युद्धिष्ठिर और नेवला
कुरुक्षेत्र युद्ध समाप्त होने पर युद्धिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा घोषित किया गया | उसने अपने सहायकों के भले के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया | यज्ञ बहुत ही भव्य था और उसमें सभी सहायकों को महंगे और कीमती तोहफे दिए गए थे | राज्य में मोजूद सब लोगों को लगा की ये सबसे भव्य यज्ञ है | जब लोग यज्ञ की तारीफ कर रहे थे तभी राजा युधिष्ठिर ने एक नेवला देखा | उसके शरीर का एक हिस्सा अन्य नेवलों जैसा था और दूसरा सोने की तरह चमक रहा था | वह धरती पर पलटी खा बार बार ये देख रहा था की उसके शरीर में कोई बदलाव आ रहा है की नहीं | सब हैरान रह गए जब नेवले ने युद्धिष्ठिर से कहा की इस यज्ञ के बारे में कुछ भी प्रभावशाली नहीं है और ये यज्ञ सिर्फ एक दिखावा है और कुछ नहीं | नेवले की बातें सुन युद्धिष्ठिर बहुत दुखी हुए क्यूंकि उन्होनें यज्ञ के सभी नियमों का पालन किया था और गरीबों को दान भी दिया था | नेवले ने फिर सबसे कहा की वह एक कहानी सुनाएगा और तब ही लोग फैसला करें |
कहानी :
एक बार एक एक गाँव में एक गरीब आदमी अपनी पत्नी , बेटे और बहु के साथ रहता था | हांलाकि वह सब बहुत गरीब थे फिर भी वह अपनी धार्मिक प्रवृत्ति से नहीं हटते थे और सब्र और संतुलन से अपने जीवन का बसर कर रहे थे | एक दिन गाँव में अकाल पड़ा | आदमी ने बाहर जाकर बड़ी मुश्किल से थोड़े चावल इकट्ठे किये | उसकी पत्नी और बहु ने उसे पका चार हिस्सों में बाँट दिया | जैसे ही वह खाने बैठे दरवाज़े पर दस्तक हुई | खोलने पर उन्होनें देखा की एक थका हुआ पथिक सामने खड़ा था | उस आदमी को अन्दर बुला उस आदमी ने पथिक को अपने हिस्से का खाना दे दिया | लेकिन उसको खाने के बाद भी जब उसका पेट नहीं भरा तो उसकी पत्नी ने भी अपना हिस्सा दे दिया | ऐसे करते करते बेटा और बहु ने भी अपना हिस्सा उस पथिक को खाने के लिए दे दिया | नेवले ने बताया की उसी वक़्त एक रौशनी हुई और जो भगवान् परीक्षा लेने आये थे वह प्रकट हुए और उन्होनें परिवार को आशीर्वाद दिया और कहा की उन्होनें सबसे बड़े यज्ञ का आयोजन किया है | वो नेवला जो उस घर से गुज़र रहा था उसने वहां पड़ा कुछ झूठन खा लिया था | जिसके बाद उसके शरीर का एक हिस्सा सोने का हो गया | क्यूंकि और भोजन नहीं बचा था वो नेवला सभी यज्ञों में घूम रहा है ताकि उसको कोई ऐसा यज्ञ मिल जाए जो उसके शरीर के दुसरे भाग को भी सोने का बना दे | इसीलिए उसने कहा की युधिष्ठिर का यज्ञ भी गरीब आदमी और उसके परिवार के यज्ञ से बड़ा नहीं हो सकता है | ऐसा कह वह नेवला वहां से गायब हो गया | वह नेवला असल में भगवान् धर्म थे जिन्हें पिछले जन्म में श्राप मिला था की वह अपने शरीर में तब आ सकते हैं जब वह धर्म के किसी प्रतिनिधि को शर्मिंदा कर दें |
युधिष्ठिर को एहसास हुआ की दान में दी गयी सारी दौलत भी दिल की सच्चाई की बराबरी नहीं कर सकती | धर्म के अनुनायी होने के बावजूद भी उन्हें एहसास हुआ की गर्व और ताकत का घमंड सबसे सज्जन पुरुषों का भी पतन करा सकता है |