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चौदहवां भाग : बयान - 7

रात पहर भर से ज्यादे जा चुकी है। चन्द्रदेव उदय हो चुके हैं मगर अभी इतने ऊंचे नहीं उठे हैं कि बाग के पूरे हिस्से पर चांदनी फैली हुए दिखाई देती, हां बाग के उस हिस्से पर चांदनी का फर्श जरूर बिछ चुका था जिधर कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह एक चट्टान पर बैठे हुए बातें कर रहे थे। ये दोनों भाई अपने जरूरी कामों से छुट्टी पा चुके थे और संध्या-वंदन करके दो-चार फलों से आत्मा को सन्तोष देकर आराम से बैठे बातें करते हुए राजा गोपालसिंह के आने का इन्तजार कर रहे थे। यकायक बाग के उस कोने में जिधर चांदनी न होने तथा पेड़ों के झुरमुट के कारण अंधेरा था दिये की चमक दिखाई पड़ी। दोनों भाई चौकन्ने होकर उस तरफ देखने लगे और दोनों को गुमान हुआ कि राजा गोपालसिंह आते होंगे मगर उनका शक थोड़ी ही देर बाद जाता रहा जब एक औरत को हाथ में लालटेन लिए अपनी तरफ आते देखा।

इन्द्र - यह औरत इस बाग में क्योंकर आ पहुंची?

आनन्द - ताज्जुब की बात है मगर मैं समझता हूं कि इसे हम दोनों भाइयों के यहां होने की खबर नहीं है, अगर होती तो इस तरह बेफिक्री के साथ कदम बढ़ाती हुई न आती।

इन्द्र - मैं भी यही समझता हूं, अच्छा हम दोनों को छिपकर देखना चाहिए यह कहां जाती और क्या करती है?

आनन्द - मेरी भी यही राय है।

दोनों भाई वहां से उठे और धीरे-धीरे चलकर पेड़ की आड़ में छिपे रहे जिसे चारों तरफ से लताओं ने अच्छी तरह घेर रक्खा था और जहां से उन दोनों की निगाह बाग के हर एक हिस्से और कोने में बखूबी पहुंच सकती थी। जब वह औरत घूमती हुई उस पेड़ के पास से होकर निकली तब आनन्दसिंह ने धीरे से कहा, ''यह वही औरत है।''

इन्द्र - कौन?

आनन्द - जिसे तिलिस्म के अन्दर बाजे वाले कमरे में मैंने देखा और जिसका हाल आपसे तथा गोपाल भाई से कहा था।

इन्द्र - हां! अगर वास्तव में ऐसा है तो फिर इसे गिरफ्तार करना चाहिए।

आनन्द - जरूर गिरफ्तार करना चाहिए।

दोनों भाई सलाह करके उस पेड़ की आड़ में से निकले और उस औरत को घेरकर गिरफ्तार करने का उद्योग करने लगे। थोड़ी ही देर में नजदीक होने पर इन्द्रजीतसिंह ने भी देखकर निश्चय कर लिया कि हाथ में लालटेन लिये हुए यह वही औरत है जिसे तिलिस्म में फांसी लटकते आदमी के साथ-साथ निर्जीव खड़े देखा था।

उस औरत को भी मालूम हो गया कि दो आदमी उसे गिरफ्तार किया चाहते हैं अतएव वह चैतन्य हो गई और चमेली की टट्टियों में घूम-फिरकर कहीं गायब हो गई। दोनों भाइयों ने बहुत उद्योग और पीछा किया मगर नतीजा कुछ भी न निकला। वह औरत ऐसी गायब हुई कि कोई निशान भी न छोड़ गई, न मालूम वह चमेली की टट्टियों में लीन हो गई या जमीन के अन्दर समा गई। दोनों भाई लज्जा के साथ ही साथ निराश होकर अपनी जगह लौट आये और उसी समय राजा गोपालसिंह को भी एक हाथ में चंगेर और दूसरे हाथ में तेज रोशनी की अद्भुत लालटेन लिये हुए आते देखा। गोपालसिंह दोनों भाइयों के पास आए और लालटेन तथा चंगेर जिसमें खाने की चीजें थीं, जमीन पर रखकर इस तरह बैठ गये जैसे बहुत दूर का चला आता हुआ मुसाफिर परेशान और बदहवासी की हालत में आगे सफर करने से निराश होकर पृथ्वी की शरण लेता है, या कोई-कोई धनी अपनी भारी रकम खो देने के बाद चोरों की तलाश से निराश और हताश होकर बैठ जाता है। इस समय राजा गोपालसिंह के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था और वे बहुत ही परेशान और बदहवास मालूम होते थे। कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने घबड़ाकर पूछा, ''कहिए कुशल तो है?'

गोपाल - (घबड़ाहट के साथ) कुशल नहीं है।

इन्द्र - सो क्या?

गोपाल - मालूम होता है कि हमारे घर में किसी जबर्दस्त दुश्मन ने पैर रक्खा है और हमारे यहां से वह चीज ले गया जिसके भरोसे पर हम अपने को तिलिस्म का राजा समझते थे और तिलिस्म तोड़ने के समय आपको मदद देने का हौसला रखते थे।

आनन्द - वह कौन-सी चीज थी?

