संकट
वे जंगल में साथ साथ रहने लगे। चित्रांगदा ने प्रेम के देवता कामदेव से जो नारी सौन्दर्य पाया था उसी का प्रयोग उसने पाण्डव राजकुमार को प्रसन्न करने के लिए किया। उन्होंने एक वर्ष बड़े आनन्द से बिताया। लेकिन एक वर्ष बीतने पर कामदेव का दिया हुआ वरदान समाप्त होने वाला था। वह उस क्षण से डर रही थी कि जब अर्जुन को यह पता चलेगा कि वह अब सुन्दर नहीं रही। जिस समय चित्रांगदा अर्जुन के साथ जंगल में रह रही थी उस समय उसके राज्य के लोग उसके लापता होने के कारण दुखी थे।
वे बहुत चिन्तित और बेचैन थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि वह आखिर कहां चली गई है। बेटी के गायब हो जाने के कारण राजा की वेदना का तो पार ही नहीं था। वह अपना अधिकतर समय प्रार्थना में बिताता। उसे लगता था कि अब ईश्वर ही चित्रांगदा को वापस लाने में उसकी सहायता कर सकता है।
दूसरी ओर प्रजा को यह डर था कि चित्रांगदा के बिना राज्य खतरे में पड़ जाएगा। सब जगह गड़बड़ होने लगी थी और राजा बार-बार होने वाले इन उपद्रवों को रोक नहीं पा रहा था। किसानों को खास तौर पर चोर और डाकू बहुत तंग कर रहे थे। वे सुरक्षा के लिए राजा के पास गये लेकिन राजा इतना कमज़ोर हो चुका था कि उनको किसी प्रकार का आश्वासन नहीं दे सका। उन्होंने चित्रांगदा की खोज करने का निश्चय किया। अनेक दल खोज के लिए अलग-अलग दिशाओं में भेज दिये गये। एक दल उसको खोजने के लिए जंगल में गया। वहां वे अर्जुन से मिले और उन्हें अपने दुख की कहानी सुनाई।
उनकी बात सुनकर अर्जुन ने पूछा, “यह कैसी बात है कि अपनी सुरक्षा के लिए तुम्हें एक स्त्री पर निर्भर रहना पड़ता है? क्या तुम्हारे सिपाहियों में शत्रु से लड़ने का साहस नहीं है?"