ठीक-ठीक पता नहीं दिया। उस समय वहां चम्पा का नौकर भी हबशी के रूप में काम कर रहा था, आपको याद होगा।
आनन्द - वह माधवी ही का आदमी था?
इन्दिरा - जी हां, और उसकी बातों का आपने दूसरा ही मतलब लगा लिया था।
आनन्द - ठीक है, अच्छा फिर उस दूसरे आदमी की क्या दशा हुई, क्योंकि चम्पा ने तो दो आदमियों को पकड़ा था?
इन्दिरा - वह दूसरा आदमी भी चम्पा के हाथ से उसी रात उसके थोड़ी देर पहिले मारा गया था।
आनन्द - हां ठीक है, उसके थोड़ी देर पहिले चम्पा ने एक और आदमी को मारा था। जरूर यह वही होगा जिसके मुंह से निकले हुए टूटे-फूटे शब्दों ने हमें धोखे में डाल दिया था। अच्छा उसके बाद क्या हुआ तुम्हारा साथ उनसे कैसे छूटा?
इन्दिरा - चम्पा और चपला जब वहां से जाने लगीं तो ऐयारी का बहुत कुछ सामान और खाने - पीने की चीजें उसी खोह में रखकर मुझसे कह गईं कि जब तक हम दोनों या दोनों में से कोई एक लौटकर न आवे तब तक तू इसी जगह रहियो इत्यादि, मगर मुझे बहुत दिनों तक उन दोनों का इन्तजार करना पड़ा यहां तक कि जी ऊब गया और मैं ऐयारी का कुछ सामान लेकर उस खोह से बाहर निकली क्योंकि चम्पा की बदौलत मुझे कुछ-कुछ ऐयारी भी आ गई थी। जब मैं उस पहाड़ और जंगल को पार करके मैदान में पहुंची तो सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए, क्योंकि बहुत-सी बंधी हुई उम्मीदों का उस समय खून हो रहा था और अपनी मां की चिन्ता के कारण मैं बहुत दुःखी हो रही थी। यकायक मेरी निगाह एक ऐसी चीज पर पड़ी जिसने मुझे चौंका दिया और मैं घबड़ाकर उस तरफ देखने लगी...।
इन्दिरा और कुछ कहा ही चाहती थी कि यकायक जमीन के अन्दर से बड़े जोर-शोर के साथ घड़घड़ाहट की आवाज आने लगी जिसने सभों को चौंका दिया और इन्दिरा घबड़ाकर राजा गोपालसिंह का मुंह देखने लगी। सबेरा हो चुका था और पूरब तरफ से उदय होने वाले सूर्य की लालिमा ने आसमान का कुछ भाग अपनी बारीक चादर के नीचे ढांक लिया था।
गोपाल - (कुमार से) अब आप दोनों भाइयों का यहां ठहरना उचित नहीं जान पड़ता, यह आवाज जो जमीन के नीचे से आ रही है निःसन्देह तिलिस्मी कल-पुरजों के हिलने या घूमने के सबब से है। एक तौर पर आप तिलिस्म तोड़ने में हाथ लगा चुके हैं अस्तु अब इस काम में रुकावट नहीं हो सकती। इस आवाज को सुनकर आपके दिल में भी यही खयाल पैदा हुआ होगा, अस्तु अब आप क्षणभर भी विलम्ब न कीजिए।
कुमार - बेशक ऐसी ही बात है, आप भी यहां से शीघ्र चले जाइये, मगर इन्दिरा का क्या होगा?
गोपाल - इन्दिरा को इस समय मैं अपने साथ ले जाता हूं फिर जो कुछ होगा देखा जायगा।
कुमार - अफसोस कि इन्दिरा का कुल हाल सुन न सके, खैर लाचारी है।
गोपाल - कोई चिन्ता नहीं, आप तिलिस्म का काम तमाम करके इसकी मां को छुड़ाएं फिर सब हाल सुन लीजिएगा। हां, आपसे वादा किया था कि अपनी तिलिस्मी किताब आपको पढ़ने के लिए दूंगा मगर वह किताब गायब हो गई थी इसलिए दे न सका था, अब (किताब दिखाकर) इन्दिरा के साथ ही यह किताब भी मुझे मिल गई है, इसे पढ़ने के लिए मैं आपको दे सकता हूं, यदि आप इसे अपने साथ ले जाना चाहें तो ले जायें।
इन्द्रजीत - समय की लाचारी इस समय हम लोगों को आपसे जुदा करती है, और यह निश्चय नहीं हो सकता है कि पुनः कब आपसे मुलाकात होगी और यह किताब हम लोग ले जायेंगे तो कब वापस करने की नौबत आयगी। तिलिस्मी किताब जो मेरे पास है उसके पढ़ने और बाजे की आवाज के सुनने से मुझे विश्वास होता है कि आपकी किताब पढ़े बिना भी हम लोग तिलिस्म तोड़ सकेंगे। यदि मेरा यह खयाल ठीक है तो आपके पास से यह किताब ले जाकर आपका बहुत बड़ा हर्ज करना समयानुकूल न होगा।
गोपाल - ठीक है, इस किताब के बिना आपका कोई खास हर्ज नहीं हो सकता और इसमें कोई शक नहीं कि इसके बिना मैं बे-हाथ-पैर का हो जाऊंगा।
इन्द्रजीत - तो इस किताब को आप अपने पास ही रहने दीजिए, फिर जब मुलाकात होगी देखा जायगा, अब हम लोग बिदा होते हैं।
गोपाल - खैर जाइए, हम आप दोनों भाइयों को दयानिधि ईश्वर के सुपुर्द करते हैं।
इसके बाद राजा गोपालसिंह ने जल्दी-जल्दी कुछ बातें दोनों कुमारों को समझाकर बिदा किया और आप भी इन्दिरा को साथ ले महल की तरफ रवाना हो गए।