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अथर्ववेद

अथर्वा ऋषि प्रणीत अथर्ववेद सचमुच रहस्यमयी है। इसके सूत्रों को समझना बहुत ही मुश्‍किल है। इस वेद में तरह-तरह की विद्याओं का वर्णन मिलता है। इन विद्याओं में कुछ के नाम हैं- प्राण विद्या, मधु विद्या, सम्मोहन विद्या, विकर्षण विद्या एवं संवर्ग विद्या आदि। वर्तमान में प्रचलित रेकी विद्या का उद्गम भी यह वेद ही है। दरअसल, इस विद्या का जिक्र हमें अथर्ववेद के तेरहवें अध्याय में मिलता है।

 

सम्मोहन विद्या के 10 रहस्य, जानिए


अथर्ववेद कहता है कि किसी षड्यंत्रकारी ने यदि उत्कोच अर्थात घूस देकर अथवा फिर किसी अन्य उपाय से आपका अहित किया है तो आप किसी यक्ष का स्मरण कर ध्यानावस्था में रहते हुए यह आभास पा सकते हैं कि आपके खिलाफ कहां कौन-सा कुचक्र हो रहा है। कुछ इसी तरह की विधायक विद्या है संवर्ग-विद्या जो उपनिषद् युगीन गाड़ीवान को आती थी। यह गाड़ीवान ही रैक्व ऋषि थे। उनका नाम गाड़ीवान इसलिए की वे अपनी गाड़ी में ही सोते रहते थे। रैक्व ऋषि ने विराट से झरती ऊर्जा को सीधे-सीधे ग्रहण करने की विधि अपनाई थी। उनकी ही इस विद्या को जापान में रेकी कहा गया। भारतीय लोग इसके पीछे का इतिहास नहीं जानते इसलिए वे रेकी को जापानी विद्या मानते हैं।

 

इसके अलावा अथर्ववेद में उल्लेखित सम्मोहन विद्या भारतवर्ष की प्राचीनतम और सर्वश्रेष्ठ विद्या है। सम्मोहन विद्या को ही प्राचीन समय से 'प्राण विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से पुकारा जाता रहा है। कुछ लोग इसे मोहिनी और वशीकरण विद्या भी कहते हैं। अंग्रेजी में इसे हिप्नोटिज्म कहते हैं। हिप्नोटिज्म मेस्मेरिज्म का ही सुधरा रूप है। यूनानी भाषा हिप्नॉज से बना है हिप्नोटिज्म जिसका अर्थ होता है निद्रा। 'सम्मोहन' शब्द 'हिप्नोटिज्म' से कहीं ज्यादा व्यापक और सूक्ष्म है। 

 

पहले इस विद्या का इस्तेमाल भारतीय साधु-संत सिद्धियां और मोक्ष प्राप्त करने के लिए करते थे। जब यह विद्या गलत लोगों के हाथ लगी तो उन्होंने इसके माध्यम से काला जादू और लोगों को वश में करने का रास्ता अपनाया। मध्यकाल में इस विद्या का भयानक रूप देखने को मिला। फिर यह विद्या खो-सी गई थी।