महिषासुर
असुर सम्राट रंभ और उसके भाई करंभ ने अग्नि और वरुण देव को प्रसन्न कर उनसे वरदान प्राप्त किया था। जहां अग्निदेव को प्रसन्न करने के लिए असुर रंभ ने आग के छल्ले में बैठकर कठोर तप किया था, वहीं करंभ ने जल के भीतर रहकर वरुण देव के लिए तपस्या की थी। अंत में इन्द्रदेव ने मगरमच्छ का रूप लेकर करंभ का वध किया था और बाद में इन्द्र के वज्र के वार से रंभ की मृत्यु हुई थी। पानी में रहने वाली भैंस और असुर सम्राट रंभ की संतान महिषासुर ने भी घोर तपस्या की।
रंभासुर का पुत्र था महिषासुर, जो अत्यंत शक्तिशाली था। उसने अमर होने की इच्छा से ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। ब्रह्माजी उसके तप से प्रसन्न हुए। वे हंस पर बैठकर महिषासुर के निकट आए और बोले- 'वत्स! उठो, इच्छानुसार वर मांगो।' महिषासुर ने उनसे अमर होने का वर मांगा।
ब्रह्माजी ने कहा- 'वत्स! एक मृत्यु को छोड़कर, जो कुछ भी चाहो, मैं तुम्हें प्रदान कर सकता हूं, क्योंकि जन्मे हुए प्राणी का मरना तय होता है।' महिषासुर ने बहुत सोचा और फिर कहा- 'ठीक है प्रभो। देवता, असुर और मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो। किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करें।' ब्रह्माजी 'एवमस्तु एव' कहकर अपने लोक चले गए।
वर प्राप्त करके लौटने के बाद महिषासुर समस्त दैत्यों का राजा बन गया। उसने दैत्यों की विशाल सेना का गठन कर पाताल और मृत्युलोक पर आक्रमण कर समस्त को अपने कब्ज़े में कर लिया। फिर उसने देवताओं के इन्द्रलोक पर आक्रमण किया। इस युद्ध में भगवान विष्णु और शिव ने भी देवताओं का साथ दिया लेकिन महिषासुर के हाथों सभी को पराजय का सामना करना पड़ा और देवलोक पर भी महिषासुर का अधिकार हो गया।
भगवान विष्णु ने सभी देवताओं के साथ मिलकर भगवती महाशक्ति की आराधना की। सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य तेज निकलकर एक परम सुन्दरी स्त्री के रूप में प्रकट हुआ। हिमवान ने भगवती की सवारी के लिए सिंह दिया तथा सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किए। भगवती ने देवताओं पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर के भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया।
भगवती दुर्गा हिमालय पर पहुंचीं और अट्टहासपूर्वक घोर गर्जना की। महिषासुर के असुरों के साथ उनका भयंकर युद्ध छिड़ गया। एक-एक करके महिषासुर के सभी सेनानी मारे गए। फिर विवश होकर महिषासुर को भी देवी के साथ युद्ध करना पड़ा। महिषासुर ने नाना प्रकार के मायावी रूप बनाकर देवी को छल से मारने का प्रयास किया लेकिन अंत में भगवती ने अपने चक्र से महिषासुर का मस्तक काट दिया।