"मैं वसन्तसेना हूँ”
मैत्रेय ने सामने का दरवाज़ा बन्द कर दिया और बोला, “आइये आँगन में चलें। वहाँ बैठकर ये हमें बतायेंगी कि बात क्या है।”
चारुदत्त ने अब अपने आपको सम्भाल लिया और उन्हें बैंचों के पास ले गया और बोला, “कृपा कर के बैठ जाइये और फिर बताइये कि हम आपकी क्या सहायता कर सकते हैं।"
“मैं वसन्तसेना हूँ,” उस सुन्दर लड़की ने कहा, "और यह मेरी सखी मदनिका है। हम बाहर उद्यान में सैर कर रहे थे। तभी दुष्ट संस्थानक हमारे पीछे लग गया। उसके मित्र भी उसके साथ थे। वह और उसके साथी शराब पीकर मदहोश हो रहे थे। हम बहुत बुरी तरह से डर गयीं और अपनी जान लेकर भागीं। सड़क पर यह पहला मकान देखकर हमने यहाँ शरण लेनी चाही। हमें बहुत खेद है कि हमने आपको परेशान किया। जैसे ही रास्ता ज़रा सुरक्षित हो जायेगा हम चली जायेंगी।"
"देवियो,” चारुदत्त बोला, “मुझे चारुदत्त कहते हैं और यह है मेरा मित्र मैत्रेय । अपनी इस झोंपड़ी में मैं आपका स्वागत करता हूँ। मैं जानता हूँ कि संस्थानक कितना दुष्ट है। वह राजा का साला है और बहुत झगड़ालू है। सब लोग उससे डरते हैं। वह सब सुन्दर औरतों के लिए खतरा है। उसके मित्रों का स्वभाव भी उसके जैसा ही है। किन्तु वह चालाक है और राजा को खुश करने के लिए सब कुछ करता है । राजा उसे बुद्धिमान समझता है और उसे उसमें कोई बुराई नहीं दिखाई देती। राजा का रिश्तेदार होने के कारण, वह इस संबंध का लाभ उठाता है। वह लोगों को डराता है और नगर में सबके लिए खतरे का कारण बन गया है। ओह, वह बहुत दुष्ट है,"
वसन्तसेना बोली, जब उसने हमको देखा तो चिल्लाया, "मेरे साथ आओ, मेरे साथ आओ, और मेरी ओर दौड़ा। उसके मित्र उसके पीछे तालियाँ बजाते हुए दौड़ रहे थे। हम भागकर सड़क पर आगये और जब तक इस घर के पास नहीं पहुंच गये एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।”