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रावण

एक दिन कुबेर अपने पिता ऋषि विश्वेश्रवा से मिलने आश्रम पहुंचे तब कैकसी ने कुबेर के वैभव को देखकर अपने पुत्रों रावण, कुंभकर्ण और विभीषण से कहा कि तुम्हें भी अपने भाई के समान वैभवशाली बनना चाहिए। इसके लिए तुम भगवान ब्रह्मा की तपस्या करो। माता की आज्ञा मान तीनों पुत्र भगवान ब्रह्मा के तप के लिए निकल गए।
विभीषण पहले से ही धर्मात्मा थे। उन्होंने 5 हजार वर्ष एक पैर पर खड़े होकर कठोर तप करके देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद 5 हजार वर्ष अपना मस्तक और हाथ ऊपर रखकर तप किया जिससे भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए। विभीषण ने भगवान से असीम भक्ति का वर मांग लिया। विभीषण श्रीराम के भक्त बने और आज भी वे अजर-अमर हैं।
 
कुंभकर्ण ने इन्द्र पद की अभिलाषा से अपनी इंद्रियों को वश में रखकर 10 हजार वर्षों तक कठोर तप किया। उसके कठोर तप से भयभीत होकर इन्द्रादि देवताओं ने देवी सरस्वती से प्रार्थना कि कुंभकर्ण के वर मांगते समय आप उनकी जिह्वा पर विराजमान होकर देवताओं का साथ देना। तब वर मांगते समय देवी सरस्वती कुंभकर्ण की जिह्वा पर विराजमान हो गईं और कुंभकर्ण ने इंद्रासन की जगह निंद्रासन मांग लिया।
 
इधर, रावण ने अपने भाइयों से सबसे अधिक कठोर तप किया। ऋषि विश्वेश्रवा ने रावण को धर्म और पांडित्य की शिक्षा दी। वो प्रत्येक 11वें वर्ष में अपना एक शीश भगवान के चरणों में समर्पित कर देता। इस तरह उसने भी 10 हजार साल में अपने दसों शीश भगवान को समर्पित कर दिए। उसके तप से प्रसन्न हो भगवान ने उसे वर मांगने को कहा।
 
तब रावण ने कहा कि देव, दानव, दैत्य, राक्षस, गंधर्व, किन्नर, यक्ष आदि सभी दिव्य शक्तियां उसका वध न कर सके। रावण मनुष्य और जानवरों को कीड़ों की भांति तुच्छ समझता था इसलिए वरदान में उसने इनको छोड़ दिया। यही कारण था कि भगवान विष्णु को उसके वध के लिए मनुष्य अवतार में आना पड़ा। रावण ने अपनी शक्ति के बल पर शनि और यमराज को भी हरा दिया था।