गोपाल - वह तिलिस्मी किताब जिसका जिक्र आप लोगों से कर चुके हैं और जिसे लाने के लिए हम इस समय गए थे।

इन्द्र - (रंज के साथ) अफसोस! क्या आप उसे छिपाकर नहीं रखते थे?

गोपाल - छिपाकर तो ऐसे रखते थे कि हमें वर्षों तक कैदखाने में सड़ाने और मुर्दा बनाने पर भी मुन्दर जिसने अपने को मायारानी बना रक्खा था उसे पा न सकी!

इन्द्र - तो आज वह यकायक गायब कैसे हो गई?

गोपाल - न मालूम क्योंकर गायब हो गई, मगर इतना जरूर कह सकते हैं कि जिसने यह किताब चुराई है वह तिलिस्म के भेदों से कुछ जानकार अवश्य हो गया है। इसे आप लोग साधारण बात न समझिए। इस चोरी से हमारा उत्साह भंग हो गया और हिम्मत जाती रही। हम आप लोगों को इस तिलिस्म में किसी तरह की मदद देने लायक न रहे और हमें अपनी जान जाने का भी खौफ हो गया। इतना ही नहीं सबसे ज्यादे तरद्दुद की बात तो यह है कि वह चोर आश्चर्य नहीं कि आप लोगों को भी दुःख दे।

इन्द्र - यह तो बहुत बुरा हुआ।

गोपाल - बेशक बुरा हुआ। हां यह तो बताइये इस बाग में लालटेन लिए कौन घूम रहा था

आनन्द - वही औरत जिसे मैंने तिलिस्म के अन्दर बाजे वाले कमरे में देखा था और जो फांसी लटकते हुए मनुष्य के पास निर्जीव अवस्था में खड़ी थी। (इन्द्रजीतसिंह की तरफ इशारा करके) आप भाईजी से पूछ लीजिए कि मैं सच्चा था या नहीं।

इन्द्र - बेशक उसी रंग-रूप और चाल-ढाल की औरत थी!

गोपाल - बड़े आश्चर्य की बात है! कुछ अक्ल काम नहीं करती!!

इन्द्र - हम दोनों ने उसे गिरफ्तार करने के लिए बहुत उद्योग किया मगर कुछ बन न पड़ा। इन्हीं चमेली की टट्टियों में वह खुशबू की तरह हवा के साथ मिल गई, कुछ मालूम न हुआ कि कहां चली गई!!

गोपाल - (घबड़ाकर) इन्हीं चमेली की टट्टियों में वहां से तो देवमन्दिर में जाने का रास्ता है जो बाग के चौथे दर्जे में है!

इन्द्र - (चौंककर) देखिए, देखिए, वह फिर निकली!

चंद्रकांता संतति - खंड 4

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
तेरहवां भाग : बयान - 1 तेरहवां भाग : बयान - 2 तेरहवां भाग : बयान - 3 तेरहवां भाग : बयान - 4 तेरहवां भाग : बयान - 5 तेरहवां भाग : बयान - 6 तेरहवां भाग : बयान - 7 तेरहवां भाग : बयान - 8 तेरहवां भाग : बयान - 9 तेरहवां भाग : बयान - 10 तेरहवां भाग : बयान - 11 तेरहवां भाग : बयान - 12 तेरहवां भाग : बयान - 13 चौदहवां भाग : बयान - 1 चौदहवां भाग : बयान - 2 चौदहवां भाग : बयान - 3 चौदहवां भाग : बयान - 4 चौदहवां भाग : बयान - 5 चौदहवां भाग : बयान - 6 चौदहवां भाग : बयान - 7 चौदहवां भाग : बयान - 8 चौदहवां भाग : बयान - 9 चौदहवां भाग : बयान - 10 चौदहवां भाग : बयान - 11 पन्द्रहवां भाग बयान - 1 पन्द्रहवां भाग बयान - 2 पन्द्रहवां भाग बयान - 3 पन्द्रहवां भाग बयान - 4 पन्द्रहवां भाग बयान - 5 पन्द्रहवां भाग बयान - 6 पन्द्रहवां भाग बयान - 7 पन्द्रहवां भाग बयान - 8 पन्द्रहवां भाग बयान - 9 पन्द्रहवां भाग बयान - 10 पन्द्रहवां भाग बयान - 11 पन्द्रहवां भाग बयान - 12 सोलहवां भाग बयान - 1 सोलहवां भाग बयान - 2 सोलहवां भाग बयान - 3 सोलहवां भाग बयान - 4 सोलहवां भाग बयान - 5 सोलहवां भाग बयान - 6 सोलहवां भाग बयान - 7 सोलहवां भाग बयान - 8 सोलहवां भाग बयान - 9 सोलहवां भाग बयान - 10 सोलहवां भाग बयान - 11 सोलहवां भाग बयान - 12 सोलहवां भाग बयान - 13 सोलहवां भाग बयान - 14