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सोलहवां भाग बयान - 9

रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है और दोनों कुमार बाग के बीच वाले उसी दालान में सोये हुए हैं। यकायक किसी तरह की भयानक आवाज सुनकर दोनों भाइयों की नींद टूट गई और वे दोनों उठकर जंगले के नीचे चले आये। चारों तरफ देखने पर जब इनकी निगाह उस तरफ गई जिधर वह पिण्डी थी तो कुछ रोशनी मालूम पड़ी। दोनों भाई उसके पास गये तो देखा कि उस पिण्डी में से हाथ-भर ऊंची लाट निकल रही है। यह लाट (आग की ज्योति) नीले और कुछ पीले रंग की मिली-जुली थी। साथ ही इसके यह मालूम हुआ कि लाख या राल की तरह वह पिण्डी गलती हुई जमीन के अन्दर धंसती चली जा रही है। उस पिण्डी में से जो धुआं निकल रहा था उसमें धूप व लोबान की-सी खुशबू आ रही थी।

थोड़ी देर तक दोनों कुमार वहां खड़े रहकर यह तमाशा देखते रहे, इसके बाद इन्द्रजीतसिंह यह कहते हुए बंगले की तरफ लौटे, ''ऐसा तो होना ही था, मगर उस भयानक आवाज का पता न लगा, शायद इसी में से वह आवाज भी निकली हो।'' इसके जवाब में आनन्दसिंह ने कहा, ''शायद ऐसा ही हो!''

दोनों कुमार अपने ठिकाने चले आए और बची हुई रात बात-चीत में काटी क्योंकि खुटका हो जाने के कारण फिर उन्हें नींद न आई। सबेरा होने पर जब वे दोनों पुनः उस पिण्डी के पास गए तो देखा कि आग बुझी हुई है और पिण्डी की जगह बहुत-सी पीले रंग की राख मौजूद है। यह देख दोनों भाई वहां से लौट आए और अपने नित्यकार्य करने से छुट्टी पा पुनः वहां जाकर उस पीले रंग की राख को निकाल वह जगह साफ करने लगे। मालूम हुआ कि वह पिण्डी जो जलकर राख हो गई है लगभग तीन हाथ के जमीन के अन्दर थी और इसलिए राख साफ हो जाने पर तीन हाथ का गड्ढा इतना लम्बा चौड़ा निकल आया कि जिसमें दो आदमी बखूबी जा सकते थे। गड़हे के पेंदे में लोहे का एक तख्ता था जिसमें कड़ी लगी हुई थी। इन्द्रजीतसिंह ने कड़ी में हाथ डालकर वह लोहे का तख्ता उठा लिया और आनन्दसिंह को देकर कहा, ''इसे किनारे रख दो।''

लोहे का तख्ता हटा देने के बाद ताले के मुंह की तरह का एक सूराख नजर आया जिसमें इन्द्रजीतसिंह ने वही तिलिस्मी ताली डाली जो पुतली के हाथ में से ली थी। कुछ तो वह ताली ही विचित्र बनी हुई थी और कुछ ताला खोलते समय इन्द्रजीतसिंह को बुद्धिमानी से काम लेना पड़ा। ताला खुल जाने के बाद जब दरवाजे की तरह का एक पल्ला हटाया गया तो नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां नजर आईं। तिलिस्मी खंजर की रोशनी के सहारे दोनों भाई नीचे उतरे और भीतर से दरवाजा बन्द कर लिया, क्योंकि ताले का छेद दोनों तरफ था और वही ताली दोनों तरफ काम देती थी।

पन्द्रह या सोलह सीढ़ियां उतर जाने के बाद दोनों कुमारों को थोड़ी दूर तक एक सुरंग में चलना पड़ा। इसके बाद ऊपर चढ़ने के लिए पुनः सीढ़ियां मिलीं और तब उसी ताली से खुलने लायक एक दरवाजा। सीढ़ियां चढ़ने और दरवाजा खोलने के बाद कुमारों को कुछ मिट्टी हटानी पड़ी और उसके बाद वे दोनों जमीन के बाहर निकले।

इस समय दोनों कुमारों ने अपने को एक और ही बाग में पाया जो लम्बाई-चौड़ाई में उस बाग से छोटा था जिसमें से कुमार आये थे। पहिले बाग की तरह यह बाग भी एक प्रकार से जंगल हो रहा था। इन्दिरा की मां अर्थात् इन्द्रदेव की स्त्री इसी बाग में मुसीबत की घड़ियां काट रही थी और इस समय भी इसी बाग में मौजूद थी इसलिए बनिस्बत पहिले बाग के इस बाग का नक्शा कुछ खुलासे तौर पर लिखना आवश्यक है।

