बेताल या वेताल पच्चीसी
संस्कृत में लिखी गई 25 कथाओं का एक संग्रह है वेताल पच्चीसी। इसे विक्रम वेताल के नाम से जाना जाता है। विक्रम-बेताल की कहानी हम सब ने बचपन में सुनी है। इसके रचयिता भवभूति ऊर्फ बेताल भट्ट बताए जाते हैं, जो न्याय के लिए प्रसिद्ध राजा विक्रम के नौ रत्नों में से एक थे। इस किताब में लेखक ने एक वेताल (भूत समान) के माध्यम से राजा विक्रम की न्यायप्रियता को प्रदर्शित किया है। इसे भारत की पहली घोस्ट स्टोरी माना जाता है।
भवभूति, संस्कृत के महान कवि एवं नाटककार थे। उनके नाटक, कालिदास के नाटकों के समतुल्य माने जाते हैं। भवभूति, पद्मपुर में एक देशस्थ ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। पद्मपुर महाराष्ट्र के गोंदिया जिले में महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है। भवभूति ने विक्रम यानी उज्जैन के राजा विक्रमादित्य को वेताल नामक भूत की कथाओं का एक पात्र बनाया था। विक्रम संवत के अनुसार विक्रमादित्य आज से 2285 वर्ष पूर्व हुए थे। विक्रमादित्य का नाम विक्रम सेन था। नाबोवाहन के पुत्र राजा गंधर्वसेन भी चक्रवर्ती सम्राट थे। गंधर्वसेन के पुत्र विक्रमादित्य और भर्तृहरी थे। कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया। -(गीता प्रेस, गोरखपुर भविष्यपुराण, पृष्ठ 245)। विक्रमादित्य के पराक्रम के कारण ही उनके नाम पर बाद के राजाओं को विक्रमादित्य की उपाधि से नवाजा जाता था। यथा श्रीहर्ष, शूद्रक, हल, चंद्रगुप्त द्वितीय, शिलादित्य, यशोवर्धन आदि। उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बाद 300 ईस्वी में समुद्रगुप्त के पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय अथवा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य हुए। वेताल पच्चीसी के बारे में : वेताल पच्चीसी की कहानियां भारत की सबसे लोकप्रिय कथाओं में से हैं। ये कथाएं राजा विक्रम की न्याय शक्ति का बोध कराती हैं।
वेताल प्रतिदिन एक कहानी सुनाता है और अंत में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा, लेकिन यह जानते हुए भी कि सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता। वेताल पच्चीसी का रचनाकाल : माना जाता है कि वेताल पच्चीसी कहानियों का स्रोत राजा सातवाहन के मंत्री 'गुणाढ्य' द्वारा रचित 'बड़कहा' (संस्कृत : बृहत्कथा) नामक ग्रंथ को दिया जाता है जिसकी रचना ईसा पूर्व 495 में हुई थी। कहा जाता है कि यह किसी पुरानी प्राकृत भाषा में लिखा गया था और इसमे 7 लाख छंद थे। आज इसका कोई भी अंश कहीं भी प्राप्त नहीं है।
कश्मीर के कवि सोमदेव ने इसको फिर से संस्कृत में लिखा और 'कथासरित्सागर' नाम दिया। बड़कहा की अधिकतम कहानियों को कथा सरित्सागर में संकलित कर दिए जाने के कारण ये आज भी हमारे पास हैं। 'वेताल पन्चविन्शति' यानी बेताल पच्चीसी 'कथासरित्सागर' का ही भाग है। समय के साथ इन कथाओं की प्रसिद्धि अनेक देशों में पहुंची और इन कथाओं का बहुत सी भाषाओं में अनुवाद हुआ।