अनचाहा दौर
आईने को भी ताक़ीद थी,
उनका अक्स ना दिखाने की।
दुनिया को अच्छी लगे
वही कहानी बताने की ।
हिल रहा था शाही तख्त
आ रहा था इंसाफ़ का शोर ।
फिर तख्त ने फेर लिया
अपना जुमला सरहद की ओर ।
अब हालत जानते हो तुम
बेरोजगार नौजवानो की
वतन के ख़ातिर सरहद पर
मरने वाले जवानो की ।
एक दिन के लिए रोता है
वो राजनीती का दरबार ।
फिर दरदर ठोकर खाता
वो शहिद का परिवार ।
किसानों की तुम बात ना
करो तो ही अच्छा है ।
जीने पर लगाते हो पाबंदी
क्या मरना ही उनका सच्चा है ?
नोच लिया सब कुछ गिध्दोंने
जो शाही दरबार के मोर है ।
एक वक्त का पेट पालने
चुराई रोटी तो साला चोर है ।
मिट्टी की सौगंध खाई है
मिट्टी में मिला देंगे सब ।
फ़ैलाया है जहर हवाओं में
सोचो कौन बच पायेगा अब ।