इस बाग में किसी तरह की इमारत न थी, न तो कोई कमरा था और न कोई बंगला या दालान था, इसलिए बेचारी सर्यू को जाड़े के मौसम की कलेजा दहलाने वाली सर्दी, गर्मी की कड़कड़ी हुई धूप और बरसात का मूसलाधार पानी अपने कोमल शरीर ही के ऊपर बर्दाश्त करना पड़ता था। हां कहने के लिए ऊंचे बड़ और पीपल के पेड़ों का कुछ सहारा हो तो हो, मगर बड़े प्यार से पाली जाकर दिन-रात सुख ही से बिताने वाली एक पतिव्रता के लिए जंगलों और भयानक पेड़ों का सहारा-सहारा नहीं हो सकता बल्कि वह भी उसके लिए डराने और सताने के समान माना जा सकता है, हां वहां थोड़े से पेड़ ऐसे भी जरूर थे जिनके फलों को खाकर पति-मिलाप की आशालता में उलझती हुई अपनी जान को बचा सकती थी और प्यास दूर करने के लिए उस नहर का पानी भी मौजूद था जो मनुबाटिका में से होती हुई इस बाग में भी आकर बेचारी सर्यू की जिन्दगी का सहारा हो रही थी। पर तिलिस्म बनाने वालों ने उस नहर को इस योग्य नहीं बनाया था कि कोई उसके मुहाने को दम - भर के लिए सुरंग मानकर एक बाग से दूसरे बाग में जा सके। इस बाग की चहारदीवारी में भी विचित्र कारीगरी की गई थी। दीवार कोई छू भी नहीं सकता था, कई प्रकार की धातुओं से इस बाग की सात हाथ ऊंची दीवार बनाई गई थी। जिस तरह रस्सियों के सहारे कनात खड़ी हो जाती है शक्ल-सूरत में वह दीवार वैसी ही मालूम पड़ती थी अर्थात् एक-एक, दो-दो, कहीं-कहीं तीन-तीन हाथ की दूरी पर दीवार में लोहे की जंजीरें लगी हुई थीं जिनका एक सिरा तो दीवार के अन्दर घुस गया था और दूसरा सिरा जमीन के अन्दर। चारों तरफ की दीवार में से किसी भी जगह हाथ लगाने से आदमी के बदन में बिजली का असर हो जाता था और वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ता था। यही सबब था कि बेचारी सर्यू उस दीवार के पार हो जाने के लिए कोई उद्योग न कर सकी बल्कि इस चेष्टा में उसे कई दफे तकलीफ भी उठानी पड़ी।

इस बाग की उत्तरी तरफ की दीवार के साथ सटा हुआ एक छोटा-सा मकान था। इस बाग में खड़े होकर देखने वालों को तो यह मकान ही मालूम पड़ता था। मगर हम यह नहीं कह सकते कि दूसरी तरफ से उसकी क्या सूरत थी। इसकी सात खिड़कियां इस बाग की तरफ थीं जिनसे मालूम होता था कि यह इस मकान का एक खुला-सा कमरा है। इस बाग में आने पर सबके पहिले जिस चीज पर कुंअर इन्द्रजीतसिंह की निगाह पड़ी वह यही कमरा था और उसकी तीन खिड़कियों में से इन्दिरा, इन्द्रदेव और राजा गोपालसिंह इस बाग की तरफ झांककर किसी को देख रहे थे और इसके बाद जिस पर उनकी निगाह पड़ी वह जमाने के हाथों से सताई हुई बेचारी सर्यू थी। मगर उसे दोनों कुमार पहिचानते न थे।

जिस तरह कुंअर इन्द्रजीतसिंह और उनके बताने से आनन्दसिंह ने राजा गोपालसिंह, इन्द्रदेव और इन्दिरा को देखा उसी तरह उन तीनों ने भी दोनों कुमारों को देखा और दूर से ही साहब-सलामत की।

इन्दिरा ने हाथ जोड़कर और अपने पिता की तरफ बताकर कुमारों से कहा, ''आप ही के चरणों की बदौलत मुझे अपने पिता के दर्शन हुए!''

चंद्रकांता संतति - खंड 4

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
तेरहवां भाग : बयान - 1 तेरहवां भाग : बयान - 2 तेरहवां भाग : बयान - 3 तेरहवां भाग : बयान - 4 तेरहवां भाग : बयान - 5 तेरहवां भाग : बयान - 6 तेरहवां भाग : बयान - 7 तेरहवां भाग : बयान - 8 तेरहवां भाग : बयान - 9 तेरहवां भाग : बयान - 10 तेरहवां भाग : बयान - 11 तेरहवां भाग : बयान - 12 तेरहवां भाग : बयान - 13 चौदहवां भाग : बयान - 1 चौदहवां भाग : बयान - 2 चौदहवां भाग : बयान - 3 चौदहवां भाग : बयान - 4 चौदहवां भाग : बयान - 5 चौदहवां भाग : बयान - 6 चौदहवां भाग : बयान - 7 चौदहवां भाग : बयान - 8 चौदहवां भाग : बयान - 9 चौदहवां भाग : बयान - 10 चौदहवां भाग : बयान - 11 पन्द्रहवां भाग बयान - 1 पन्द्रहवां भाग बयान - 2 पन्द्रहवां भाग बयान - 3 पन्द्रहवां भाग बयान - 4 पन्द्रहवां भाग बयान - 5 पन्द्रहवां भाग बयान - 6 पन्द्रहवां भाग बयान - 7 पन्द्रहवां भाग बयान - 8 पन्द्रहवां भाग बयान - 9 पन्द्रहवां भाग बयान - 10 पन्द्रहवां भाग बयान - 11 पन्द्रहवां भाग बयान - 12 सोलहवां भाग बयान - 1 सोलहवां भाग बयान - 2 सोलहवां भाग बयान - 3 सोलहवां भाग बयान - 4 सोलहवां भाग बयान - 5 सोलहवां भाग बयान - 6 सोलहवां भाग बयान - 7 सोलहवां भाग बयान - 8 सोलहवां भाग बयान - 9 सोलहवां भाग बयान - 10 सोलहवां भाग बयान - 11 सोलहवां भाग बयान - 12 सोलहवां भाग बयान - 13 सोलहवां भाग बयान - 14